चेन्नई-अभिनेता सूर्या अभिनीत फिल्म ‘जय भीम’ के निर्देशक टीजे ज्ञानवेल ने रविवार को कहा कि उनका किसी विशेष समुदाय को आहत करने का कोई इरादा नहीं था और जिन्हें भी उससे ठेस पहुंची उसके लिए वह खेद प्रकट करते हैं.
तमिल और तेलुगु सहित अन्य भाषाओं में 1 नवंबर को रिलीज़ हुई ‘जय भीम’ पर तमिलनाडु में विवाद खड़ा हो गया है, जहां वन्नियार संगम और समुदाय के सदस्यों ने आरोप लगाया कि फिल्म में उन्हें खराब तरीके से चित्रित किया गया है. फिल्म को ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन-प्राइम वीडियो पर रिलीज किया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, वन्नियार समुदाय तमिलनाडु में एक पिछड़ी जाति मानी जाती है, जिसने आरोप लगाया कि फिल्म में इसे एक नकारात्मक ढंग में चित्रित किया है और यह झूठा, दुर्भावनापूर्ण और मानहानिकारक है.
वन्नियार संगम ने फिल्म में पुलिस उप-निरीक्षक का किरदार, जिन्होंने इरुला आदिवासी व्यक्ति को प्रताड़ित किया था, का असली नाम एंथनीसामी से गुरु (गुरुमूर्ति) में बदलने पर विशेष आपत्ति जताई है. कहा है कि इस नाम परिवर्तन का उद्देश्य समुदाय को लक्षित करना था.
इसके अलावा, फिल्म के एक दृश्य में पृष्ठभूमि में एक कैलेंडर में एक अग्नि कुंडम (आग का बर्तन), जिसे वन्नियार समुदाय का एक प्रतीक माना जाता है. उसके सामने निर्दोष आदिवासी व्यक्ति को मौत के घाट उतारने वाले पुलिस एसआई को दिखाया जाना है, जिसे वन्नियार समुदाय की कथित बदनामी बताया जा रहा है.
तमिल में लिखे गए एक बयान, जिसे उन्होंने ट्विटर पर साझा किया है, में उन्होंने फिल्म और उसके बाद के विवाद की पूरी जिम्मेदारी ली है और कहा कि नाराज समुदाय द्वारा अभिनेता सूर्या को निशाना बनाना अनुचित है, जिन्होंने फिल्म में नायक की भूमिका निभाई है.
ज्ञानवेल ने इस बात पर जोर दिया कि फिल्म के निर्माण में किसी व्यक्ति या समुदाय का अपमान करने का थोड़ा-सा भी विचार नहीं था. उन्होंने कहा, ‘जिन्हें भी इससे ठेस पहुंची उनके प्रति मैं दिल से खेद व्यक्त करता हूं.’
फिल्म निर्देशक ने विवाद के मद्देनजर सूर्या को हुई परेशानी के लिए भी खेद व्यक्त किया, जो फिल्म के मुख्य अभिनेता और जय भीम के निर्माता हैं.
ज्ञानवेल ने एक बयान में दावा किया, ‘मुझे नहीं पता था कि पृष्ठभूमि में लटकाए गए कैलेंडर को एक समुदाय के संदर्भ के रूप में समझा जाएगा. इसे किसी विशेष समुदाय के संदर्भ का प्रतीक बनाने का हमारा इरादा नहीं था और इसका मकसद वर्ष 1995 के समय को दिखाना था.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, ज्ञानवेल ने कहा कि फिल्मांकन या पोस्ट-प्रोडक्शन के दौरान कुछ सेकंड के लिए दिखाई देने वाले कैलेंडर फुटेज ने उनका ध्यान नहीं खींचा.
उन्होंने कहा, ‘अमेज़ॉन प्राइम पर फिल्म के प्रीमियर से पहले ही इसे कई लोगों के लिए प्रदर्शित किया गया था. अगर उस दौरान यह हमारे संज्ञान में आता, तो हम इसे रिलीज होने से पहले ही बदल देते.’
