नारायणपुर, 15 मार्च (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले में दशकों से ग्रामीण डाकघरों में सेवा दे रहे डाक सेवकों का दर्द कुछ अलग है। उन्हें महीने में 1200 से 1500 किलोमीटर की दूरी पहाड़ों और घने जंगलों से होकर तय करनी पड़ती है, मगर इसके लिए उन्हें साइकिल भत्ता मिलता है मात्र 60 रुपये।
नारायणपुर जिला मुख्यालय में उपडाकघर है। इसके अधीन 17 ग्रामीण डाकघर हैं। इनमें ग्रामीण डाक सेवकों की नियुक्ति की गई है। एक ग्रामीण डाकघर में कम से कम तीन डाक सेवक होने चाहिए, लेकिन कहीं एक तो कहीं दो डाक सेवक सेवा दे रहे हैं। जिले में ग्रामीण डाक सेवकों की संख्या 27 है। इन डाक सेवकों को बतौर वेतन पांच हजार से नौ हजार रुपये प्रति माह में दिए जाते हैं, जिसमें साइकिल भत्ता 60 रुपये भी शामिल है।
ग्रामीण डाक सेवक संघ के संभागीय सचिव परसराम देशमुख ने बताया कि दीगर जिलों की तुलना में नारायणपुर जिले की स्थिति काफी विषम है। यहां सड़क मार्गो का अभाव है। बारिश, ठंड एवं भीषण गर्मी में डाक सेवक साइकिल से मीलों डाक लेकर जाते हैं। बारिश होने पर बाढ़ की स्थिति आ जाती है। पुल-पुलिया नगण्य हैं। मौसम की परवाह किए बगैर वे अल्प मानदेय में भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।
पारसराम देशमुख के मुताबिक, अबूझमाड़ में ओरछा और कोहकामेटा में ग्रामीण डाकघर हैं। यहां दो-दो डाक सेवकों की पदस्थापना है। अबूझमाड़ में डाक बांटना काफी कठिन है। पहाड़ी रास्ते, पगडंडियां और घने जंगल से साइकिल से इन्हें गुजरना पड़ता है।
वे बताते हैं कि माड़ के कोहकामेटा में दो डाकसेवक राजू करंगा एवं लखमूराम नुरेटी सेवा दे रहे हैं। इन्हें करीब 40 किलोमीटर दूर कांकेर जिले से सटे गोमे, पदमकोट, बोगन, नेलांगूर समेत कई गांव साइकिल से जाकर डाक को पहुंचाना होता है।
दूसरी ओर, इन्हें सोनपुर, गारपा, कुतूल, झारावाही, कच्चापाल,कुरुषनार, कुंदला एवं बासिंग गांव की ओर भी जाना पड़ता है। इन गांवों तक पहुंचने में ही एक दिन लग जाता है और रात उसी गांव में गुजारनी पड़ती है। दूसरे दिन उन्हें लौटना पड़ता है।
अगर रास्ते में साइकिल खराब हो गई तो जंगल में इसकी मरम्मत करने वाला कोई नहीं है। तब डाक सेवकों को किसी बड़े गांव तक पैदल ही आना होता है। इन्हें जिला मुख्यालय में दैनिक काम की रिपोर्ट देने, डाक देने एवं ले जाने के लिए आना होता है।