नई दिल्ली: देश भर के दर्जनों डॉक्टरों ने एक खुला पत्र लिखकर केंद्र सरकार, सभी राज्य सरकारों, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और कोरोना मरीजों के इलाज में लगे डॉक्टरों से अपील की है कि वे कोरोना के इलाज व प्रबंधन में गैर जरूरी उपायों और अनुचित दवाओं के इस्तेमाल को रोकने के लिए हस्तक्षेप करें.
इस पत्र पर 32 डॉक्टरों ने हस्ताक्षर किए हैं और तीन अहम बिंदुओं पर सरकारों व स्वास्थ्य सेवाओं में लगे अन्य डॉक्टरों का ध्यान आकर्षित किया है.
उन्होंने लिखा है कि जिस तरह पिछली दो कोरोना लहरों के दौरान संक्रमित मरीजों का इलाज करने में एजिथ्रोमाइसिन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन आइवरमेक्टिन जैसी दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया था, इस बार उससे बचा जाए क्योंकि इनसे मरीजों में ब्लैक फंगस जैसे साइड इफेक्ट्स देखे गए हैं, जबकि ये दवाएं कोरोना के इलाज में अनुपयोगी पाई गई हैं.
साथ ही, अपने पत्र में उन्होंने लिखा है कि कोरोना का नया स्वरूप ओमीक्रॉन पहले से संक्रमित या वैक्सीन का डोज ले चुके लोगों के लिए कम हानिकारक है, इसलिए मरीजों का सीटी स्कैन जैसा परीक्षण करके उनके और उनके परिवारों के ऊपर अनावश्यक आर्थिक दबाव न बढ़ाया जाए. केवल गंभीर किस्म के चंद रोगियों को ही ऐसे परीक्षण की जरूरत होती है.
इसके अलावा उन्होंने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि कोरोना के मरीजों को बिना किसी उचित चिकित्सीय कारण के अस्पतालों में भर्ती किया जाता है, इससे बचा जाना चाहिए क्योंकि इससे न सिर्फ मरीज पर आर्थिक दबाव बढ़ता है बल्कि इससे हजारों उन मरीजों का भी जीवन खतरे में पड़ जाता है, जिन्हें कोरोना नहीं हुआ है. उन्हें अस्पतालों में बिस्तर नहीं मिल पाते हैं.
डॉक्टरों का कहना है कि उपरोक्त सभी कदम कोरोना की डेल्टा लहर के दौरान उठाए गए गलत कदम थे, जिनका दोहराव ओमीक्रॉन के मामले में भी किया जा रहा है, जबकि अब हमारे पास पिछली दो लहरों का अनुभव (प्रमाण) है जिससे हम कोरोना का बेहतर प्रबंधन हेतु मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं.
उन्होंने राज्य एजेंसियों से यह भी गुहार लगाई है कि सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही गलत सूचनाओं पर रोक लगाई जाए और साथ ही पांच ऐसी नीतियां बताई हैं जिन्हें कोरोना के इलाज में लागू किया जाना चाहिए.
ये पांच नीतियां हैं, ओमीक्रॉन के संबंध में साक्ष्य आधारित दिशानिर्देशों को अपडेट करें, अनावश्यक दवाओं का इस्तेमाल रोका जाए, अनुचित जांच जैसे- सीटी स्कैन पर रोकथाम लगे, जो उपचार या दवाएं वैज्ञानिक रूप से उपयोगी प्रमाणित नहीं हुए हैं, उन्हें रोका जाए. साथ ही, उपचार संबंधी दिशानिर्देशों को स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित किया जाए.