रायपुर, 16 मार्च (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ में पानी के उपयोग, प्रबंधन और संरक्षण को लेकर नीति बनाई जाएगी। नीति का निर्धारण आम लोगों के सहयोग से किया जाएगा। नीति निर्धारण करते वक्त पानी के वैज्ञानिक तरीके से उपयोग, पीने का साफ पानी, उद्योगों की जरूरत आदि से लेकर राज्य में प्रचलित पारंपरिक संरक्षण के उपायों को भी इसमें शामिल किया जाएगा।
यह फैसला छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग और कंजर्वेशन कोर सोसाइटी की ओर से हुई परिचर्चा जल संवाद के बाद किया गया।
छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष सुनील कुमार ने कहा, ‘प्रदेश में हालांकि पर्याप्त मात्रा में पानी है, लेकिन इसका संतुलित और संयमित उपयोग नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ी के लिए पानी बचा पाना कठिन हो जाएगा। इस लिहाज से प्रदेश में एक जल नीति तैयार की जाएगी। नीति तैयार करने से पहले हर तबके के लोगों से चर्चा होगी। वैज्ञानिक उपायों से लेकर पारंपरिक ज्ञान को नीति में शामिल किया जाएगा।”
दो दिन चली परिचर्चा के बाद यह तथ्य सामने आए कि प्रदेश पानी के मामले में समृद्ध है। बारिश का 80 फीसदी हिस्सा नदियों से बहकर समुद्रों में चला जाता है। लेकिन यह पानी बर्बाद नहीं होता है। यह नदियों के ईको सिस्टम के लिए जरूरी है, इसे जगह-जगह एनिकट बनाकर रोकने से नदी के ईको सिस्टम पर असर पड़ता है और नदी में मौजूद जीव-जंतुओं का जीवन इससे बुरी तरह प्रभावित होता है।
वहीं प्रदेशभर में बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास की जरूरत है। इसके लिए स्वयं सहायता समूहों, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) और मीडिया के सहयोग से जनजागरुकता फैलाने की जरूरत है, ताकि आम लोग पानी के संरक्षण के उपायों को समझ सकें और उससे जुड़ सकें।
सूबे में पानी के प्रबंधन, गुणवत्ता, जैव विविधता, इकोलॉजी आदि पर शोध के लिए बिलासपुर के केंद्रीय विश्वविद्यालय में शोध कराया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार केंद्रीय विश्वविद्यालय का सहयोग करेगी। यहां होने वाले शोध का फायदा प्रदेश को मिलेगा।
राज्य सरकार जल्द ही पीने का पानी या जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वालों को सम्मानित करेगी। इसके लिए ग्राम पंचायत और शहर स्तर पर अलग-अलग पुरस्कारों की घोषणा होगी। इसके लिए जल्द ही पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा नगरीय प्रशासन विभाग की ओर से निर्देश जारी किए जाएंगे।