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 छत्तीसगढ़ में गणेश पूजा का इतिहास हजारों साल पुराना | dharmpath.com

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छत्तीसगढ़ में गणेश पूजा का इतिहास हजारों साल पुराना

September 17, 2015 8:15 pm by: Category: धर्म-अध्यात्म Comments Off on छत्तीसगढ़ में गणेश पूजा का इतिहास हजारों साल पुराना A+ / A-

ganesh jiराज्य के सिरपुर में मिले गणेश प्रतिमाओं में एकदंत गणेशजी का दांत बाईं ओर दिखाया गया है। वहीं बस्तर संभाग के बारसूर स्थित गणेश की मूर्ति विश्व की तीसरी सबसे बड़ी गणेश की मूर्ति है। बारसूर की यह प्रतिमा एक पत्थर से ही निर्मित है। वहीं भोरमदेवगुड़ी (बीजापुर) में गणेशजी की विशाल मूर्ति किरीट मुकुट धारण किए हुए हैं।

वहीं पुरातत्वविद् डॉ. अरुण शर्मा ने वीएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि सिरपुर, राजिम की खुदाई में गणेश की बहुत सारी मूर्तियां मिली हैं। इन मूर्तियों से साफ जाहिर होता है कि छग में गणेश पूजन 15 सौ से 2 हजार साल पहले से ही छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध रही है।

शर्मा का कहना है कि सिरपुर में गणेशजी के कई स्वतंत्र मंदिर भी प्राप्त हुए हैं। सिरपुर में कुछ मूर्तियां शिवजी के सामन जटा मुकुट में भी मिली हैं, जिसके हाथों में दांत का एक टुकड़ा, एक हाथ में नींबू, एक हाथ में सेब, गाजर और एक हाथ लड्डुओं से भरा बर्तन और एक हाथ में मोदक लिए हुए है।

डॉ. शर्मा का कहना है कि गुप्तकाल में गणेशजी की मूर्ति का वर्णन वृहत संहिता के प्रतिमा लक्षण में मिलता है।

उन्होंने आगे बताया कि बस्तर के बारसूर में निर्मित गणेशजी की प्रतिमा को विश्व की सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा माना गया है। गणेश की वह प्रतिमा एक ही पत्थर से निर्मित है। बीजापुर के भोरमदेव गुड़ी में गणेश की विशाल मूर्ति किरीट मुकुट धारण किए हुए है। छोटे डोंगर की पहाड़ पर भी गणेश जी अद्भुत प्रतिमा है।

सिरपुर में मिली अधिकांश मूर्तियां पांचवीं शताब्दी की हैं। कुछ गणपति की प्रतिमाएं दो हाथ वाले, बड़े पेट वाले और बैठे हुए मुद्रा में हैं। ये प्रतिमाएं ईसा से दूसरी शताब्दी तक की हैं।

गौरतलब है कि जगदलपुर स्थित बारसूर का इतिहास एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है, जहां ग्यारहवीं शताब्दी या उससे भी पहले निर्मित गणेश प्रतिमा को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी गणेश मूर्ति के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह 147 तालाबों सहित मंदिरों के शहर के रूप में भी इतिहास में प्रसिद्ध है। बारसूर के बत्तीसा मंदिर का निर्माण सन् 1030 ईस्वी में तत्कालीन नागवंशी नरेश सोमेश्वर देव की रानी ने करवाया था।

यह मंदिर 32 पाषाण स्तंभों पर निर्मित है, जहां दो शिवालय भी हैं। बारसूर में गणेश प्रतिमा और बत्तीसा मंदिर सहित मामा-भांजा के मंदिर और कुछ अन्य पुरातात्विक स्मारकों का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जा रहा है। बारसूर को बाणासुर की राजधानी माना गया है। यहां पौराणिक महत्व की गणेशजी की युगल प्रतिमाएं स्थापित हैं। गणेशजी की यह प्रतिमा दक्षिणमुखी है।

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