बीते आठ अक्टूबर को जम्मू कश्मीर के रामबन ज़िले के तीन ब्लॉकों- बनिहाल, रामसू और उखराल के क़रीब 70 सरपंचों और पंचों ने विभिन्न मुद्दों को लेकर सामूहिक इस्तीफ़ा दे दिया था. उन्होंने निर्वाचित प्रतिनिधियों ने वादों के अनुसार सशक्तिरण नहीं करने, अनावश्यक हस्तक्षेप और केंद्रशासित प्रदेश में जनता तक पहुंचने के कार्यक्रमों में प्रशासन द्वारा उनकी अनदेखी किए जाने का आरोप लगाया था.
जम्मू: जम्मू कश्मीर के रामबन जिले के तीन ब्लॉक के करीब 70 सरपंचों एवं पंचों ने रविवार को वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक के बाद अपने इस्तीफे वापस ले लिए. दो दिन पहले उन्होंने वादे के मुताबिक सशक्तीकरण की कमी सहित विभिन्न मुद्दों पर सामूहिक इस्तीफा दे दिया था.
एक आधिकारिक प्रवक्ता ने रविवार शाम जम्मू में बताया कि बनिहाल और रामसू ब्लॉक के सरपंचों और पंचों ने रामबन के सहायक विकास आयुक्त (एसीडी) जमीर रिशु और जिला पंचायत अधिकारी (डीपीओ) अशोक कटोच के साथ बैठक के बाद अपने इस्तीफे वापस ले लिए.
उन्होंने कहा कि बनिहाल की ब्लॉक विकास अध्यक्ष (बीडीसी) रशीदा बेगम और रामसू के बीडीसी शफीक अहमद भी बैठक में मौजूद थे. बैठक में निर्वाचित प्रतिनिधियों को विभिन्न स्तरों पर होने वाली समस्याओं पर चर्चा की गई.
प्रवक्ता ने कहा कि सहायक विकास आयुक्त ने उन्हें प्राथमिकता के आधार पर उनकी समस्याओं का समाधान करने और उनके इलाकों में तय समय पर विकास कार्य कराने का आश्वासन दिया.
समाचार एजेंसी के मुताबिक, प्रवक्ता ने कहा, ‘उन्होंने सरपंचों और पंचों की शंकाओं को दूर करने के अलावा सर्दियों के मौसम की शुरुआत से पहले सभी विकास कार्यों को पूरा करने के लिए विकास प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए कहा है.’
प्रवक्ता ने बताया कि उन्होंने जिला विकास परिषद, बीडीसी और जिला विकास योजना की पंचायत क्षेत्र विकास कोष के तहत स्वीकृत विकास परियोजनाओं की प्रगति में तेजी लाने के लिए अंतर-विभागीय समन्वय की सुविधा प्रदान करने का भी आश्वासन दिया.
उन्होंने कहा कि सरपंचों और पंचों ने विभागों और पंचायती राज संस्थानों के बीच समन्वय की कमी सहित अपने मुद्दों को उठाया, जो प्रशासन द्वारा विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू की गई विकास प्रक्रिया में बाधा डालते हैं.
उन्होंने कहा कि उन्होंने अंतर विभागीय समन्वय बनाए रखने में जिला प्रशासन के हस्तक्षेप की मांग की थी.
निर्वाचित प्रतिनिधियों ने वादों के अनुसार सशक्तिरण नहीं करने, अनावश्यक हस्तक्षेप और केंद्रशासित प्रदेश में जनता तक पहुंचने के कार्यक्रमों में प्रशासन द्वारा उनकी अनदेखी किए जाने का आरोप लगाया था.