वन्यप्राणियों की सुरक्षा के साथ ही जंगलों में आने-जाने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए डेंजर जोन की जरूरत महसूस की जा रही है।
वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, जिले में कुल एक हजार 5.19 वर्ग किलोमीटर में जंगल फैला हुआ है, जिसे वन विभाग ने 109 बीटों में विभाजित किया है। जंगल में सैकड़ों की तादाद में विभिन्न प्रकार के शाकाहारी व मांसाहारी वन्यप्राणी रहते हैं।
वन विभाग के मुताबिक, जिले में सबसे अधिक खतरा भालुओं से है। अब तक भालूओं ने रहवासी इलाकों में घुसकर जहां जनहानि पहुंचाई है, वहीं फसल हानि भी की है।
विभाग द्वारा वर्ष 2005 में जंगलों में निवासरत वन्यप्राणियों की गणना के लिए किए गए सर्वे में करीब 15 हजार 180 वन्यप्राणी पाए गए थे, जिसमें भालुओं की संख्या 832 है। इसके अलावा चीतल 609, सांभर 77, कोटरी 703, चौसींगा 27, नील गाय 33, जंगली सुअर 1979, बायसन (गौर) 55, जंगली लंगूर 1454, लाल मुंहवाले बंदर 799, साही 248, खरगोश 3096, लकड़बग्घा 626, लोमड़ी 920, सियार 1423, जंगली बिल्ली 750, सोनकुत्ता 34 और मोर 402 शामिल हैं।
जंगलों में अगर डेंजर जोन चिह्न्ति की जाती, तो ऐसे वनक्षेत्रों में लोगों की आवाजाही पूरी तरह से प्रतिबंधित रखी जाती, जिससे इस क्षेत्र में रहने वाले वन्यप्राणियों को भी किसी तरह की दिक्कत नहीं होती और ना ही वहां पर जाने से लोगों को वन्यप्राणियों का शिकार बनना पड़ता।
गौरतलब है कि 13 मार्च को पटेवा क्षेत्र के छछान पहाड़ी में जंगलों से घिरे इलाके में महुआ बिनने गए एक युवक व एक वृद्ध को भालू के हमले का शिकार होना पड़ा था। इस घटना का पंचनामा तैयार करने गए वन विकास निगम के डिप्टी रेंजर को भी भालू के हमले का शिकार होना पड़ा था।
घटना के बाद भालू के एनकाउंटर के बाद से वन विभाग के सामने कई सवाल खड़े हो गए, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि अगर इस इलाके को डेंजर जोन घोषित किया गया होता और यहां पर लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित रहती तो यहां पर तीन लोगों की जानें नहीं जाती।
वन विभाग महासमुंद के डीएफओ एच.एल. रात्रे ने बताया कि जिले के जंगली क्षेत्र में डेंजर जोन चिह्नंकित हैं, लेकिन सूचना बोर्ड नहीं लगाए गए हैं। भालुओं का आंतक ज्यादा है, इसलिए जिले में 10 डेंजर जोन चिह्नंकित हैं। तेंदुआ के लिए अभी डेंजर जोन नहीं बनाया गया है।