नई दिल्ली, 10 अप्रैल (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि राजनीतिक वित्तपोषण में कालेधन पर लगाम लगाने के लिए चुनावी बांड की सूचना की गोपनीयता जरूरी है। हालांकि चुनाव आयोग की राय इसके विपरीत है।
केंद्र सरकार ने इस संबंध में अपनी राय रखते हुए शीर्ष अदालत को बताया कि तंत्र में कालेधन के प्रवाह पर रोक लगाने में दानदाताओं के नाम अज्ञात रखना क्यों एक सकारात्मक कदम है।
महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने अपना तर्क देते हुए कहा, “चुनावी बांड का मकसद राजनीतिक वित्तपोषण में कालेधन को समाप्त करना है, क्योंकि सरकार की ओर से चुनाव के लिए कोई धन नहीं दिया जाता है और राजनीतिक दलों को समर्थकों, अमीर लोगों आदि से धन मिलता है। धन देने वाले चाहते हैं कि उनका राजनीतिक दल सत्ता में आए। ऐसे में अगर उनकी पार्टी सत्ता में नहीं आती है तो उनको इसका परिणाम भुगतना पड़ सकता है, इसलिए गोपनीयता जरूरी है।”
सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि कई कंपनियां विभिन्न कारणों से अपना नाम अज्ञात रखना चाहती हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई कंपनी किसी दल को धन देती है और वह सत्ता में नहीं आती है तो कंपनी को उसके शेयरधारक दंडित कर सकते हैं।
महान्यायवादी ने कहा कि चुनावी बांड द्वारा दिया गया दान सही मायने में सफेद धन होता है। उन्होंने कहा कि अगर एजेंसियां धन के स्रोत को सुनिश्चित करना चाहती हैं तो वे बैंकिंग चैनलों के माध्यम से जांच कर सकती हैं।
चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि सरकार हालांकि चुनावी बांड में दानदाताओं के नाम को अज्ञात रखने के पक्ष में है, लेकिन निर्वाचन आयोग की राय इसके विपरीत है।
उन्होंने कहा, “हम चुनावी बांड के खिलाफ नहीं हैं। हम सिर्फ इससे जुड़ी गोपनीयता का विरोध करते हैं।”
चुनाव आयोग के वकील ने इस बात पर जोर दिया कि आयोग राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता चाहता है। उन्होंने कहा कि फंड देने वाले की और फंड लेने वाले की पहचान का खुलासा लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है। लोगों को अपने प्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों के बारे में जानने का अधिकार है।