रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार ने सरगुजा क्षेत्र के हसदेव अरण्य जंगल में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को आवंटित तीन प्रस्तावित कोयला खदान परियोजनाओं पर कार्यवाही रोक दी है. अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी.
हसदेव अरण्य क्षेत्र के स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता कोयला खनन परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं. आंदोलनकारियों का कहना है कि जैव विविधता संपन्न और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील इस क्षेत्र में खनन न केवल आदिवासियों को विस्थापित करेगा, बल्कि पर्यावरण को बड़े पैमाने पर नष्ट करेगा. साथ ही क्षेत्र में मानव-हाथी संघर्ष भी बढ़ेगा.
विरोध के दौरान राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने बीते छह जून को स्थानीय लोगों के समर्थन में हसदेव अरण्य क्षेत्र का दौरा किया था और कहा था कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ गोली या लाठी चलाई जाएगी, तब वह सबसे पहले इसका सामना करेंगे.
अगले ही दिन उनके बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि यदि सिंहदेव नहीं चाहते कि कोयला खदान परियोजनाओं के लिए पेड़ काटे जाएं तो एक भी शाखा नहीं काटी जाएगी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘चूंकि सिंहदेव क्षेत्र के प्रतिनिधि हैं, इसलिए उनकी आवाज को लोगों की आवाज माना जाता है. उनके विरोध के कारण मुख्यमंत्री के निर्देश के अनुसार, हमने सभी काम रोकने का फैसला किया है.’
खनन परियोजनाओं को रोके जाने की पुष्टि करते हुए सरगुजा के जिलाधिकारी संजीव झा ने बृहस्पतिवार को बताया, ‘तीन आगामी परियोजनाएं – परसा, परसा पूर्व और कांते बेसन (पीईकेबी) का दूसरा चरण और कांते एक्सटेंशन कोयला खदान जो खदान शुरू होने से पहले विभिन्न चरणों में हैं, को अगले आदेश तक के लिए रोक दिया गया है.’
झा ने बताया, ‘मंत्री और स्थानीय विधायक सिंहदेव के प्रदर्शनकारियों के समर्थन में आने के बाद यह फैसला किया गया है. इसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा था कि यदि मंत्री ऐसा नहीं चाहते हैं तो एक भी शाखा नहीं काटी जाएगी.’उन्होंने कहा कि स्थानीय जनप्रतिनिधि की सहमति के बिना प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा.
जिलाधिकारी ने बताया, ‘पीईकेबी के दूसरे चरण परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों के पुनर्वास के लिए आठ जून को होने वाली ग्रामसभा को रद्द कर दिया है. इसी तरह कांते एक्सटेंशन के पर्यावरण मंजूरी के लिए 13 जून को होने वाली जनसुनवाई को भी रद्द कर दिया गया है. कानूनी प्रक्रियाओं के अलावा पीईकेबी के दूसरे चरण और परसा कोयला खदान के लिए पेड़ों की कटाई भी रोक दी गई है.’
झा ने बताया कि तीनों खदानें राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित की गई हैं तथा अडानी समूह (माइन डेवलपर और आपरेटर) के रूप में इससे जुड़ा है. उन्होंने बताया कि क्षेत्र के जिन खदानों में काम चल रहा है वे खदानें काम करती रहेंगी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जिला प्राधिकारियों के अनुसार पीईकेबी परियोजना के दूसरे चरण के मुआवजे के बारे में जनसुनवाई, शुरू में 28 मई के लिए निर्धारित की गई थी और बाद में 4 जून और फिर 8 जून को तय किया गया था, आधिकारिक रूप से रद्द कर दिया गया है.
हालांकि ग्रामसभा (सुनवाई के लिए बैठक) बुलाने की शक्ति रखने वाले ग्राम सरपंच और अन्य लोगों को बीते 9 जून को ही इसके रद्द करने के बारे में जानकारी मिली. जिला अधिकारियों ने 7 जून को पत्र जारी किया था, अगले दिन निर्धारित ग्राम सभा को रद्द कर दिया, यह जानकारी 9 जून को ग्राम प्रधानों के पास पहुंची – तब तक ग्राम सभा बुलाई जा चुकी थी और इसने अपना फैसला दर्ज कर लिया था.
बीते आठ जून को घाटबर्रा की ग्रामसभा ने सर्वसम्मति से अपनी जमीनों को खनन के लिए नहीं बेचने का फैसला किया था.. रजिस्टर में यह भी दर्ज किया गया कि सरकारी अधिकारी जनसुनवाई से गायब थे.
राज्य सरकार ने हाल ही में परसा खदान और पीईकेबी के दूसरे चरण के कोयला खनन परियोजनाओं के लिए अंतिम मंजूरी दी थी.
हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं.
इस साल की शुरुआत में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बघेल से क्षेत्र में खनन को मंजूरी देने का आग्रह करने के लिए रायपुर पहुंचे थे. अडानी इंटरप्राइजेज को दोनों ब्लॉकों में माइन डेवलपर और ऑपरेटर की जिम्मेदारी प्रदान की गई है.
खनन के खिलाफ आंदोलन करने वाले संगठनों में से एक ‘छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन’ ने दावा किया कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से 1,70,000 हेक्टेयर वन नष्ट हो जाएंगे और मानव-हाथी संघर्ष शुरू हो जाएगा.
हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था. हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.
केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दी थी. परसा क्षेत्र में आवंटित छह कोयला ब्लॉकों में से एक है.
खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने बीते छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दी थी.
यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई थी.