नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को केरल में हाथी पालने वाले और धार्मिक समारोहों में इनका इस्तेमाल करने वाले मंदिरों का पंजीकरण कराने का निर्देश दिया। ये पंजीकरण नियमों के तहत बनाई गई जिला समितियों में किया जाएगा। इसका मकसद हाथियों की देखभाल करना होगा।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और और न्यायमूर्ति आर.बानुमथी की खंडपीठ ने कहा, “यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह मंदिरों के पंजीकरण को सुनिश्चित करे।”
मंदिरों या देवास्वम का पंजीकरण छह हफ्ते के अंदर करना होगा।
केरल ने पंजीकरण को गैर जरूरी बताया था और कहा था कि यह पहले से ही नियम है कि हाथियों की देखभाल के लिए इनके मालिकों को इस बारे में लिख कर देना होता है।
केरल के रुख का केंद्र ने भी समर्थन किया था। केंद्र ने कहा था कि केवल खेल-तमाशा दिखाने वाले जानवरों का पंजीकरण होना चाहिए। धार्मिक समारोह में भाग लेने वाले हाथी इस श्रेणी में नहीं आते।
लेकिन अदालत ने कहा, “यह राज्य, जिला समिति, मंदिर प्रबंधन और हाथियों के मालिकों की जिम्मेदारी है कि वे देखें कि किसी भी हाथी के साथ किसी भी तरह का क्रूर व्यवहार नहीं हो रहा है। “
अदालत ने कहा, “अगर यह (हाथी के साथ क्रूर व्यवहार) पाया जाता है तो इसे करने वाले को इसका नतीजा भुगतना होगा। आपराधिक मामला दर्ज होने के साथ हाथी को कब्जे में लेकर इसे राज्य को सौंपना तक इसमें शामिल हो सकता है।”
हाथियों के देखभाल की निगरानी के लिए केरल कैपटिव एलीफैंट (मैनेजमेंट एंड मेनटेनेंस) रूल 2012 के तहत जिला समितियां बनाई गई हैं। इसमें वन्य पशु कल्याण बोर्ड के प्रतिनिधि और पशुओं को क्रूर व्यवहार से बचाने वाले लोग शामिल होते हैं।
पंजीकरण का यह निर्देश अदालत ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया जिसमें केरल में मंदिरों के हाथियों और धार्मिक समारोहों में इस्तेमाल होने वाले हाथियों को क्रूर व्यवहार से बचाने के लिए गुहार लगाई गई थी।