पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति और सैन्य शासक अयूब खान का 1965 में भारत के साथ जंग का कोई इरादा नहीं था। वह हतप्रभ रह गए थे, जब भारत ने हमला किया था।
यह कहना है अयूब खान के बेटे गौहर अयूब खान का। गौहर सेवानिवृत्त पाकिस्तानी सैन्य अफसर हैं। अब वह राजनीति में सक्रिय हैं। वह पाकिस्तान के विदेश मंत्री भी रह चुके हैं।
गौहर अपने पिता अयूब खान के कार्यकाल (1958-69) के दौरान उनके सहायक सैन्य सलाहकार थे। उन्होंने कहा कि छह सितंबर, 1965 को “भारतीय सेना ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर हमला कर” पाकिस्तानी सेना को चकित कर दिया था।
गौहर ने इस्लामाबाद से फोन पर आईएएनएस से विशेष बातचीत में कहा, “राष्ट्रपति अयूब, जो सेना के सर्वोच्च कमांडर भी थे, 1965 में भारत के साथ जंग नहीं चाहते थे। लेकिन, निश्चिततौर पर जंग हमने जीती थी।”
गौहर ने भारत पर आरोप लगाया कि यह उसी की नीतियों का नतीजा था कि बात जंग तक पहुंच गई।
भारत का साफ कहना रहा है कि जंग की शुरुआत पाकिस्तान ने की थी और उसे मुंह की खानी पड़ी थी। जंग में जीत भारत की हुई थी।
गौहर ने कहा कि अब कोई भी पक्ष युद्ध नहीं चाहता।
सीमा पर आए-दिन हो रही गोलीबारी के मसले पर अयूब ने कहा कि दोनों पक्षों को सीमा पर शांति बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि हमें शांति चाहिए। हम कई युद्ध देख चुके हैं।”
गौहर ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर में तनाव और आतंकवादियों के खिलाफ अभियान की वजह से 1965 में स्थितियां विस्फोटक हुईं और इसका नतीजा ‘भारत के हमले’ की शक्ल में सामने आया।
उन्होंने कहा कि सीमा पर अर्धसैनिक बल तैनात थे। भारतीय फौज उन्हें पीछे हटाने में कामयाब रही थी, लेकिन लाहौर या सियालकोट में ऐसा नहीं हो सका। पाकिस्तानी सेना से इन जगहों पर पार नहीं पा सकी थी भारतीय सेना।
गौहर ने जंग में भारत की जीत के दावे को खारिज किया।
उन्होंने कहा, “भारत के 2763 सैनिक मारे गए थे, 8444 घायल हुए थे, 220 टैंक और 36 विमान नष्ट हुए थे, 1607 सैनिक लापता हुए थे। पाकिस्तान के 1200 सैनिक मारे गए थे, 2000 घायल हुए थे, 132 टैंक और 19 विमान नष्ट हुए थे। मुझे ताज्जुब होता है कि भारत कैसे कहता है कि जंग उसने जीती थी।”
उन्होंने कहा कि दोनों देशों पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव की वजह से ताशकंद में भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और राष्ट्रपति अयूब खान ने जंगबंदी के समझौते पर दस्तखत किए थे।
गौहर अयूब खान (78) अपनी इस बात पर कायम हैं कि “अगर भारत ने छह सितंबर को हमला न किया होता तो जंग न हुई होती।”