बताया जाता है कि बंदियों द्वारा बनाई गई मूर्तियों की लागत मूल्य जेल प्रशासन वहन करेगी। वहीं, बिक्री की राशि जेल फंड में जमा होगी। बचत राशि का भुगतान कैदियों को रिहाई के वक्त किया जाएगा। इसके साथ ही जेल में सामाजिक एकता और अखंडता का परिचय देते हुए सभी धर्मो के लोग मिलकर गणेश की प्रतिमाएं बना रहे हैं।
जेलों में सभी धर्मो का समानता के आधार पर पर्वो को मनाया जाता है। खासकर राष्ट्रीय पर्वो को जेल में अखंडता से मनाया जाता है। उसी श्रृंखला में गणेशोत्सव पर्व की तैयारी भी धूम-धाम से की जा रही है।
आजीवन कारावास की सजा काट रहे केसरी लोकनाथ प्रेमनाथ साहू ने बताया कि उन्हें आठ साल पहले आजीवन कारावास की सजा हुई थी। उन्होंने बताया कि गणेश प्रतिमाओं का निर्माण वे अपनी सद्बुद्धि की प्राप्ति के लिए कर रहे हैं, ताकि जब वे सजा काटने के बाद जेल से बाहर निकलें तो सामाज में सामान्य जीवन यापन कर सके।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष 2015 में भी गणेशोत्सव में पहली बार राजधानी के बंदियों द्वारा बनाई गई मूर्तियां आकर्षण का केंद्र थी। इस वर्ष ऐसा पहली बार हुआ था, जब जेल बंदियों की बनाई मूर्तियां भी खुले बाजार में उपलब्ध थीं। वहीं इस साल भी बंदियों की बनाई मूर्तियां जेल एंपोरियम में खुले में उपलब्ध रहेगी।
प्रदेश के सबसे बड़े केद्रीय जेल में बंदियों द्वारा बनाई गई गणेश की मूर्ति देखकर राजधानी की जनता में कौतूहल है। इससे पहले भी रायपुर केंद्रीय जेल में कैदियों की बनाई गई तरह-तरह की चीजें बेची जाती हैं। जैसे-रायपुर में कैदियों के हाथों बुने गए सूती के कपड़े पूरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध हैं। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ केंद्रीय जेल के बंदियों द्वारा संचालित मुगौड़ी सेंटर काफी प्रसिद्ध है।