नई दिल्ली- ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जिसमें छोटे शहरों के उद्यमियों ने शहरों में उद्यमिता के क्षेत्र में अनुकरणीय सफलता हासिल की है। समय के साथ उद्यमिता की यह भावना और बलवती हुई है और छोटे शहरों के कुछ नए उद्यमियों ने यह साबित कर दिखाया है कि मेहनत और लगन से सफलता के मुकाम खड़े किए जा सकते हैं।
राजस्थान के भरतपुर जिले के उचैन कस्बे के अभिनव चौधरी ने अपने कुछ साथियों के साथ स्मार्टप्रिक्स डॉट कॉम की स्थापना की। आज तुलनात्मक खरीदारी के लिए यह सर्वोत्तम पोर्टल माना जा रहा है।
20 वर्षीय चौधरी ने आईएएनएस से कहा, “हमने कुछ ही उपयोगकर्ता के साथ पोर्टल शुरू की थी और आज हमारे मासिक उपयोगकर्ताओं की संख्या 60 लाख पहुंच चुकी है। जब लोग बताते हैं कि तुलनात्मक खरीदारी के लिए यह देश का सबसे बेहतर पोर्टल है, तो हम गर्व के साथ महसूस करते हैं कि कड़ी मेहनत के बाद हमने यह मुकाम हासिल किया है।”
स्मार्टप्रिक्स में स्नैपडील की भी हिस्सेदारी है।
पेपरटैप डॉट कॉम के सह-संस्थापक नवनीत सिंह उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के रहने वाले हैं।
नवनीत ने आईएएनएस से कहा, “मैं हमेशा से उद्यमी बनना चाहता था, लेकिन एक सुरक्षित नौकरी में रहने की सुविधा और सामाजिक प्रतिबद्धता ने मुझे बड़ा कदम उठाने से रोके रखा था। मैंने सात वर्षो तक विचार करने के बाद अपना उद्यम शुरू करने का फैसला किया।”
गुड़गांव के लोग एक एप के माध्यम से पेपरटैप डॉट कॉम से रोजमर्रा के सामान, फल और सब्जियां मंगवा सकते हैं।
जयपुर के दिवाकर चितोरा का उदाहरण लीजिए। राजस्थान की राजधानी में रहने के बावजूद इंटेलीपाट शुरू करने में उन्हें अवसंरचना संबंधी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। इंटेलीपाट एक ई-लर्निग वेबसाइट है।
चितोरा ने आईएएनएस से कहा, “इंटेलीपाट शुरू करने का मकसद लोगों को सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग की जरूरत के मुताबिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराना है।”
रोम की तरह उनके भी सपने एक दिन में पूरे नहीं हुए थे।
इन लोगों के लिए अपना कारोबार शुरू करना आसान नहीं था।
चौधरी ने कहा, “कई स्टार्टअप कंपनियां बुरी तरह से असफल रहती हैं। इसलिए आपको कठिन मेहनत करने के लिए तैयार रहना चाहिए। विस्तार से योजना बनाइए। आय के स्रोतों की सूची बनाइए। फिर सफलता पाने के लिए ईमानदारी से इसके पीछे लग जाइए।”
इन उद्यमियों ने कभी निराशा को अपने पास नहीं फटकने दिया।
नवनीत सिंह ने कहा, “मैं यह पढ़ता था कि फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसी कंपनियां मुकाम पर पहुंचीं। अटूट निष्ठा और लगन से कोई भी सफल हो सकता है। इस सोच से मुझे सर्वाधिक प्रेरणा मिली।”
चितोरा ने कहा, “मुझे सबसे अधिक अवसंरचना और संसाधन संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कई बार तेज रफ्तार वाली लाइन की कमी खली, तो जहां यह थी, वहां कनेक्शन को चालू होने में एक से दो महीना लग गया।”
चितोरा ने कहा, “कुशल कर्मचारी हासिल करना भी कठिन था।”
आज इन उद्यमियों को अपने कठिन परिश्रम का लाभ मिल रहा है और छोटे शहरों में प्रस्फुटित हुआ सपना पहले से बड़ा और बेहतर हो गया है।