नई दिल्ली/चंडीगढ़: केंद्र की मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को शुक्रवार को एक साल पूरा हो गया. हालांकि सरकार ने इन कानूनों को वापस ले लिया है, लेकिन किसानों ने इसे ‘औपचारिकता’ करार दिया है और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सहित कुछ अन्य मांगों के पूरा होने तक आंदोलन को जारी रखने की बात कही है.
इस अवसर पर किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने एक बयान में कहा है, ‘तथ्य यह है कि इतने लंबे संघर्ष को जारी रखना पड़ रहा है, जो स्पष्ट तौर पर सरकार की अपने मेहनतकश नागरिकों के प्रति असंवेदनशीलता और अहंकार को दिखाता है.’
किसान मोर्चा का कहना है कि तीन कानूनों को निरस्त करना आंदोलन की पहली बड़ी जीत है और वह प्रदर्शनकारी किसानों की बाकी जायज मांगों के पूरा होने के इंतजार में हैं. मोर्चा 40 से अधिक किसान यूनियन की अगुवाई कर रहा है.
बयान में कहा गया है कि पिछले 12 महीने के दौरान यह आंदोलन दुनिया और इतिहास के सबसे बड़े और लंबे प्रदर्शनों में एक हो गया है, जिसमें करोड़ों लोगों ने हिस्सा लिया है और यह भारत के हर राज्य, हर जिले और गांव में फैला है.
इसके मुताबिक, तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने के सरकार के फैसले के अलावा आंदोलन ने किसानों, आम नागरिकों और देश के लिए कई जीतें हासिल की हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि साल भर के आंदोलन के दौरान अब तक कम से कम 683 किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है.
केंद्र के तीन कृषि कानूनों को औपचारिक रूप से रद्द करने और अपनी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर किसान पिछले एक साल से दिल्ली से सटी तीन सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर में डेरा डाले हुए हैं.
केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का ये आंदोलन पिछले साल 26-27 नवंबर को ‘दिल्ली चलो’ कार्यक्रम के साथ शुरू हुआ था.
किसान संगठनों ने इस अवसर पर देश भर में कई कार्यक्रमों के आयोजन की योजना बनाई है. संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है, ‘ऐतिहासिक कृषि आंदोलन के एक साल पूरे होने के मौके पर एसकेएम के आह्वान पर दिल्ली, राज्यों की राजधानियों और जिला मुख्यालयों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के लिए बड़ी संख्या में किसान और कार्यकर्ता एकत्रित हो रहे हैं.’
इसमें कहा गया, ‘दिल्ली में विभिन्न प्रदर्शन स्थलों पर हजारों किसान पहुंचने लगे हैं. दिल्ली से दूर राज्यों में रैलियों, धरने और अन्य कार्यक्रमों के आयोजन के साथ इसे मनाने की तैयारी चल रही है.’
एसकेएम के आह्वान पर की संख्या में किसान पिछले कुछ दिनों में दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर पहुंचे हैं, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा किए जाने के बाद गजब का उत्साह है.
इस बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक प्रभावशाली किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने ट्वीट किया, ‘एक साल का लंबा संघर्ष बेमिसाल, थोड़ी खुशी – थोड़ा गम, लड़ रहे हैं जीत रहे हैं, लड़ेंगे जीतेंगे. न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून किसानों का अधिकार.’
शुक्रवार को ढोल-नगाड़ों की थाप के बीच अपने-अपने किसान संगठनों के झंडे लिए बच्चे और बुजुर्ग, स्त्री और पुरुष ‘इंकलाब जिंदाबाद’ तथा ‘मजदूर किसान एकता जिंदाबाद’ के नारे लगाते नजर आए.
प्रदर्शन स्थल पर आज वैसी ही भीड़ दिखी जैसी कि आंदोलन के शुरू के दिनों में हुआ करती थी. इन लोगों में किसान परिवारों से संबंध रखने वाले व्यवसायी, वकील और शिक्षक भी शामिल थे.
