Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/load.php on line 926

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826
 ग्रीन पीस को मिली राहत- विदेशी चंदा न्यायालय ने किया बहाल | dharmpath.com

Friday , 22 November 2024

Home » ब्लॉग से » ग्रीन पीस को मिली राहत- विदेशी चंदा न्यायालय ने किया बहाल

ग्रीन पीस को मिली राहत- विदेशी चंदा न्यायालय ने किया बहाल

January 22, 2015 8:44 am by: Category: ब्लॉग से Comments Off on ग्रीन पीस को मिली राहत- विदेशी चंदा न्यायालय ने किया बहाल A+ / A-

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से सामाजिक और पर्यावरणवादी स्वैच्छिक संस्था ग्रीनपीस को बड़ी राहत मिली है. उसका विदेशी चंदा बहाल कर दिया गया है. सरकार और कारोबार जगत के लिए भी इस फैसले में कुछ जरूरी संदेश हैं.

imagesपिछले साल भारत के गृह मंत्रालय ने ग्रीनपीस इंडिया के विदेशी चंदे को बंद कर दिया था. ग्रीनपीस ने इसे दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. कोर्ट के मुताबिक किसी व्यक्ति या संस्था का सोच सरकार के सोच से मेल नहीं खाता, इसका मतलब ये नहीं है कि वे गलत है या उनका सोचना राष्ट्रहित में नहीं है. इस फैसले की रोशनी में सिविल सोसायटी के आंदोलनकारी तबकों पर जब तब सरकारी कार्रवाई के खिलाफ भी एक उम्मीद देखी जा सकती है. कुछ अरसा पहले भी ग्रीनपीस कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की गई थी. उधर लंदन स्थित एसार कंपनी ने भी ग्रीनपीस इंडिया पर 500 करोड़ रुपए का मानहानि का मुकदमा किया हुआ है. ग्रीनपीस उन प्रमुख संगठनों में अग्रणी रहा है जो एसार के मध्यप्रदेश के महान में प्रस्तावित कोयला संयंत्र के विरोध में आवाज बुलंद करते रहे हैं.

साल की शुरुआत में ही ग्रीनपीस की वरिष्ठ कार्यकर्ता प्रिया पिल्लै को दिल्ली हवाई अड्डे पर रोक दिया गया था. वो लंदन में ब्रिटिश सांसदों के बीच कोयला खदानों की वजह से आदिवासियों और अन्य स्थानीय समुदायों के अधिकारों के उल्लंघन के बारे मे अपनी बात रखने जा रही थीं. उनका सवाल जायज है, “क्या भारत में उपेक्षित लोगों के लिये काम करना अपराध है?”

इससे पहले पिछले साल सितंबर में ग्रीनपीस के कैंपेनर तथा ब्रिटिश नागरिक बेन हर्गरेवेस को भारत में प्रवेश करने से रोक दिया गया था. लेकिन ऐसा नहीं है कि ग्रीनपीस जैसे संगठनों को भारत में ही सत्ताराजनीति का कोपभाजन बनना पड़ता है. दुनिया के कई हिस्सों में ऐसी संस्थाओं के एक्टिविस्ट सुरक्षा बलों की कार्रवाई की चपेट में आते रहे हैं. आखिर भारत तो अभिव्यक्ति के लोकतंत्र के लिए जाना जाता है. फिर सरकारें इतनी अधीर, सख्त और हमलावर क्यों हुई जा रही है.

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से सामाजिक और पर्यावरणवादी स्वैच्छिक संस्था ग्रीनपीस को बड़ी राहत मिली है. उसका विदेशी चंदा बहाल कर दिया गया है. सरकार और कारोबार जगत के लिए भी इस फैसले में कुछ जरूरी संदेश हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से सामाजिक और पर्यावरणवादी स्वैच्छिक संस्था ग्रीनपीस को बड़ी राहत मिली है. उसका विदेशी चंदा बहाल कर दिया गया है. सरकार और कारोबार जगत के लिए भी इस फैसले में कुछ जरूरी संदेश हैं.दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से सामाजिक और पर्यावरणवादी स्वैच्छिक संस्था ग्रीनपीस को बड़ी राहत मिली है. उसका विदेशी चंदा बहाल कर दिया गया है. सरकार और कारोबार जगत के लिए भी इस फैसले में कुछ जरूरी संदेश हैं.

पहली नजर में ये लग सकता है कि आखिर विकास का विरोध क्यों. इसका फायदा तो पूरी आबादी को ही तो मिलेगा. हां बेशक मिलेगा लेकिन कितना और कब तक. क्या कोई नजीर हमारे सामने है या शेयर बाजार या वृद्धि के उछलते गिरते आंकड़ों को ही पैमाना मानेंगे? कागजों पर तो तरक्की के मानदंड आकर्षक नजर आते हैं लेकिन जमीनी यथार्थ इन आंकड़ों की कलई खोलता हुआ दिखता है. टिहरी बांध से लेकर उड़ीसा के जंगलों तक जल, जंगल, जमीन पर काबिज निवेशवाद ने स्थानीय हितों को चोट पहुंचाई है. आखिर चिराग तले अंधेरा रहे ही क्यों.

कई मिसालें हैं जहां विकास, स्थानीय हितों के आगे वरदान बन कर नहीं बल्कि अभिशाप बन कर खड़ा है. और इसी अभिशाप से लड़ने के लिए नागरिक समाज के लोग आगे आते हैं और आते रहेंगे. उन्हें जाहिर है सरकार और कारोबार का भारी विरोध भी झेलते रहना होगा. लेकिन एक सामाजिक निवेश की बात जब हम करते हैं तो उसमें जनसमुदाय को भी बुनियादी रूप से शामिल करना होता है. पिछले ही दिनों ये अध्ययन सामने आया है कि दुनिया के एक फीसदी लोगों के पास दुनिया की सबसे ज्यादा दौलत है. आखिर विकास ही इकलौता नारा है तो ये अमीर गरीब की खाई बढ़ती क्यों जा रही है.

विकास को सहभागिता चाहिए. विकास कोई इंजेक्शन नहीं है जो आप बीमार और पिछड़े हुए समाज के शरीर पर जबरन पैबस्त कर देना चाहते हैं. ग्रीनपीस मामले से भी ये बात समझे जाने की जरूरत है.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी

ग्रीन पीस को मिली राहत- विदेशी चंदा न्यायालय ने किया बहाल Reviewed by on . [box type="info"]दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से सामाजिक और पर्यावरणवादी स्वैच्छिक संस्था ग्रीनपीस को बड़ी राहत मिली है. उसका विदेशी चंदा बहाल कर दिया गया है. सरकार [box type="info"]दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से सामाजिक और पर्यावरणवादी स्वैच्छिक संस्था ग्रीनपीस को बड़ी राहत मिली है. उसका विदेशी चंदा बहाल कर दिया गया है. सरकार Rating: 0
scroll to top