भागलपुर (बिहार), 16 अगस्त (आईएएनएस)| आमतौर पर आज जहां लोग संप्रदाय के नाम पर आमने-सामने नजर आते हैं, वहीं यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि बाबा बैद्यनाथ धाम जाने वाले हिंदुओं के अधिकांश कांवड़ मुस्लिम परिवार बनाते हैं। कई मुस्लिम परिवारों का यह खानदानी पेशा बन गया है।
झारखंड के देवघर जिला स्थित विश्व प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ धाम में प्रत्येक वर्ष करोड़ों श्रद्धालु भागलपुर के सुल्तानगंज के उत्तरवाहिनी गंगा नदी से जल भरकर कांवड़ में रखकर कामना लिंग पर जलार्पण करने के लिए जाते हैं। इन अधिकांश कांवड़ों का निर्माण मुस्लिम परिवारों द्वारा ही किया जाता है।
कांवड़ निर्माण में लगे इन मुस्लिम परिवारों के लिए यह पेशा कोई नया नहीं है, बल्कि यह इन परिवारों के लिए खानदानी पेशा है, जिसे अपनाकर आज की भी पीढ़ी गौरवान्वित महसूस करती है।
भागलपुर जिले के सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा से कांवड़िये जल उठाकर बाबा वैद्यनाथ धाम की यात्रा प्रारंभ करते हैं और करीब 105 किलोमीटर की लंबी यात्रा कर बाबा के दरबार में पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं।
पूरे परिवार के साथ कांवड़ धंधे से जुड़े मोहम्मद हाफिज पिछले 35 वर्षो से इसी धंधे से अपने परिवार की गाड़ी खींच रहे हैं। वह कहते हैं कि उनके पिताजी और दादा भी यही काम करते थे।
वहीं, कलीम कहते हैं, “सावन आने के दो-तीन महीने पूर्व से ही कांवड़ बनाने की तैयारी शुरू कर देते हैं। मैंने अपने पिता से यह कला सीखी थी। कांवड़ बनाने के दौरान शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जाता है।”
सुल्तानगंज से कांवड़ यात्रा प्रारंभ होने के कारण यहीं कांवड़ों की बिक्री सबसे अधिक होती है। सुल्तानगंज में ऐसे करीब 35 से 40 मुस्लिम परिवार हैं, जो न केवल कांवड़ बनाते हैं, बल्कि इनका मुख्य पेशा भी कांवड़ निर्माण ही है।
कारीगरों का कहना है कि वैसे तो कांवड़ वर्षभर बिकते हैं, परंतु सावन महीने में कांवड़ों की बिक्री बढ़ जाती है।
एक अन्य कारीगर मोहम्मद महताब बताते हैं कि आमतौर पर कांवड़ निर्माण में बांस, मखमली कपड़े, घंटी, सीप की मूर्ति, प्लास्टिक का सांप का प्रयोग किया जाता है, परंतु कई महंगे कांवड़ों का निर्माण होता है, जिसमें कई कीमती सामग्रियां भी लगाई जाती हैं।
वह कहते हैं, “सावन में गंगा तट पर प्रतिदिन करीब एक लाख कांवड़ों की बिक्री होती है। यहां के मुस्लिम परिवारों में कई परिवार थोक भाव में भी कांवड़ की बिक्री करते हैं।”
कारीगरों का कहना है कि सावन और भादो के महीने में कांवड़ों की बिक्री खूब होती है। इसी दो माह की कमाई से वर्षभर का गुजारा चलता है। कई बेरोजगार युवक भी सावन महीने में यहां के बने कांवड़ खरीदकर अस्थायी रूप से कांवड़ की दुकान खोल लेते हैं।
कारीगर अयूब बताते हैं कि यहां के बाजारों में हर तरह के कांवड़ 400 से लेकर 1000 रुपये या उससे महंगे कांवड़ भी उपलब्ध होते हैं। आमतौर पर श्रद्धालु प्रत्येक वर्ष कांवड़ नहीं बदलते हैं। वे कहते हैं कि यह अब यहां के लोगों के लिए कांवड़ निर्माण व्यापार नहीं परंपरा बन गई है।
इधर, कांवड़िये भी मुस्लिम परिवारों से कांवड़ खरीदने को गलत नहीं मानते। पटना के कांवड़िये रत्नेश सिन्हा कहते हैं, “मुस्लिम परिवारों के बनाए कांवड़ में बुराई क्या है? हमें संकीर्ण भावना से ऊपर उठना चाहिए।”