पटियाला के 50 वर्षीय सरेंदर सिंह ने प्रदर्शन स्थल पर भीड़ का प्रबंधन करने के लिए छह महीने बिताए हैं. उन्होंने कहा, ‘यह एक विशेष दिन है. यह किसी त्योहार की तरह है. लंबे समय के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोग यहां एकत्र हुए हैं.’
दिल्ली-हरियाणा सीमा पर कृषि कानूनों का विरोध कर रहे पंजाब के बरनाला निवासी लखन सिंह (45 वर्ष) ने इस साल की शुरुआत में अपने पिता को खो दिया था.
लखन ने कहा, ‘अच्छा होता कि आज वह यहां होते. लेकिन मैं जानता हूं कि उनकी आत्मा को अब शांति मिलेगी.’
पटियाला के मावी गांव निवासी भगवान सिंह (43 वर्ष) ने विरोध के सातवें महीने में अपने दोस्त नज़र सिंह (35 वर्ष) को खो दिया था, जिन्हें याद करते हुए वह फूट-फूटकर रो पड़े.
उन्होंने कहा, ‘मेरा दोस्त, अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति था, जो अपने पीछे तीन छोटी बेटियों और बुजुर्ग माता-पिता को छोड़ गया है. हमें उसकी बहुत कमी खलती है.’
पिछले साल दिसंबर में सिंघू बॉर्डर पहुंचे कृपाल सिंह (57 वर्ष) ने अपने दाहिने पैर में चोट का निशान दिखाया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह पुलिस की लाठी से लगा था.
उन्होंने कहा कि किसानों को रोकने के लिए तमाम बाधाएं उत्पन्न की गईं, लेकिन फिर भी किसान नहीं रुके.
आंदोलन से जुड़े एक अन्य संगठन किसान एकता मोर्चा ने शुक्रवार को ट्वीट कर कहा है, मोदीजी, आपकी तपस्या में कमी रही होगी परंतु किसान-मजदूर की तपस्या का अंदाजा आप कभी नहीं नहीं लगा सकते. आज दिल्ली बॉर्डर्स की तस्वीरें बताती हैं कि किसान-मजदूर अपनी सारी मांगें मनवाकर ही वापस जाएंगे.
शुक्रवार को संविधान दिवस के अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रधानमंत्री के एक बयान को ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने कहा है, ‘भारत एक ऐसे संकट की ओर बढ़ रहा है, जो संविधान को समर्पित लोगों के लिए चिंता का विषय है. लोकतंत्र के प्रति आस्था रखने वालों के लिए चिंता का विषय है और वो है पारिवारिक पार्टियां.’
केंद्रीय कृषि मंत्री के इस ट्वीट के जवाब में संगठन ने कहा है, ‘650 से ज्यादा किसानों की शहादत करवाकर एक साल तक सड़कों पर रखकर भी सिर्फ आधी मांगें मानने वाली सरकार लोकतंत्र का पाठ न पढ़ाए. मोदी सरकार और भाजपा अपने गिरेबां में झांके तथा देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निभाए. आपकी सरकार के कारण भी लोकतंत्र के प्रति आस्था रखने वालों में चिंता है.’
प्रधानमंत्री के एक अन्य बयान को भी नरेंद्र सिंह तोमर ने ट्वीट किया है, इस पर किसान एकता मोर्चा ने कहा है, ‘संविधान दिवस की बधाइयां. संविधान और कानून का शासन ही सर्वोच्च है तथा सभी समस्याओं का हल है. सबसे पहले आपकी सरकार और अपनी पार्टी का खुद मूल्यांकन करें कि वो सविंधान विरोधी कानून पास करते हैं. संविधान विरोधी बयानबाजी करते हैं. संविधान की धज्जियां उड़ाते हैं. आप खुद अपना सही रास्ता चुनें.’
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 19 नवंबर को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कानूनों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की घोषणा की थी.
