इंदौर। सामने जवान और होनहार बेटे की लाश रखी है और पिता डॉक्टरों के सामने हाथ जोड़कर कह रहे थे- मेरे बेटे के सारे अंग ले लो और इनसे दूसरों को जिंदगी दे दो। वो तो अब मेरे पास रहा नहीं, लेकिन इन अंगों से किसी का जीवन बन जाए तो मेरे बेटे का जीवन सार्थक हो जाएगा। पिता की हिम्मत और इंसानियत के आगे डॉक्टर भी भौंचक और भावुक हो गए। आखिर बेटे की किडनी, आंखें और स्किन दान हो गई। पिता ने तो लीवर भी दान करने की इच्छा जताई थी लेकिन समय के अभाव में ऐसा नहीं हो पाया। दो जरूरतमंदों को किडनी प्रत्यारोपित करने की प्रक्रिया शुरू भी हो गई।एक तरफ आंगन में जवान बेटे की अर्थी तैयार की जा रही थी। माहौल गमगीन था। दूसरी तरफ पिता को चिंता थी उन दो मरीजों की जिन्हें उनके मृत बेटे मनीष की किडनी लगाई गई है। आखिर उनसे रहा नहीं गया। शनिवार सुबह दो रिश्तेदारों को चोइथराम हॉस्पिटल भेजा। हॉस्पिटल पहुंचते ही रिश्तेदार दोनों मरीजों के परिजनों से मिले और पूछा कि ऑपरेशन ठीक से हो गया ना? खैरियत पूछने के बाद वे बोले- आपको स्वस्थ और खुश देखकर हमें तसल्ली होगी कि मनीष को फिर जीवन मिल गया। हमारे लिए यही बहुत है।
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