बांदा, 16 दिसंबर – ‘धर्मातरण’ या ‘घर वासपी’ के मामले को लेकर संसद से लेकर सड़क तक मचे बवाल के बाद अब उन लोगों ने भी अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है, जिन्होंने कभी हिंदू धर्म छोड़ दूसरा धर्म अपना लिया था। इन्हीं में से एक विलियम सिंह ने सवाल उठाया है कि हिंदू धर्म में वापसी के बाद ऐसे लोगों को किस कौम में गिना जाएगा? क्या अछूत माने जाने की त्रासदी से मुक्त हुए इन लोगों को हिंदू धर्म के ‘ठेकेदार’ फिर से ‘अछूत’ बनाएंगे?
बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा जिले के बदौसा निवासी विलियम के पिता सरकारी शिक्षक रहे हैं। ईसाई धर्म अपनाने से पूर्व उनका ताल्लुक हिंदू धर्म में आने वाले अनुसूचित वर्ग की एक कौम से था। ऊंच-नीच के भेदभाव से तंग आकर उनके पूरे कुनबे ने 20-25 साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था। विलियम ने हिंदू धर्म त्यागने की वजह के बारे में कहा, “मेरे पिता सरकारी अध्यापक के अलावा एक अच्छे कलाकार भी थे। आसपास होने वाले शादी समारोहों के दौरान लोग उन्हें घर-आंगन की रंग-रोगन व सजावट के लिए बुलाया करते थे।”
उन्होंने बताया, “पड़ोस में एक उच्च वर्ग के घर में लड़की की शादी में पिताजी को सजावट के लिए बुलाया गया था, दिनभर काम करने के बाद उन्हें खाना दिया गया, मगर आंगन से बाहर जाकर खाने को कहा गया, क्योंकिउन्हें अछूत माना जाता था। पिताजी खाना छोड़कर अपने घर चले आए और हिंदू धर्म छोड़ने का संकल्प ले लिया।”
विलियम ने कहा कि उनका पूरा परिवार अब सामान्य वर्ग की श्रेणी में आता है।
हिंदूवादी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे ‘घर वापसी’ (धर्मातरण) अभियान के बारे में विलियम कहते हैं कि ज्यादातर अनुसूचित वर्ग से ताल्लुक रखने वाले परिवारों ने हिंदू धर्म छोड़कर अन्य धर्म अपनाया है। वह सवाल करते हैं कि अगर उनका परिवार ‘घर वापसी’ कर ले तो उच्च वर्गीय हिंदू धर्मावलंबी उनके परिवार को किस कौम में गिनेंगे? क्या ऊंच-नीच के भेदभाव से मुक्त हुए लोगों को फिर से ‘अछूत’ बनाया जाएगा?