कानूनों को वापस लेने की घोषणा करने के कुछ दिनों के बाद कृषि कानून निरस्तीकरण विधेयक-2021 को मंजूरी दी गई है और अब इसे 29 नवंबर को शुरू हो रहे संसद सत्र के दौरान लोकसभा में पारित करने के लिए पेश किया जाएगा.
हालांकि किसान नेताओं ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा बीते 24 नवंबर को एक विधेयक को मंजूरी दिए जाने को मात्र ‘औपचारिकता’ करार देते हुए कहा है कि अब वे चाहते हैं कि सरकार उनकी अन्य लंबित मांगों, विशेषकर कृषि उपजों के ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (एमएसपी) की कानूनी गारंटी को पूरा करे.
संयुक्त किसान मोर्चा की 27 नवंबर को सिंघू बॉर्डर पर बैठक होगी, जिसमें यह फैसला लिया जाएगा कि संगठनों को आगे क्या कदम उठाना है.
इससे पहले मोर्चा ने बीते 21 नवंबर को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर एमएसपी पर कृषि उपज की खरीद की कानूनी गारंटी सहित किसानों की छह मांगों पर वार्ता बहाल करने की मांग की थी.
इन मांगों में लखीमपुर खीरी मामलों के संबंध में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा को पद से हटाने और उन्हें गिरफ्तारी करने, किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमों को वापस लेने और प्रदर्शन के दौरान मारे गए किसानों की याद में स्मारक बनाने की मांग भी शामिल है.
इसमें ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021’ में किसानों के खिलाफ दंडात्मक प्रावधानों को हटाने की भी मांग भी शामिल है. इसके अलावा सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘बिजली संशोधन विधेयक, 2020/2021’ के मसौदे को वापस लेने की भी मांग की है.
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत किसानों ने अपना प्रदर्शन शुरू किया था. पंजाब और हरियाणा में दो दिनों के संघर्ष के बाद किसानों को दिल्ली की सीमा में प्रवेश की मंजूरी मिल गई थी.
उस समय केंद्र सरकार ने उन्हें दिल्ली के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति दी थी, लेकिन किसानों ने इस मैदान को खुली जेल बताते हुए यहां आने से इनकार करते हुए दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन शुरू किया था, जो आज भी जारी है.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी. बीते दिनों सरकार ने इन कानूनों को वापस ले लिया.
किसानों को इस बात का भय था कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया था. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही थी. उसका कहना था कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
दिल्ली पुलिस ने यातायात को लेकर परामर्श जारी किया
किसानों के विरोध प्रदर्शन के एक साल पूरा होने पर दिल्ली यातायात पुलिस ने शुक्रवार को गाजियाबाद से दिल्ली की ओर आने-जाने वाले यात्रियों को वैकल्पिक मार्ग का इस्तेमाल करने की सलाह दी है.
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू) के कार्यकर्ता किसान आंदोलन के एक साल पूरा होने पर दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर एक मार्च में शामिल हुए (फोटो: पीटीआई)
पुलिस ने कहा कि यात्रियों को दिल्ली पहुंचने के लिए विकास मार्ग या जीटी रोड का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है. दिल्ली यातायात पुलिस ने ट्वीट किया, ‘गाजीपुर अंडरपास के चौराहे पर स्थानीय पुलिस द्वारा लगाए गए अवरोधकों के कारण गाजियाबाद से दिल्ली की ओर वाहनों की आवाजाही धीमी रहने वाली है. यात्रियों को वैकल्पिक विकास मार्ग- जीटी रोड से दिल्ली जाने की सलाह दी जाती है.’
किसानों के प्रदर्शन के एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में शुक्रवार को बड़ी संख्या में किसानों के एकत्रित होने के मद्देनजर दिल्ली पुलिस ने राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है. केंद्र ने हाल में तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के अपने फैसले की घोषणा की थी.
