नई दिल्ली, 29 दिसंबर – देश में प्रदूषण का बढ़ता स्तर, असमय बाढ़ व बार-बार भूकंप के झटके पर्यावरण में हुए खतरनाक परिवर्तन के संकेत हैं, जिन्हें नियंत्रित करने के लिए भारत आज भी जलवायु परिवर्तन को लेकर सही कानून की बाट जोह रहा है।
पर्यावरण हालात की बात करें, तो यह साल भारत के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है। साल की शुरुआत ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर के तमगे के साथ हुई। पिछले साल भी यह सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शीर्ष पर था, जिसने चीन के शहर बीजिंग की जगह ली।
प्रदूषण का असर अप्रत्याशित तरीके से सामने आया है। जैसे बेंगलुरू में एक झील में औद्योगिक प्रदूषकों के मिलने से उसका पानी जहरीला और फेन से भर गया है। इस घटना ने देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया है।
पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस के मुताबिक, देश के उत्तरी भाग में इस साल कई मौकों पर प्रदूषण का स्तर बेहद अधिक रहा है, जिससे बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है।
ग्रीनपीस ने कहा, “यदि भारत के पास भी बीजिंग की तरह मजबूत वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र होता, तो उत्तर भारत की एक बड़ी आबादी कम से कम 33 दिनों तक रेड अलर्ट पर होती।”
पर्यावरणविदें के मुताबिक, शीत ऋतु शुरू होने से पहले पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व चंडीगढ़ का पूरा क्षेत्र धान की खूंटी जलाए जाने से दिन में धुंध में डूब गया। धुआं ने देश की जलवायु को कई सप्ताह तक प्रभावित किया।
दिल्ली के पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगाद के मुताबिक, इस साल भी वायु प्रदूषण का मुद्दा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गूंजा।
तोंगाद ने आईएएनएस से कहा, “इस साल कुछ पहल शुरू हुए, जिसके द्वारा वायु प्रदूषण से निपटने के तरीकों व जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर भारत के रुख को स्पष्ट करने जैसे मुद्दों के समाधान की जरूरत है, जो अभी भी देश के सामने मुंह बाए खड़ा है।”
उन्होंने कहा कि इस साल 21वें कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी) में भारत का जिस तरह का रुख रहा, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। समझौते में हालांकि कुछ खामियां हैं।
पेरिस में आयोजित जलवायु परिवर्तन समझौते के दौैरान, भारत ने साल 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों में 35 फीसदी तक कटौती की प्रतिबद्धता जताई। साथ ही उसने एक 120 देशों को मिलाकर सौर गठबंधन बनाया, जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा का ज्यादा से ज्यादा उपभोग करना है। भारत ने यह भी कहा कि विकसित देशों को अपनी तरफ से उत्सर्जन में कटौती में योगदान करना चाहिए व विकासशील देशों को इस उद्देश्य को लेकर प्रत्येक साल 100 अरब अमेरिकी डॉलर की मदद करनी चाहिए।
एक तरफ जहां पेरिस में भारत प्रतिबद्धता जता रहा था, वहीं दूसरी ओर उत्तर भारत धुंध से लड़ रहा था, जबकि दक्षिण भारत मूसलाधार बारिश से, जिसके बाद बाढ़ आ गई।
एक सप्ताह तक हुई मूसलाधार बारिश से चेन्नई व चेन्नई के अन्य इलाके व आंध्र प्रदेश पानी-पानी हो गया। बारिश से आई बाढ़ से न केवल चेन्नई का अधिकांश हिस्सा डूब गया, बल्कि तमिलनाडु के कई इलाके बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए। इस हादसे में तमिलनाडु में169 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि आंध्र प्रदेश में 54 लोग मारे गए।