नई दिल्ली, 5 जनवरी (आईएएनएस)| कोयला उद्योग के करीब पांच लाख श्रमिक कोयला खनन के निजीकरण के खिलाफ मंगलवार से पांच दिवसीय हड़ताल पर जा रहे हैं। मजदूर संगठन के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हड़ताल के कारण देश में बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है।
श्रमिक कोयला ब्लॉक आवंटन अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं, जिसमें उनके मुताबिक कोयला खनन के निजीकरण का प्रावधान है।
इंडियन नेशनल माइनवर्कर्स फेडरेशन ने कहा, “कोयला श्रमिकों के लिए यह करो या मरो का समय है।”
कोल इंडिया वर्कर्स फेडरेशन के श्यामल दत्ता के अनुसार, कोयला उद्योग में करीब पांच लाख श्रमिक कार्यरत हैं।
सीआईएल का देश में कोयला उत्पादन पर लगभग एकाधिकार है और यह समग्र घरेलू उत्पादन में 82 फीसदी योगदान करती है।
सभी केंद्रीय मजदूर संगठनों ने कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल)/सहायक इकाइयों और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) के कोयला श्रमिकों से कोयला उद्योग में छह जनवरी की प्रथम पाली से 10 जनवरी की तीसरी पाली तक पूरे आक्रामक अंदाज में पांच दिवसीय संपूर्ण हड़ताल करने का आह्वान किया है।
खास बात यह है कि इस हड़ताल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से संबद्ध मजदूर संगठन, भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) भी शामिल है। केंद्र में इस समय भाजपा की ही सरकार है।
केंद्रीय कोयला और बिजली मंत्री पीयूष गोयल द्वारा शनिवार को बुलाई गई बैठक का बीएमएस सहित सीआईएल के सभी पांच प्रमुख श्रमिक संगठनों ने बहिष्कार कर दिया।
हड़ताल में शामिल इन संगठनों में भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के अलावा इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक), ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) और हिंद मजदूर संघ शामिल हैं।
इंटक ने अपने एक बयान में कहा है, “भारत सरकार सीआईएल और एससीसीएल में अपनी हिस्सेदारी धीरे-धीरे घटाकर इनका निजीकरण करना चाहती है।”
सर्वोच्च न्यायालय ने 1993 से 2010 के बीच हुए 204 कोयला ब्लॉकों के आवंटन रद्द कर दिए थे, जिसके बाद सरकार ने ब्लॉकों के नए सिरे से आवंटन हेतु उनकी नीलामी के लिए अक्टूबर में कोयला अध्यादेश (विशेष प्रावधान) विधेयक-2014 पेश किया था, जिसकी निविदा प्रक्रिया गत सप्ताह शुरू की गई है।
इस बीच बिजली, कोयला और नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकृत विकास पर रेलमंत्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में गठित परामर्शदात्री समूह ने कोल इंडिया के पुनर्गठन की सलाह को खारिज कर दिया है और कंपनी की सहायक इकाइयों को मजबूत करने की सलाह दी है।
समूह की रपट में कहा गया है, “कोल इंडिया के पुनर्गठन के कई विकल्पों पर विचार किया गया। सहमति यह बनी कि कम से कम छोटी अवधि में किसी बड़े पुनर्गठन की जरूरत नहीं है।”
रपट में कहा गया है, “सहायक इकाइयों को जिम्मेदारियों के साथ समुचित शक्ति, खर्च और संचालन के लचीलेपन का अधिकार दिया जाना चाहिए, ताकि निर्णय लेने में सीआईएल पर उनकी निर्भरता से उन्हें दिए गए लक्ष्य को हासिल करने की प्रक्रिया प्रभावित न हो।”