नई दिल्ली – भाजपा के शासन वाला राज्य गोवा बीफ पर पाबंदी नहीं लगाएगा। राज्य के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर ने इकनॉमिक टाइम्स को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के खाने का अहम हिस्सा है। पारसेकर का यह भी कहना था कि उनकी पार्टी को राज्य के ईसाइयों और मुसलमानों का भरोसा हासिल करने में कई साल लगे।
उन्होंने कहा, ‘हमें यह नहीं मतलब है कि केंद्र क्या करता है। गोवा में अल्पसंख्यक ३९-४० फीसदी हैं। अगर यह उनके खानपान का हिस्सा है और हम क्यों और कैसे इस पर पाबंदी लगा सकते हैं? लोगों खासतौर पर अल्पसंख्यकों के लिए बीफ उनके भोजन का हिस्सा है।’
हाल में भाजपा शासित दो राज्यों-महाराष्ट्र और हरियाणा में बीफ पर पाबंदी लगाई गई है। ऐसे में गोवा के मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी बेहद अहम है। इन राज्यों में हुए फैसले से इन अटकलों का बाजार भी गर्म हो गया है कि भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार बीफ के डिस्ट्रीब्यूशन और खपत पर पूरे देश में पाबंदी लगाने पर विचार कर सकती है।
पारसेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के राज्य स्तर के प्रतिनिधि भी रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि वह गोहत्या पर हिंदुओं के एक तबके की भावनाओं को समझते हैं। उन्होंने कहा, ‘गायों को मारे जाने पर भावनाएं आहत होती हैं, न कि बैलों और सांडों के मारे जाने पर। हम गायों को मारने की इजाजत नहीं देते और यहां तक कि बैलों को भी यहां (गोवा में) नहीं मारा जाता है। यह बीफ कर्नाटक से लाकर यहां बेचा जाता है, तो मुझे लगता है कि इस पर पाबंदी नहीं लगाई जानी चाहिए। यह कैथोलिक ईसाइयों और मुसलमानों का खाना है।’
गोवा के मुख्यमंत्री का यह भी कहना था कि मीडिया समेत कुछ तबकों की तरफ से चर्चों पर हाल में हुए हमलों का हवाला देकर भाजपा की अल्पसंख्यक विरोधी छवि बनाने की पुरजोर कोशिश चल रही है। उनके मुताबिक, ऐसी घटनाएं उन राज्यों में भी हो रही हैं, जहां भाजपा सत्ता में नहीं है। इसके बावजूद इसके लिए भाजपा को दोष दिया जा रहा है।
पारसेकर ने कहा कि भाजपा धीरे-धीरे बढ़ते हुए राज्य में पहली बार बहुमत की सरकार बनाने में इसलिए सफल रही, क्योंकि उसने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में भरोसा बनाया। उन्होंने कहा, ‘दरअसल, हम अल्पसंख्यक समुदाय को ज्यादा सुविधाएं देते हैं। गोवा में इस मामले में हम हमेशा एक कदम आगे रहते हैं।’ पारसेकर को गोवा की कुर्सी संभाले चार महीने हो चुके हैं और उनका यह सफर काफी आसान नहीं रहा है। महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एमजीपी) तेजी से राज्य में हिंदू वोटों में सेंध लगा रही है, जबकि कैथोलिक ईसाइयों का पार्टी को लेकर संदेह भी बढ़ रहा है। संघ ने १९८९ में पारसेकर को भाजपा में काम करने के लिए भेजा था।
नवभारत टाइम्स से