चेन्नई, 9 अक्टूबर – दीवाली के दिन देश भर के घरों में खुशियां बांटने का काम करने वाले तमिलनाडु के सिवकासी कस्बे के पांच लाख परिवारों के घरों से इस वर्ष दीवाली में खुशियां नदारद होंगी। चीन से आने वाले पटाखों ने इनकी खुशियों पर मानो ग्रहण लगा दिया है।
तमिलनाडु फायरवर्क्स एंड एमोर्सेस मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (टीएनएफएएमए), सिवकासी के अध्यक्ष जी.अबीरूबेन ने आईएएनएस से कहा, “दो वर्ष पहले चीनी पटाखों का अवैध तौर पर आयात छिटपुट था, लेकिन इस वर्ष यह बहुतायत में हुआ है, जिसके कारण देश के पटाखा उद्योग पर संकट के बादल गहरा गए हैं।”
इस वर्ष लगभग 35 फीसदी पटाखे नहीं बिक पाए, क्योंकि उनकी जगह अवैध रूप में भारत पहुंचे चीनी पटाखों ने ले ली है।
उल्लेखनीय है कि छह हजार करोड़ रुपये का भारतीय पटाखा उद्योग चीनी पटाखों के कारण संकट के दौर से गुजरने को मजबूर है।
उद्योग विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक, लगभग 600 करोड़ रुपये मूल्य के चीनी पटाखों के लगभग दो हजार कंटेनर भारत पहुंचे हैं।
उद्योग के अधिकारियों ने शिकायत की है कि केंद्र सरकार ने पहले तो कहा था कि अवैध तौर पर चीनी पटाखों के भारत आयात करने वालों के खिलाफ चेतावनी स्वरूप समाचार पत्रों में विज्ञापन छपवाए जाएंगे, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है।
तमिलनाडु फायरवर्क्स एंड एमोर्सेस मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ सलाहकार समिति के सदस्य के.मरियप्पन ने आईएएनएस से कहा, “केंद्र सरकार पहले चीन से आने वाले पटाखों के कंटेनर को जब्त करने का काम करती थी। लेकिन उन्हें नष्ट करने की बजाय वे जुर्माना वसूलकर उन पटाखों को अवैध आयातकों को ही सौंप देती थी। और बाद में ये पटाखे आराम से बाजार पहुंच जाते थे।”
उल्लेखनीय है कि सिवकासी को कुट्टी या मिनी जापान के नाम से भी जाना जाता है और यह भारत का सबसे बड़ा और पुराना पटाखा निर्माण केंद्र है। देश के 90 फीसदी पटाखों का निर्माण सिवकासी में ही होता है। यही नहीं, देश में 80 फीसदी माचिस भी सिवकासी में ही बनती है।
इस उद्योग के फलने-फूलने के लिए कम वर्षा और शुष्क जलवायु की जरूरत होती है। यहां के कुछ उत्पादों का इस्तेमाल हवाई अड्डों पर पक्षियों को भगाने के लिए भी किया जाता है।
मरियप्पन के मुताबिक, पटाखों के आयात के लिए केंद्र सरकार से लाइसेंस लेने की जरूरत होती है। और आज की तारीख में किसी को भी ऐसा लाइसेंस जारी नहीं किया गया है।
भारतीय पटाखा उद्योग ने चीनी पटाखों के खतरे को तब भांपा, जब पटाखों की मांग में अचानक कमी आ गई।