पतित पावनी मां गंगा हमारी संस्कृति की मूलधारा हैं। सनातन धर्म का विकास मां गंगा की पावन गोद में हुआ है सभी राष्ट्रप्रेमी लोगों का दायित्व है वे यथा संभव ऐसा प्रयास करे कि भारतीय संस्कृति एवं अध्यात्म की श्रोत सुरसरि गंगा का प्रवाह सतत बना रहे। उक्त विचार स्वामी प्रज्ञानंद जी महाराज ने प्रवचन के दौरान यह विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जल और वायु का प्रदूषण जब पराकाष्ठा पर पहुंच जाता है तब पर्यावरण का असंतुलन अनेक प्राकृति विप्लवों एवं आपदाओं को जन्म देता है।
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