अनिल सिंह (भोपाल)- मप्र में भाजपा ने प्रचंड बहुमत लाया जरूर लेकिन वह नरेन्द्र मोदी की राष्ट्रीय नीतियों के समर्थन में रहा.किसी भी नेता में इतना दम नहीं रहा जो राष्ट्रीयता की बात इस पैमाने पर निडर होकर कर सके,मोदी ने कॉंग्रेस की गलत नीतियों की नब्ज को पकड़ा और उसे एक दिशा दे दी जिसका फल आज सबके सामने है.
मप्र भाजपा में अध्यक्ष नये पदाधिकारी पुराने
नरेन्द्र सिंह तोमर को ऐन विधानसभा चुनावों के पहले अध्यक्ष बनाया गया,उन्हे गठित संगठन के पदाधिकारियों की तरफ देखने का मौका ही नहीं मिला क्योंकि लगातार चुनाव पर चुनाव आते गये.यह संगठन में पदाधिकारियों की नियुक्तियाँ प्रभात झा के समय की गयी थीं,उनका कार्यकाल पूरा हो चुका है.
एक-दो पदों को छोड़कर बाकी पर “यस मेन्स” की नियुक्ति की गयी थी
कार्यालय मंत्री आलोक संजर मुख्यमंत्री की पसंद थे क्योंकि शिवराज आलोक की कार्यशैली के परिचित थे और उन्हे यह जिम्मेदारी दी गयी थी,बिजेन्द्र सिंह सिसोदिया वरिष्ठ और संगठन के प्रति वफादार लोगों की श्रेणी में आते हैं अतः उन्हें भाजपा का प्रवक्ता नियुक्त किया गया.
इन पदों को छोड़कर बाकी नियुक्तियों में नेताओं के चापलूसों को नियुक्त किया गया,मीडिया प्रभारी प्रभात झा के यस मेन रहे ,परिसर मेन भी वे प्रभात झा को छोड़ अन्य किसी के पैर नहीं छूते नजर आते हैं,मीडिया में इन पर पक्षपात का आरोप लगता रहा ये कुछ बड़े समूहों के पत्रकारों के अलावा और किसी को अपने योग्य नहीं समझते रहे.
अल्पसंख्यक मोर्चा भी कोई छाप नहीं छोड़ पाया उसके प्रमुख हिदायतुल्लाह एक समर्थक बढाने में भी नाकाम रहे हैं हाँ मंत्रियों के दरवाजों पर इन्हें हमेशा देखा जा सकता है.हिदायतुल्लाह के कार्यकाल मेन बोहरा मुसलमानों को नहीं शामिल किया गया,जबकि यह समुदाय अपनी राष्ट्रभक्ति के लिये जाना जाता है.
अनुसूचित जाति मोर्चा का भी कोई प्रभाव नहीं रहा इन चुनावों में.
युवा मोर्चा भी प्रभावहीन रहा
युवा मोर्चा अध्यक्ष अमरदीप मोर्य संगठन मंत्री अरविंद मेनन की पसंद रहे उन्हे सभी नियम कायदों को शिथिल करते हुए नियुक्ति दे दी गयी लेकिन उनकी उर्जा का उपयोग नहीं करने दिया गया और वे प्रभावी एवं लोकप्रिय नहीं हो पाये,उन्हे भी संगठन ने “यस मेन” की तरह इस्तेमाल किया.
महिला मोर्चा का कार्य उल्लेखनीय रहा