बेंगलुरू, 10 अगस्त (आईएएनएस)। चीन में वैज्ञानिकों ने चावल की एक ऐसी किस्म का विकास किया है, जो इसकी खेती के कारण ग्लोबल वार्मिग तथा जलवायु परिवर्तन की चिंता को दूर करने की दिशा में एक क्रांतिकारी खोज साबित होगा।
चावल की खेती के कारण मिथेन गैस का उत्सर्जन होता है। कार्बन डाईऑक्साइड (सीओ2) के बाद मिथेन गैस दूसरा सबसे महत्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैस है, जो 20 फीसदी ग्लोबल वार्मिग के लिए जिम्मेदार है।
कृषि शोधकर्ताओं का मुख्य उद्देश्य चावल का उत्पादन बढ़ाना रहा है, लेकिन इसके कारण होने वाले मिथेन गैस उत्सर्जन की समस्या पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। वर्तमान में चावल की खेती के कारण मिथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए कृषि संबंधित गतिविधियां रही हैं जैसे जल प्रबंधन, फर्टिलाइजर का इस्तेमाल, जुताई तथा फसल चयन, लेकिन इसमें बहुत मेहनत की जरूरत पड़ती है।
पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित एक रपट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने चावल की एक अभूतपूर्व नई किस्म ‘एसयूएसआईबीए 2’ का विकास किया है, जो न सिर्फ ज्यादा उत्पादन देने वाला है, बल्कि चावल की पारंपरिक किस्मों की तुलना में बहुत कम मिथेन का उत्सर्जन करता है।
चावल की इस नई किस्म का विकास चीन की फुजियान अकादमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेंज व हुनान एग्रीकल्चरल युनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने उपासाला की स्वीडन की युनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेंज व वाशिंगटन की पेसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किया है।
वैज्ञानिकों ने चावल की इस नई किस्म एसयूएसआईबीए 2 का विकास ‘ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर टेक्नोलॉजी’ का इस्तेमाल कर किया है, जिसमें जौ के जिंस का स्थानांतरण किया गया है।
चावल में पत्तियां व तना वातावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करती हैं और प्रकाश संश्लेषण द्वारा उसे शर्करा में बदल देती हैं। इस शर्करा का इस्तेमाल पौधे के बायोमास या संग्रहण यौगिक जैसे स्टार्च के निर्माण के लिए किया जाता है जिसे जड़, तना व चावल के दानों में संचित कर लिया जाता है।
ट्रांसजेनिक एसयूएसआईबीए 2 चावल की किस्म में तना व चावल के दानों में स्टार्च की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जबकि जड़ में बहुत कम। इसके कारण मिथेन गैस बनाने वाले सूक्ष्मजीवों के लिए मिथेन में परिवर्तन के लिए कार्बन की मात्रा कम होती है, जिसके कारण बहुत कम मिथेन का उत्सर्जन हो पाता है।
अध्ययन के मुताबिक, “चावल की खेती में मिथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए एसयूएसआईबीए 2 का इस्तेमाल ग्लोबल वार्मिग के संदर्भ में ज्यादा प्रासंगिक हो सकता है।”