कैब्रिज विश्वविद्यालय के कॉलेज आफ एशियन एंड मिडिल ईस्टर्न स्टडीज के निदेशक और इतिहास के प्रोफेसर हांस वान दे वेन ने एक खास मुलाकात में यह बात कही। उन्होंने कहा कि चीन के युद्ध ने न सिर्फ जापान के एशिया पर प्रभुत्व के सपनों पर पानी फेर दिया बल्कि इस इलाके में पश्चिमी साम्राज्यवाद की जड़ों को भी हिला दिया।
वेन ने कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध के बारे में अमेरिका और ब्रिटेन से कितनी ही किताबें सामने आती रहती हैं। इनमें द्वितीय विश्व युद्ध में चीन की भूमिका को कम आंका जाता है। उन्हें लगता है कि प्रशांत महासागर इलाके में जापान के खिलाफ अमेरिका का हमला द्वितीय विश्व युद्ध जीतने के लिए था। चीन का इस जीत से बहुत कम ताल्लुक है। इसलिए इस बात को समझना बहुत मुश्किल नहीं है कि वे क्यों यह मानते हैं कि जापान के खिलाफ चीन की जंग कोई खास मायने नहीं रखती।”
वेन ने कहा, “लेकिन, द्वितीय विश्व युद्ध में चीन की भूमिका की यह समझ गलत और गैरवाजिब है। यह इतिहास की एक अमेरिका केंद्रित ऐतिहासिक सोच को दिखाती है।”
अपनी किताब “वार एंड नेशनलिज्म इन चाइना (1925-1945)” में वेन ने विस्तार से बताया है कि चीन के राष्ट्रवादियों और साम्यवादियों ने प्रतिरोध युद्ध में कितनी बड़ी भूमिका निभाई थी।