धन और लक्ष्मी में बहुत अंतर होता है। इन दोनों में बहुत अंतर है। आपके पास पैसा भले ही बहुत हो लेकिन आपके पास
लक्ष्मी का निवास है या नहीं ये अलग बात है।
ऐसा पैसा जिसे दूसरों की सेवा, परोपकार में बांटने में कष्ट होता हो वह वह सिर्फ धन होता है और जिसे जनसेवा में खुलकर लगाया जाए, वह लक्ष्मी का रूप होता है।
परिवार में तीन सत्य होते हैं, एक मेरा सत्य, दूसरा आपका सत्य और तीसरा हमारा सत्य। परिवार में इन तीन सत्यों को आत्मसात किया जाना चाहिए। परिवार में तीनों सत्यों का त्रिकोण जुड़ा हुआ है। सूर्य हम सबका दीपक है, जो सत्य है। मेरा सत्य अच्छी बात है, लेकिन दूसरे का सत्य भी है।
जब तक हमारा सत्य नहीं होगा, तब तक दीपक नहीं जलता। सत्य के साथ प्रेम आवश्यक है। सत्य के साथ करुणा होनी ही चाहिए, यह तीनों चाहिए। जहां तक संभव हो पति सत्य कहे, पत्नी करुणा रखे, मातृ शरीर में करुणा स्वभाविक गुण है, घर में जो बच्चे हों वह प्रेम हो, इससे त्रिकोण पूरा होगा।
जो परिवार का पालक हो, सुशिक्षित करे, संरक्षित करे और सबका सेवक हो, वही पिता है। जो भी बात साधना के अनुकूल पड़े, श्रोताओं के मार्गदर्शन के अनुकूल पड़ती है उन्हें कहीं से भी ले लेता हूं। सत्य कहीं से भी मिले उसे इस्तेमाल करना चाहिए।
सभी दुखों से मुक्त होने के लिए प्रसन्न रहें, क्योंकि जब परस्पर प्रेम बढ़ेगा तो प्रसन्नता भी बढ़ेगी। प्रेम शब्द के 300 से अधिक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग मानस में किया गया है।