ब्यूरो (भोपाल )– मध्यप्रदेश में चुनावी बेला के नजदीक आते ही धुरंधर योद्धा तैयार होने लगे हैं,भोपाल के दक्षिण क्षेत्र से विधायक और वर्तमान गृह-मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने पार्टी गाइड लाइन की धता बताते हुए मात्र अपने क्षेत्र के मतदाताओं को चिट्ठी भेजी है,इस चिट्ठी में इन्होने अपने कार्यकाल की उपलब्धियाँ गिनाते हुए भाजपा को वोट देने की अपील की है।
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और गृह -मंत्री के रूप में अक्षम कार्यकाल से घबराये हुए हैं गुप्ता
उमाशंकर गुप्ता ने अपना टिकट कटने की घबराहट में यह कार्य किया,क्षेत्र में हवा है की यदि गुप्ता को टिकट दिया गया तब भाजपा की विजय नहीं होगी,क्योंकि मतदाता और आम कार्यकर्ता उमाशंकर गुप्ता से बेहद नाराज है,कार्यकाल में इन्होने कभी किसी कार्यकर्ता का काम नहीं किया।
इनके एक प्रबल समर्थक छुटभैय्ये नेताजी जो इनकी वजह से मोटा माल कम लिए हैं आज कल कार्यकर्ताओं को उलाहना देते नजर आते हैं की कोई आता नहीं गुप्ता जी के दरबार में और जवाब सुनने के बाद बगलें झांकते नजर आते हैं।
सुरेन्द्रनाथ सिंह हैं प्रबल दावेदार ,संगठन में पहले ही जमावट कर ली है
संगठन में अपनी मजबूत पकड़ के चलते सुरेन्द्रनाथ सिंह दक्षिण विधानसभा सीट से अपनी मजबूत उम्मीदवारी जता रहे हैं,संगठन चुनावों के समय अपने समर्थकों को प्रत्येक मंडल तक तथा वार्ड में भी बैठाने का काम सुरेन्द्रनाथ कर चुके है ,यदि रायशुमारी होती है तब उमाशंकर का नाम कोई लेने वाला नहीं इसी बात से गुप्ता जी घबडाए हुए हैं और इसी घबराहट में मतदाताओं को चिट्ठी लिख गए ताकि संगठन और मतदाताओं में भ्रम पैदा कर सकें।
उमाशंकर गुप्ता आकाओं से टिकट लाने में माहिर हैं
उमाशंकर गुप्ता कभी प्रदेश के नेताओं पर टिकट के लिए आश्रित नहीं हैं,इसीलिए अपने तेवर इन्होने अभी से दिखा दिए हैं,पिछली बार भी इनपर आरोप लगा था की ये बड़ी रकम केन्द्रीय नेता को दे कर टिकट लाये थे।
पुलिस महकमे को बर्बाद कर दिया गुप्ता ने
पुलिस प्रशासन जो कानून- व्यवस्था के जानिब है तथा आम जन के हकों को सुरक्षित रखता है उसे मुख्यमंत्री शिवराज ने उमाशंकर गुप्ता के हाथों सौंप कर गुनाह कर दिया और मध्यप्रदेश की जनता को सुरक्षा पाने से वंचित कर दिया,उमाशंकर गुप्ता के मंत्रित्वकाल में अपराधी मौज में रहे उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई और पीड़ितों की सुनने वाला कोई नहीं रहा।पुलिस थानों के कर्मचारी हैवानों की तरह पेश आते हैं,आज भी रिकॉर्ड बयान करते हैं की ये अपने कर्तव्यों के पालन में पैसे और रसूख को देख कर तय करते हैं की क्या किया जाय।
आगे देखिये क्या होता है
अब दांव-पेंच खेले जाने लगे हैं,यह चुनाव राजनीती के पुराने पंडितों के लिए भी पहेली बना हुआ है,कोई भी कुछ स्पष्ट बताने की स्थिति में नहीं है,यह चुनाव विकास या पार्टी प्रभाव की जगह प्रत्याशी चयन पर लड़ा जाएगा,जो पार्टी जितना अच्छा प्रत्याशी खड़ा करेगी वाही जीतेगा।