संविधान का अनुच्छेद 164 (1 ए) मुख्यमंत्री समेत कम से कम 12 मंत्रियों के मंत्रिमंडल की बात करता है, लेकिन बीते दो महीनों से शिवराज सिंह चौहान केवल पांच मंत्रियों के साथ सरकार चला रहे हैं. कहा जा रहा है कि उन्हें डर है कि मंत्रिमंडल विस्तार करने पर मंत्री न बन सकने से असंतुष्ट विधायक आगामी राज्यसभा चुनाव में कहीं क्रॉस-वोटिंग न कर दें.
मध्य प्रदेश में तख्तापलट के बाद भाजपा की शिवराज सिंह चौहान सरकार को बने ढाई महीने से अधिक समय बीत गया है. लेकिन, अब तक शिवराज सिंह की पूर्ण कैबिनेट (मंत्रिमंडल) का गठन नहीं हो पाया है. हालांकि, पांच मंत्रियों के साथ शिवराज काम कर रहे हैं, लेकिन संवैधानिक प्रावधान कहते हैं कि मुख्यमंत्री समेत कम से कम 12 मंत्रियों की कैबिनेट राज्य को चलाने के लिए जरूरी है.
शिवराज ने 23 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. आमतौर पर मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ लेता है लेकिन शिवराज ने अकेले ही शपथ ली. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि अभी मंत्रिमंडल पर विचार करने का समय नहीं है क्योंकि कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है. तब उन्होंने जल्द ही मंत्रिमंडल गठित करने का आश्वासन दिया था.
लेकिन अगले 29 दिन तक शिवराज ने मंत्रिमंडल का गठन नहीं किया और सभी नीतिगत फैसले स्वयं ही लेते रहे. इस तरह देश के सबसे लंबे समय तक बिना मंत्रिमंडल के सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री बने.
तब कांग्रेसी नेता राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा और कपिल सिब्बल ने इस संबंध में राष्ट्रपति के नाम पत्र लिखा. जिसमें उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) का हवाला दिया. जिसके तहत किसी सरकार में 12 मंत्रियों का होना आवश्यक है.
इसी प्रावधान के तहत कपिल सिब्बल और विवेक तन्खा ने राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने और बिना मंत्रिमंडल के ही शिवराज सरकार द्वारा पारित किए अध्यादेशों को असंवैधानिक मानते हुए उन्हें वापस लेने की मांग की.
अगले ही दिन शिवराज ने पांच मंत्रियों के मंत्रिमंडल का गठन कर दिया, लेकिन यह मंत्रिमंडल भी अनुच्छेद 164 (1ए) की 12 मंत्री होने की आवश्यक शर्त पूरी नहीं करता था. इस पर भाजपा ने कोरोना का हवाला देते हुए दलील दी कि इस संकट भरे वक्त में मंत्रियों के नामों पर विचार करने का समय नहीं मिला है इसलिए फौरी तौर पर छोटा मंत्रिमंडल बनाया है.