नई दिल्ली- छत्तीसगढ़ के जैव-विविधता संपन्न हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदानों को मंजूरी के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों के बीच राज्य के वन विभाग ने सोमवार को परसा ईस्ट कांते बेसन (पीईकेबी) कोयला खदान में खनन के दूसरे चरण के लिए पेड़ों को काटना शुरू कर दिया.
हालांकि, इस कदम के विरोध में बड़ी संख्या में ग्रामीणों द्वारा प्रदर्शन करने के बाद इसे रोक दिया गया. अधिकारियों ने कहा कि कार्रवाई रोके जाने से पहले 50-60 पेड़ काटे गए थे, जबकि ग्रामीणों का दावा है कि करीब 250 पेड़ काटे गए.
इस साल मार्च में राज्य की कांग्रेस नेतृत्व वाली भूपेश बघेल सरकार ने सरगुजा जिले में पीईकेबी दूसरे चरण के कोयला खनन के लिए वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग के लिए अंतिम मंजूरी दी थी.
सरगुजा जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विवेक शुक्ला ने बताया कि वन विभाग ने सोमवार सुबह घाटबर्रा गांव से लगे पेंड्रामार जंगल में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी थी. इस दौरान बड़ी संख्या में ग्रामीण वहां पहुंच गए और कटाई का विरोध करने लगे.
शुक्ला ने बताया कि ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए क्षेत्र में पेड़ों की कटाई रोक दी गई और ग्रामीणों को शांत किया गया.
घाटबर्रा ग्राम पंचायत के सरपंच जयनंदन पोर्ते ने दावा किया है कि पीईकेबी के दूसरे चरण के खनन की अनुमति फर्जी ग्राम सभा की सहमति के आधार पर दी गई है.
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, ‘पीईकेबी के दूसरे चरण के लिए ग्राम सभा 2019 में आयोजित की गई थी, जिसकी आधिकारिक जानकारी उस समय घाटबर्रा के ग्रामीणों को नहीं दी गई थी. दरअसल, उस ग्राम सभा के हाजिरी रजिस्टर में गांव के तीन निवासियों के हस्ताक्षर हैं, जिनकी 2019 से पहले मौत हो गई थी. वह ग्राम सभा पूरी तरह से फर्जी थी, लेकिन दुर्भाग्य से इसके आधार पर खनन के लिए मंजूरी दे दी गई थी. हमने इसकी जांच की मांग की है.’
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए) के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में कैम्ब्रिज में कहा था कि उन्हें हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को मंजूरी देने के फैसले से समस्या है, लेकिन इसके बावजूद आश्चर्यजनक रूप से पेड़ों की कटाई शुरू हो गई.
अधिकारियों के अनुसार, पीईकेबी ब्लॉक में 762 हेक्टेयर भूमि में खनन का पहला चरण, जिसे 2007 में आरवीयूएनएल को आवंटित किया गया था, 2013 में शुरू किया गया था और पूरा हो गया है. परसा ब्लॉक 2015 में आवंटित किया गया था.
पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में जैव विविधता के विनाश को लेकर चिंता चिंता जताई जा रही है. जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया है, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान के दो अध्ययनों ने ‘इस क्षेत्र में जैव विविधता के महत्व को रेखांकित किया है कि खनन निस्संदेह इसे प्रभावित करेगा.’
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद का कहना था कि क्षेत्र के प्रस्तावित 23 कोयला ब्लॉकों में से 14 को मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए.
उन्होंने मानव-हाथी संघर्ष पर भी बात की और कहा था कि छत्तीसगढ़ में अन्य राज्यों के मुकाबले हाथियों की संख्या कम है.
ग्रामीणों ने यह भी कहा है कि इस परियोजना से उनकी भूमि तक पहुंच और उनकी आजीविका प्रभावित होगी और इस मुद्दे पर लंबे समय से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. अक्टूबर 2021 में ‘अवैध’ भूमि अधिग्रहण के विरोध में आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोगों द्वारा रायपुर तक 300 किलोमीटर पदयात्रा की गई थी.
हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.
हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था.
हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.
केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दी थी. परसा आदिवासियों के आंदोलन के बावजूद क्षेत्र में आवंटित छह कोयला ब्लॉकों में से एक है.
खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने बीते छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दे दी थी.
यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई थी.