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 केंचुआ और कचरे ने कर्ज से उबारा | dharmpath.com

Sunday , 24 November 2024

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केंचुआ और कचरे ने कर्ज से उबारा

रायपुर/कांकेर, 24 मार्च (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के मेहनती किसान चंद्रशेखर साहू ने यह साबित कर दिखाया कि सच्ची लगन से कोई भी कार्य किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है। किसान ने केंचुआ और कचरे से बने जैविक खाद का उपयोग कर फसलों की उपज इतनी बढ़ा ली कि कर्ज से मुक्त हो गया।

रायपुर/कांकेर, 24 मार्च (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के मेहनती किसान चंद्रशेखर साहू ने यह साबित कर दिखाया कि सच्ची लगन से कोई भी कार्य किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है। किसान ने केंचुआ और कचरे से बने जैविक खाद का उपयोग कर फसलों की उपज इतनी बढ़ा ली कि कर्ज से मुक्त हो गया।

कांकेर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर बसा पुसवाड़ा एक जनजाति बहुल गांव है। इस गांव के अधिकांश लोग पढ़े-लिखे हैं। यहां की मुख्य फसल धान, चना एवं सब्जी-भाजी है। क्षेत्र में कृषि के विकास की संभावनाएं देख कांकेर के पूर्व कृषि उपसंचालक कपिलदेव दीपक ने पुसवाड़ा का चयन आदर्श ग्राम के रूप में किया। जैविक खाद का उपयोग कर खुद को कर्ज से उबारने वाले चंद्रशेखर साहू इसी गांव के हैं।

वह महज 10वीं पास हैं। उनकी उनकी आर्थिक स्थिति दो साल पहले तक खराब थी। बड़ी मुश्किल से बड़े संयुक्त परिवार का गुजारा हो पाता था। परिवार के अधिकांश सदस्य मनरेगा के तहत कार्य करने जाया करते थे। आमदनी मामूली थी, इसलिए आर्थिक समस्या हमेशा बनी रहती थी। इस परिवार के पास छह एकड़ खेत था। रासायनिक खादों का इस्तेमाल करने के कारण मिट्टी खराब हो गई थी। उपज घटता चला गया और परिवार कर्ज के बोझ के तले भी दबने लगा।

चंद्रशेखर साहू ने एक दिन टेलीविजन पर ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम देखा। कार्यक्रम में बताया गया कि केंचुआ और कचरों से खाद बनाकर उपयोग करने से खेत की उपज काफी बढ़ जाती है और मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। कृषि विभाग जैविक खाद बनाने के लिए 12 हजार रुपये का अनुदान देता है।

यह बात चंद्रशेखर को जंच गई। उन्होंने क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क किया। उनके बताए तरकीब के मुताबिक चंद्रशेखर ने 10 गुना 3 गुना 2 फीट आकार के पक्के वर्मी टांका का निर्माण कराया। उसमें साग-सब्जियों के टुकड़े, गोबर व कचरा भरकर टांका को पैक किया। फिर उसमें दो किलो प्रति टंकी के हिसाब से केंचुआ डाला। इस तरह जैविक खाद तैयार हो गया। तीन महीने में ही इनकी मेहनत रंग लाई और इसके बाद किसान चंद्रशेखर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

चंद्रशेखर अब जैविक खाद (वर्मी कम्पोस्ट) का उपयोग न सिर्फ अपने खेतों में करते हैं, बल्कि खाद तथा केंचुआ बेचकर भी अच्छी-खासी आमदनी हासिल कर लेते हैं। वह खेती में लगने वाले सभी खर्चो का लेखा-जोखा रखते हैं।

उन्होंने बताया, “इस साल दो और पक्के वर्मी टांका बनाने की योजना है। वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग और बिक्री से मुझे 30 हजार रुपये की शुद्ध बचत हुई है और अब पूरी तरह कर्ज से मुक्ति मिल गई है।”

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