उन्होंने कहा, ‘ इसके जारी होने के बाद जब उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से पृष्ठभूमि में कैलेंडर के बारे में पता चला, अगले दिन सुबह ही इसे बदलने के सभी प्रयास किए गए थे.’
निर्देशक ने कहा, ‘चूंकि पृष्ठभूमि में कैलेंडर किसी के मांग करने से पहले ही बदल दिया गया था, मुझे विश्वास था कि हर कोई समझ जाएगा कि हमारा कोई उल्टा मकसद नहीं था.’
उन्होंने कहा, ‘सूर्या से जिम्मेदारी लेने के लिए कहना दुर्भाग्यपूर्ण है. निर्देशक के रूप में यह एक ऐसा मामला है जिसकी जिम्मेदारी मुझे अकेले ही लेनी है.’
रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 15 नवंबर को वन्नियार के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक जाति संस्था वन्नियार संगम के अध्यक्ष ने फिल्म के निर्माताओं को कानूनी नोटिस भेजा था, जिसमें ज्ञानवेल, सूर्या और उनकी पत्नी और फिल्म के निर्माता, अभिनेता ज्योतिका, प्रोडक्शन हाउस 2 डी एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, जो सूर्या और ज्योतिका द्वारा संचालित है और अमेज़ॉन का एक प्रतिनिधि, जहां फिल्म दिखाई जा रही है, के नाम शामिल थे.
कानूनी नोटिस में पुलिस अधिकारी के नाम-परिवर्तन के साथ-साथ जाति चिह्न वाले कैलेंडर का उल्लेख किया गया था, विशेष रूप से फिल्म ने वास्तविक दुनिया की घटना से कुछ तत्वों को बनाए रखते हुए भी ये बदलाव किए थे, जिसे लेकर आरोप लगाया गया था कि ये फैसले जानबूझकर वन्नियार समुदाय की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए लिए गए थे.
नोटिस में फिल्म के निर्माताओं से बिना शर्त माफी मांगने, वन्नियार समुदाय के संदर्भों को हटाने और नोटिस मिलने के सात दिनों के भीतर हर्जाने के तौर पर 5 करोड़ रुपये का भुगतान करने की मांग की गई थी.
इसके बाद, वन्नियार हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक राजनीतिक पार्टी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) के एक नेता द्वारा सूर्या पर हमला करने वाले को 1 लाख रुपये के इनाम की घोषणा के बाद भी सूर्या को कई धमकियां मिलीं. धमकियों के बाद अभिनेता के आवास पर सशस्त्र पुलिस तैनात की गई.
मालूम हो कि फिल्म ‘जय भीम’ साल 1995 में तमिलनाडु में हिरासत में यातना और एक ‘कोरवार’ आदिवासी समुदाय के व्यक्ति की मौत की सच्ची घटना की एक काल्पनिक कहानी है. अभिनेता सूर्या ने सेवानिवृत्त जस्टिस चंद्रू की भूमिका निभाई है जिन्होंने 1993 में एक वकील के रूप में मुकदमा लड़ा था.
फिल्म में आदिवासी व्यक्ति को इरुला जनजाति के रूप में चित्रित किया. वास्तविक जीवन की घटना से जुड़े लोगों के नाम, जैसे जस्टिस चंद्रू के नाम, जिन्होंने एक वकील के रूप में मद्रास उच्च न्यायालय में मामले की पैरवी की थी, को बरकरार रखा गया है.
कुछ नाम जैसे राजकन्नू की पत्नी (मूल नाम पार्वती, सेंगेनी में बदल दिया गया) और पुलिस उप निरीक्षक जिन्होंने अत्याचार किया, जिससे आदिवासी व्यक्ति की मृत्यु हो गई, उन्हें एंथनीसामी से गुरु (गुरुमूर्ति) में बदल दिया गया. बदले गए कैलेंडर में देवी लक्ष्मी की छवि थी.