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जहां तिथि से पहले मनाए जाते हैं 4 त्योहार

October 17, 2015 6:17 pm by: Category: फीचर Comments Off on जहां तिथि से पहले मनाए जाते हैं 4 त्योहार A+ / A-

225अपनी अनोखी लोक संस्कृति और परंपराओं के लिए विख्यात छत्तीसगढ़ में एक ऐसा गांव भी है, जहां के लोग अपने ग्राम देवता की प्रसन्नता के लिए चार प्रमुख त्योहार हफ्तेभर पहले ही मना लेते हैं।

यह गांव है धमतरी जिले का सेमरा (सी)। इस गांव में सिर्फ दशहरा ही नियत तिथि को मनाया जाता है, बाकी दिवाली, होली जैसे कई बड़े त्योहार सप्ताहभर पहले ही मनाए जाते हैं।

इस वर्ष भी जब पूरे देश के लोग दिवाली 11-12 नवंबर को मनाएंगे तो सेमरा (सी) में दिवाली के लिए 5 नवंबर की तारीख तय की गई है। कई बुजुर्गो, युवाओं और बच्चों ने स्वीकार किया है कि त्योहार तय तिथि से पहले मनाए जाते हैं, इसके बावजूद लोगों में खूब उत्साह रहता है।

पौने दो सौ की अबादी वाले सेमरा (सी) में मतभेद और मनभेद की भावना से परे हटकर ग्रामीण सैकड़ों वर्षो से इस अनोखी परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं। अब तक किसी ने भी अपने पूर्वजों के जमाने से चली आ रही इस परंपरा से मुंह नहीं मोड़ा है।

चौंकाने वाली बात यह कि इस पंरपरा की शुरुआत कब हुई, इससे ग्रामीण अनजान हैं। यहां ग्राम देवता सिरदार देव के स्वप्न को साकार करने प्रतिवर्ष दिवाली, होली पोला और हरेली का त्योहार तय तिथि से एक सप्ताह पूर्व मनाया जाता है। इस वर्ष बुजुर्ग, युवा और बच्चे 5 नवंबर को दिवाली मनाने की तैयारी में हैं।

गांव के 85 वर्षीय बुजुर्ग डोमार देवांगन ने बताया कि सैकड़ों वर्ष पूर्व इस गांव की भूमि में एक बुजुर्ग आकर निवास किए। उनका नाम सिरदार था। उनकी चमत्कारिक शक्तियों एवं बातों से गांव के लोगों की परेशानियां दूर होने लगीं। लोगों में उनके प्रति आस्था व श्रद्धा का विश्वास उमड़ने लगा।

समय गुरजने के बाद सिरदार देव के मंदिर की स्थापना की गई। मान्यता है कि किसी किसान को स्वप्न देकर सिरदार देव ने कहा था कि प्रतिवर्ष दीपावली, होली, हरेली व पोला ये चार त्योहार हिंदी पंचाग में तय तिथि से एक सप्ताह पूर्व मनाए जाएं, ताकि इस गांव में उनका मान बना रहे। तब से ये चार त्योहार प्रतिवर्ष ग्रामदेव के कथनानुसार मनाते आ रहे हैं।

परंपरा के शुरुआती समय से अनभिज्ञ देवांगन ने बताया कि उनके पूर्वजों ने भी कभी उन्हें इस परंपरा की शुरुआत से परिचित नहीं करवाया, शायद उन्हें भी परंपरा के समय का अनुमान नहीं हो। उनका कहना है कि अब हम भी इस परंपरा से अपने बेटे, नाती-पोतों को परिचित करवा रहे हैं, ताकि यह परंपरा सदियों तक जीवित रहे।

49 वर्षीय गवल सिंग देवांगन का कहना था कि सैकड़ों वर्ष से ग्रामवासी पीढ़ी दर पीढ़ी ये चार त्योहार को एक सप्ताह पूर्व मनाते आ रहे हैं। यह तो उन्हें भी नहीं पता कब से, लेकिन वे कहते हैं कि सिरदार देव की स्थापना के बाद से परंपरा चली आ रही है। प्रतिवर्ष इन त्योहारों को एकजुटता के साथ सिरदार देव के चौरा के पास मनाया जाता है।

50 वर्षीय राम कुमार शांडिल्य भी इस परंपरा के शुरुआती दौर से अनभिज्ञ हैं। लेकिन शांडिल्य ने भी किसान को स्वप्न देने वाली कहानी से हमारे संवाददाता को परिचित करवाया। शांडिल्य ने अपने बुजुर्गो से सुनी बातों का जिक्र करते हुए कहा कि उनके पूर्वजों के समय में कुछ लोगों ने इस परंपरा की अवहलना की, तो गांव में अप्रिय घटना का खामियाजा भुगतना पड़ा।

शांडिल्य के अनुसार, ग्रामवासी देव के स्वप्न को साकार करने के लिए ये त्योहार एक सप्ताह पूर्व मनाते आ रहे हैं।

गांव के पूर्व सरपंच घनश्याम देवांगन ने बताया कि सिरदार देव के कथनानुसार, इस गांव में इन चारों त्योहार का आयोजन सभी ग्रामवासियों के सहयोग व समर्थन से होता है। इस परंपरा के नियम में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाता।

उन्होंने कहा कि अनादिकाल से चली आ रही इस परंपरा को लेकर ग्रामवासियों की आस्था और विश्वास अडिग है। सभी इस परंपरा के अनुसार चारों त्योहार सिरदार देव के मंदिर के पास बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाते हैं।

इसी तरह ग्रामवासी ओमप्रकाश सिन्हा, मोतीराम निषाद, गुहलेदराम सिन्हा, दीनबंधु सिन्हा और देवगन राम ध्रुव का कहना था कि ग्रामदेव सिरदार का आशीर्वाद रूपी चमत्कार गांव में होता रहा और वैसे-वैसे मान्यता बढ़ते गई।

दशहरा का पर्व इस गांव में पूरे भारतवर्ष के साथ यानी हिंदी पंचाग में तय अंकित तिथि में ही मनाया जाता है। रावण का दहन पूरे गांव में एक स्थान यानी सिरदार देव के मंदिर के पास ही होता है। दशहरा के दौरान तीन दिवसीय रामायण पाठ का आयोजन सिरदार देव के मंदिर के पास ही किया जाता है।

इस वर्ष सेमरा (सी) निवासी 5 नवंबर को दीपावली (लक्ष्मी पूजा) और 6 नवंबर को गोर्वधन पूजा का पर्व मनाएंगे।

त्योहार के दिन गांव का प्रत्येक निवासी, बच्चे, बड़े, बुजुर्ग और जवान सिरदार देव के मंदिर के पास एकत्र होते हैं। लेकिन परंपरा के अनुसार गांव की युवतियां एवं शादीशुदा महिलाएं ग्राम देवता सिरदार देव के करीब नहीं जातीं।

इन आयोजनों में छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों की नाच पार्टी अपनी प्रस्तुति देती हैं। (आईएएनएस/वीएनएस)

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