कुल मिलाकर इन अख़बारों का निर्णय यह है कि मोदी अमरीका के लिए ’फ़ैशन का प्रतीक’ बन गए हैं। इस सारे प्रचार का उद्देश्य भी स्पष्ट है कि अमरीकी जनता को यह समझाया जाए कि नरेन्द्र मोदी दंगों और तोड़फ़ोड़ को समर्थन देने वाले और मानवाधिकारों का हनन करने वाले वैसे नेता नहीं हैं, जैसी अभी हाल तक मीडिया ने उनकी छवि बना रखी थी, बल्कि वे तो एक नई क़िस्म के नेता है, जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
समाचारपत्र ’वाशिंगटन पोस्ट’ ने मोदी के ड्रेस-स्टाइल की सराहना करते हुए लिखा है — एक किनारे हो जाइए मिशेल ओबामा। दुनिया के सामने अब नया फ़ैशन प्रतीक आ गया है। और यह प्रतीक भारत के नए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी हैं।
समाचारपत्र ’न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने अपने लेख “ए लीडर हू इज़ व्हाट ही वियर्स” में कहा है कि भारत में आम तौर पर नेता अन्तरराष्ट्रीय नेताओं की तुलना में परिधान को बेहतर संवाद का जरिया समझते हैं। लेकिन मोदी का तो अन्दाज़ ही पूरी तरह से अलग है। रणनीतिक तौर पर भी वे सबसे अलग दिखाई देते हैं….।
’टाइम’ पत्रिका ने भी अपने लेख में कहा है — प्रतीत होता है कि नरेंद्र मोदी भारतीय फैशन की अगली बड़ी हलचल हैं। आगे कहा गया है उनका छोटा ट्यूनिक हो या मोदी कुर्ता हो, मोदी अपने स्टाइल बोध के लिए सबसे अलग लग रहे हैं। अमरीकी अख़बारों के इस अभियान पर टिप्पणी करते हुए रेडियो रूस के विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की कहते हैं :
अमरीकी अख़बारों ने यह जो अभियान चलाया है, इसमें दो बातों की ओर ध्यान देने की ज़रूरत है। पहली बात यह कि इन अख़बारों ने मोदी के परिधानों की प्रशंसा की है और उस सन्देश की तरफ़ भी ध्यान दिया है, जो मोदी भारतीय जनता को देना चाहते हैं। दूसरी बात यह है कि इन अख़बारों के पत्रकारों ने मोदी के आने से भारत की घरेलू और विदेश नीति में आने वाले परिवर्तनों की जगह उनके कपड़ों की ओर ध्यान देना ज़रूरी समझा है। सवाल उठता है कि क्या ऐसा अचानक ही हुआ है कि एक साथ अमरीका के तीन प्रमुख समाचारपत्रों ने इस बारे में लेख प्रकाशित कर दिए।
यदि नरेन्द्र मोदी के पहरावे के बारे में बात की जाए तो वह पहरावा उनकी उस छवि के अनुकूल है, जो छवि वे अपनी बनाना चाहते हैं। वे ख़ुद को ऐसे आदमी के रूप में पेश करना चाहते हैं, जो आम जनता का आदमी है, आम जनता से निकलकर बाहर आया है, लेकिन फिर भी जनता से जुड़ा हुआ है। बात सिर्फ़ मोदी कुर्ते और उनकी छोटी जैकेट की ही नहीं है। यह तथ्य भी मोदी की छवि को जनता से जोड़ता है कि मोदी ने अच्छी अँग्रेज़ी जानने के बावजूद शपथग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए आए सभी विदेशी नेताओं से हिन्दी में ही बात की। चाहे वे श्रीलंका के राष्ट्रपति हों या ओमान के सुल्तान के विशेष प्रतिनिधि, जो अँग्रेज़ी ही बोल रहे थे। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :
भारतीय राजनीतिज्ञों के लिए उनका पहरावा हमेशा से ही महत्त्वपूर्ण रहा है। इस बात का सिर्फ़ अन्दाज़ ही लगाया जा सकता है कि अमरीकी फ़ैशन विशेषज्ञ तब क्या करते, यदि चुनाव में भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वाले योद्धा अरविन्द केजरीवाल की जीत हो जाती, जो आम तौर पर सफ़ेद कपड़े पहनना पसन्द करते हैं और सिर पर सफ़ेद गाँधी टोपी लगाते हैं। यह गाँधी टोपी भारत में ब्रिटिश शासन के दौर में जेलों में बन्द क़ैदी लगाया करते थे और बाद में पण्डित जवाहरलाल नेहरू भी लगाने लगे थे। यह टोपी भारत की आज़ादी की लड़ाई के दौर में उपनिवेशवादी दमन के विरुद्ध आज़ादी का प्रतीक बन गई थी और आज़ादी के सभी दीवाने इसे लगाने लगे थे। उसके बाद भारतीय समाज में गाँधी टोपी की पहचान बदल गई थी और पिछली सदी के आठवें-नौवें दशक की भारतीय फ़िल्मों में भ्रष्ट सरकारी अधिकारी और माफ़िया से जुड़े भ्रष्ट नेता ही गाँधी टोपी पहने नज़र आते हैं। केजरीवाल ने उस गाँधी टोपी को उसकी पुरानी पहचान दिलाने की कोशिश की। लेकिन वे अपने अभियान में असफल रहे। कम से कम अभी तक तो असफल ही रहे हैं।
लेकिन कुछ दूसरी बातें भी हैं, जिनकी वज़ह से अमरीकी अख़बारों ने एक साथ मिलकर इस तरह का प्रचार अभियान शुरू किया। रेडियो रूस के विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :
बात यह है कि आज वाशिंगटन जल्दी से जल्दी यह चाहता है कि लोगों की स्मृति से यह बात धुल जाए कि कभी मोदी अमरीका के लिए अवांछनीय व्यक्ति हुआ करते थे और अमरीकी विदेश मन्त्रालय उन्हें वीजा देने के लिए तैयार नहीं था। अमरीकी शासक चाहते हैं कि न सिर्फ़ नरेन्द्र मोदी इस बात को भूल जाएँ, बल्कि अमरीकी जनता भी यह नहीं पूछे कि अमरीकी नीतियों में यह बदलाव कैसे आ गया। देर तक यह बताने और समझाने की जगह कि अमरीका को भारत से रिश्ते ख़राब करने में क्या नुक़सान होगा, सिर पर सफ़ेद बालों और सफ़ेद दाढ़ी वाले सुन्दर और अनोखी वेषभूषा वाले व्यक्ति की ख़ूबसूरत तस्वीर इस दृष्टि से कहीं ज़्यादा कारगर सिद्ध होगी।
’टाइम’ पत्रिका ने अपने लेख में इस बात को बड़ी सफ़ाई से अभिव्यक्त किया है। उसने लिखा है — नरेन्द्र मोदी अपने पहरावे के लिए उतने ही आदर के पात्र हैं, जितना उनका राजनीतिक जीवन विवादास्पद रहा है। इस बात से यह सिद्ध हो जाता है कि इन लेखों के प्रकाशन का एकमात्र उद्देश्य मोदी की तारीफ़ करके पीछे की खटास से मुक्ति पाना है।