नई दिल्ली, 23 मार्च (आईएएनएस)। आईएमए द्वारा आयोजित कार्यशाला में 100 जनरल प्रैक्टिशनर ने हिस्सा लिया। आईएमए ने अपने सभी सदस्यों से अपील की है कि वे खुद से पूछें ‘क्या आज मैं टीबी का मरीज चिह्न्ति हुआ हूं।’
कार्यशाला का समापन करते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के महासचिव डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, “आईएमए का इस साल का स्लोगन है- मुझमें आज टीबी का पता चला, क्या आपको भी है?- इसकी जांच आज ही कराएं।”
टीबी मरीज का पता न लग पाना एक जन हानिकारक के तौर पर है जो कि एमसीआई एक्ट के हिसाब से एक तरह की हिंसा है और इससे डॉक्टर का लाइसेंस भी निलंबित हो सकता है।
कार्यशाला में डॉ. दिनेश नेगी, डॉ. सुखदेव रॉय, डॉ. पराग बाजपेयी, डॉ. मनीषा, डॉ. बी.एम. दास और डॉ. राजेश्वर राव शामिल हुए।
इस अवसर पर डॉ. अग्रवाल ने कहा कि सिर्फ टीबी का पता लगना ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि मरीज उसका उचित और पूरा इलाज कराए।
उपचार के उपरांत अधिकतर लक्षण कुछ हफ्तों तक नजर नहीं आते हैं, इससे मरीज उपचार को बीच में ही रोक देते हैं। अधूरा इलाज होने से ड्रग रीसिस्टेंट का मामला बन जाता है जो न सिर्फ मरीज के लिए जानलेवा होता है, बल्कि यह समाज के लिए भी घातक साबित होता है।
आईएमए ने अमिताभ बच्चन के हाथों से एक पहल की है जिसमें उन्होंने कबूल किया है कि वे पेट की टीबी से ग्रसित रह चुके हैं।
विशेषज्ञों ने कहा कि सभी गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली महिलाओं को जो टीबी की शिकार हों उनको पूरा उपचार कराना चाहिए। सभी एचआईवी के मरीजों को संभावित टीबी की जांच करवानी चाहिए।
आईएमए ने दो स्लोगन जारी किए :
– वृद्ध लोगों में मधुमेह रोग होने पर टीबी के बारे में सोचें।
– मध्य उम्र के लोगों में टीबी होती है उनमें मधुमेह के बारे में सोचें।
दिल्ली नगर निगम के शिक्षकों को भी सांस की स्वच्छता एवं खांसी शिष्टाचार के बारे में प्रशिक्षित किया गया।