किसानों की मांग का आप सरकार समर्थन करती है: केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को किसानों को उनकी आंदोलन की सफलता के लिए बधाई देते हुए कहा कि उनकी जीत, लोकतंत्र की जीत है और आम आदमी पार्टी की सरकार उनकी मांगों का समर्थन करती है.
दिल्ली विधानसभा ने शुक्रवार को एक प्रस्ताव पास कर तीन कृषि कानूनों को वापस लेने, आंदोलन के दौरान दिवंगत हुए 700 किसानों के परिवारों को मुआवजा देने तथा फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दिये जाने की मांग की.
सदन में प्रस्ताव पर एक चर्चा का जवाब देते हुए केजरीवाल ने विधानसभा में कहा, ‘किसानों की जीत लोकतंत्र की जीत है. हम किसानों की लंबित मांग का समर्थन करते हैं और उनके साथ हैं.’
विधानसभा में यह प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित हो गया. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने लोकसभा में बहुमत होने के कारण ‘अहंकार’ में तीनों कृषि कानून पारित किया था.
केजरीवाल ने कहा, ‘लोकसभा में बहुमत होने के कारण कृषि कानून अहंकार में पारित कराया गया. मैं किसानों की सफलता पर उन्हें बधाई देता हूं. देश के लोगों, महिलाओं, युवाओं एवं व्यापारियों के हित में जो कुछ भी होगा, उसका समर्थन करता हूं. मैं विशेष रूप से पंजाब के किसानों को बधाई देता हूं.’
विधानसभा में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्र सरकार की ओर से पारित तीन कृषि कानून सामान्य तौर पर किसानों एवं जनता के हित के खिलाफ था और मुट्ठी भर व्यापारिक घरानों के पक्ष में बनाया गया था .
उन्होंने कहा कि किसानों को सफलता प्राप्त करने के लिए कोविड, खराब मौसम और डेंगू जैसी परिस्थितियों से गुजरना पड़ा. केजरीवाल ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने भारी दबाव के बावजूद स्टेडियमों को जेल में तब्दील नहीं होने दिया.
प्रस्ताव में लखीमपुर खीरी मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को पद से हटाने और उन्हें गिरफ्तार किए जाने की मांग की गई है.
किसानों का सत्याग्रह भाजपा सरकार के अहंकार और अत्याचार के लिए जाना जाएगा: प्रियंका
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने किसानों के आंदोलन का एक साल पूरा होने के मौके पर शुक्रवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा और दावा किया कि इस सत्याग्रह को भाजपा सरकार के ‘अहंकार एवं अत्याचार’ के लिए जाना जाएगा.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘किसान आंदोलन का एक साल. किसानों के अडिग सत्याग्रह, 700 किसानों की शहादत और निर्मम भाजपा सरकार के अहंकार व अन्नदाताओं पर अत्याचार के लिए जाना जाएगा. लेकिन भारत में किसान की जय-जयकार हमेशा थी, है और रहेगी. किसानों के संघर्ष की जीत इसका प्रमाण है. जय किसान.’
किसानों का अहिंसक संघर्ष वीरता की अनूठी गाथा है: पंजाब के मुख्यमंत्री
पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर शुक्रवार को कहा कि केवल कठोर कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र एवं मानवाधिकारों के मूल्यों को बरकरार रखने के लिए किसानों का अहिंसक संघर्ष वीरता, संयम और प्रतिबद्धता की अनूठी गाथा है.
चन्नी ने ट्वीट किया, ‘केवल कठोर कानूनों को निरस्त करने के लिए ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र एवं मानवाधिकारों के मूल्यों को बरकरार रखने के लिए उनका अहिंसक संघर्ष वीरता, संयम और प्रतिबद्धता की अनूठी गाथा है.’
उन्होंने कहा, ‘मैं मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए काले कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में पिछले साल इसी दिन से प्रदर्शन कर रहे किसानों की अदम्य भावना को सलाम करता हूं.’