रायपुर, 22 मार्च (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ की बांसुरी की मांग इन दिनों इटली सहित कई पश्चिमी देशों में तेजी से बढ़ रही है। नई दिल्ली के एक एक्सपोर्ट हाउस ने हाल ही में दो हजार बांसुरियों का ऑर्डर बस्तर के शिल्पग्राम को दिया है।
राज्य के बस्तर में निर्मित होने वाले इस बांसुरी की खासियत है कि इसे फूंककर तो बजाया जाता ही है, साथ ही इसे लहराने से भी मधुर ध्वनि निकलती है। इसी वजह से अब यह बांसुरी विदेशों में खासी लोकप्रिय हो गई है।
बांसुरी के मास्टर ट्रेनर संतोष पॉल एवं प्राणजीत देबबर्मन ने बताया कि इस बांसुरी पर चित्रकारी करने के बाद इसकी मांग और ज्यादा बढ़ जाती है। गढ़बेंगाल के शिल्पी पंडीराम मडावी इसी कला के प्रदर्शन के लिए दो बार इटली और एक बार रूस की यात्रा कर चुके हैं।
नारायणपुर स्थित छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के क्षेत्रीय प्रबंधक बी.के. साहू ने बताया कि जादुई बांसुरी की मांग न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी खूब है। इटली, स्वीडन, फ्रांस, मेडागास्कर एवं अन्य देशों में इसे भेजा भी जाता है। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली, कोलकाता और मुंबई से अक्सर एक्सपोर्ट हाउस की ओर से इसकी मांग आती है।
इस बांसुरी को मुख्यत: बस्तर के गढ़बेंगाल के शिल्पी तैयार करते हैं। साथ ही इसे देश के महानगरों में संचालित छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के स्टॉल में बांस शिल्पों को बिक्री के लिए रखा जाता है। विदेशी और घरेलू पर्यटकों के बीच इसकी अच्छी खासी मांग है।
बस्तर में इस बांसुरी की कीमत महज सौ रुपये तक ही है, लेकिन विदेशों में इसे एक हजार रुपये में बेचा जाता है। इटली के मिलान शहर में तो ये बांसुरी अब हर घर की शोभा है।
नई दिल्ली के एक एक्सपोर्ट हाउस ने हाल ही में दो हजार बांसुरी का ऑर्डर दिया है। अभी शिल्प ग्राम में शिल्पी बांसुरी तैयार कर रहे हैं। सूरजकुंड में लगे मेले में भी इसकी काफी बिक्री हुई।
दूसरी ओर, इसका एक पहलू यह भी है कि शिल्पग्राम में रहने वाले 80 फीसदी लोग नक्सल पीड़ित हैं। वे अबूझमाड़ से आकर शिल्पग्राम में बसे हैं। इन्हें बांस की कलाकृति बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। अब वे इसमें पारंगत हो गए हैं। इनमें महिलाएं अधिक हैं। यही शिल्पी अब अपने हुनर का न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी लोहा मनवा रहे हैं।