देहरादून। सरकार और वैज्ञानिकों के साथ ही संत भी देशभर में बन रहे बांधों के लिए दोषी है। गंगा के स्वरूप को बचाने के लिए संतों की जिम्मेदारी अधिक है, लेकिन शीर्ष पदों पर बैठे संत इसके लिए गंभीर नहीं है। यह बात स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (जीडी अग्रवाल) ने गंगा अविरलता चिंतन यात्रा के समापन पर कही। उन्होंने कहा कि जो गंगा का स्वरूप व अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष नहीं कर सकता। उसे गंगा जी की जय बोलने का अधिकार नहीं है।
गंगा को अविरल बहने दो नारे के साथ शुरू हुई तीन दिवसीय गंगा अविरलता चिंतन यात्रा रविवार को संपन्न हो गई। यात्रा के समापन पर आत्माराम धर्मशाला किशनपुर में यात्रियों ने पहाड़ में बन रहे बांध और उससे हो रहे नुकसान के बारे में यात्रा के अपने अनुभव साझा किए। वाराणसी से आए अतहर जमाल ने कहा कि बांध के नाम पर विकास का झूठा प्रचार राज्य सरकार कर रही है। जबकि हकीकत यह है कि बांध के कारण नदियों का स्वरूप नष्ट हो रहा है। साथ ही बांध क्षेत्र के आसपास के ग्रामीणों को भूस्खलन, जलस्त्रोत सूखने जैसी समस्याओं को जूझना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि खेदजनक है कि पुलिस प्रशासन ने यात्रियों को बांध को निकट से देखने का मौका नहीं दिया।
गंगा घाटी के कुंवर सिंह ने कहा कि जब से कोटेश्र्र्वर बांध की झील बनी है। उसके बाद भूस्खलन के कारण आसपास के गांवों में मकानों में दरारें आ गई हैं। जनपद रुद्रप्रयाग की सुशीला भंडारी ने कहा कि बांध के कारण जल, जंगल और जमीन से ग्रामीण बेदखल हो रहे हैं। पहाड़ को बांध से विकास नहीं सिर्फ विनाश मिल रहा है। कार्यक्रम का संचालन हेमंत ध्यानी ने दिया। इस अवसर रमेश चोपड़ा, वागीश, रमेश उपाध्याय, बचन सिंह आदि मौजूद थे।