नई दिल्ली, 17 मई (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने करोड़ों रुपये के चिटफंड घोटाला मामलों में कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की गिरफ्तारी से दी गई अंतरिम सुरक्षा शुक्रवार को हटा ली।
जांच एजेंसी ने कुमार पर रसूखदार राजनेताओं को बचाने के लिए सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है।
हालांकि, अदालत ने कुमार को उचित कानूनी कदम उठाने के लिए सात दिनों की मोहलत दी है।
ऑफिसर की ओर से अदालत में बहस के दौरान वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि सीबीआई इस मामले में प्रतिशोधी रही है और कुमार के खिलाफ झूठा मामला बनाया है।
अपनी दलील के समर्थन में इंदिरा ने कहा कि कुमार का करियर बेदाग है। वह सम्मानित अधिकारी रहे हैं और उनकी ईमानदारी पर कभी संदेह नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि कुमार को 2015 में राष्ट्रपति द्वारा मेडल से सम्मानित किया गया।
इंदिरा ने कहा कि अब तक सीबीआई अपनी जांच में सबूतों को दबाने के कुमार के आपराधिक इरादे को साबित करने में असमर्थ रही है। उन्होंने कहा, “फिर भी वे पूछताछ के लिए उनको हिरासत में लेने की मांग कर रहे हैं। मीडिया ट्रायल चल रहा है।”
उन्होंने दावा किया कि सीबीआई का कुमार को फंसाने के पीछे एक खास वजह है।
इंदिरा ने कहा, “(तत्कालीन अंतरिम) सीबीआई निदेशक नागेश्वर राव ने कुमार के खिलाफ जांच एजेंसी इसलिए लगाई क्योंकि क्योंकि पश्चिम बंगाल में राव की पत्नी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज है।”
फरवरी की घटना को याद करते हुए, जब सीबीआई कुमार से पूछताछ करने गई और इस पूरे प्रकरण ने राजनीतिक मोड़ ले लिया, उन्होंने कहा कि एजेंसी ने कुमार की गैरमौजूदगी में उनके घर पर छापा मारने की कोशिश की।
इंदिरा ने कहा कि सीबीआई जानबूझकर कुमार को परेशान कर रही है लेकिन तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अर्नब घोष से कभी पूछताछ नहीं की जो चिटफंड घोटाले की जांच कर रही एसआईटी का हिस्सा भी थे।
वरिष्ठ वकील ने कहा कि जांच के दौरान जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से भी कोई सबूत नहीं मिला।
सीबीआई की ओर से अदालत में दलील देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जोर देते हुए कहा कि एजेंसी कुमार को फंसा नहीं रही है।
उन्होंने कहा, “जांच के दौरान जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के एफएसएल (फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी) रिपोर्ट के बारे में हमने उनसे सरल सवाल पूछे लेकिन उन्होंने हमें कोई रिपोर्ट नहीं दी।”
उन्होंने यह भी कहा कि एफएसएल की अनुपस्थिति में घोटाले की जांच के दौरान जब्त इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की प्रमाणिकता सिद्ध करना असंभव था।