उन्होंने कहा, “किसानों की समस्याओं के समाधान की बात नहीं होती है। किसान सत्तारूढ़ दल के किसी एजेंडा में शामिल नहीं दिखाई देता। किसानों को सिर्फ तरह-तरह से बहलाया जाता है।”
आईपीएन को दिए अपने बयान में अखिलेश ने कहा, “सच तो यह है कि जबसे भाजपा सत्ता में आई है किसान आर्थिक संकट में घिरता जा रहा है। किसान को फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है। भाजपा ने वादा किया था कि वह लागत मूल्य में 50 प्रतिशत अतिरिक्त जोड़कर उसको फसल का लाभप्रद समर्थन मूल्य देगी। किसान की कर्जमाफी के नाम पर चंद रुपयों के लिए उसका मजाक उड़ाया गया।”
उन्होंने कहा कि समाजवादी सरकार ने किसानों के लिए 75 प्रतिशत बजट रखा था और आपदा राहत के साथ मुफ्त सिंचाई की सुविधा भी दी थी। मगर भाजपा ने किसानों के बजाय पूंजीपति घरानों के हित साधना शुरू कर दिया है।
अखिलेश ने कहा कि प्रचार माध्यमों पर सत्तारूढ़ दल का कब्जा हो चुका है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि किसान की समस्याओं पर टीवी पर कोई जिक्र नहीं होता। उसकी दुर्दशा पर चर्चा नहीं होती। लेकिन इससे यह अर्थ निकालना कि किसान खुशहाल हैं, बेमानी होगा। गरीबी और बेकारी पर टीवी पर चर्चा न हो तो यह मान लेना क्या सही होगा कि अब देश में गरीबी-बेकारी समाप्त हो गई है?
सपा प्रमुख ने कहा कि समाजवादी चाहते हैं कि देश में विचार और विकास की राजनीति होनी चाहिए। भाजपा बात तो विकास की करती है, लेकिन जातिवाद और सांप्रदायिकता की संकीर्ण राजनीति करती है। इस सच्चाई पर बड़े पैमाने पर चर्चा की जरूरत है।