आज से ब्राजील में शुरू हो रहे फीफा वर्ल्ड कप के खुमार में पूरी दुनिया पहले ही डूब चुकी है.
यह प्रतियोगिता ओलंपिक खेलों के बाद दुनिया का सर्वाधिक लोकप्रिय खेल आयोजन है. इतना लोकप्रिय कि जब इसके मैच होते हैं तब युद्ध तक थम जाता है. 14.2 इंच की ट्राफी जीतने वाले देश का कायाकल्प हो जाता है. टूर्नामेंट पर अरबों रुपए का दांव लगता है.
प्रतियोगिता शुरू होने की तिथि आने तक ब्राजील में स्टेडियमों को सजाने-संवारने का काम चल रहा था. इस फुटबाल विश्व कप के आयोजन पर 11 अरब डॉलर (6.4 खरब रुपए) खर्च आने का अनुमान है. महंगाई से जूझ रही ब्राजील की फुटबाल प्रेमी जनता का एक तबका इस आयोजन को पैसे की बर्बादी मान रहा है. एक माह तक चलने वाले फुटबाल महाकुंभ की सुरक्षा में डेढ़ लाख सैनिक और 20 हजार निजी सुरक्षाकर्मी लगेंगे. तमाम विरोध और बाधाओं के बावजूद टूर्नामेंट की लोकप्रियता चरम पर है.
एक उदाहरण से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है- टूर्नामेंट में आम जनता के लिए कुल 11 लाख टिकट उपलब्ध थे लेकिन 20 अगस्त 2013 को जब बिक्री के लिए टिकट बाजार में आए तो 24 घंटे के भीतर मांग 23 लाख टिकट की हो गई. जिसे टिकट मिल गया वह खुद को बादशाह मान बैठा है. बाकी फुटबाल प्रेमियों के पास टेलीविजन पर मैच देखकर संतोष करने के अलावा कोई चारा नहीं है. लेकिन सब लोग बेसब्री से आज का दिन आने यानी 12 जून की तारीख का इंतजार कर रहे थे.
यह प्रतिष्ठित प्रतियोगिता सर्वाधिक पांच बार ब्राजील ने जीती है. इटली चार बार, जर्मनी तीन बार तथा अज्रेटीना व उरुग्वे दो-दो बार इस प्रतियोगिता के विजेता रहे हैं. इंग्लैंड, फ्रांस और स्पेन ने एक-एक बार फीफा कप जीता है. अब तक कुल आठ देशों के बीच ही फीफा की ट्राफी घूमती रही है. यूरोप के देशों ने दस बार और लैटिन अमेरिकी राष्ट्रों ने नौ बार विजेता होने का सौभाग्य पाया है. इस बार फीफा कप और दो अरब रुपए से ज्यादा का प्रथम पुरस्कार पाने के लिए दुनिया की चोटी की टीमों को 64 मैचों की अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा. मैच ब्राजील के 12 शहरों में होंगे. चौरासी बरस पहले शुरू हुए इस टूर्नामेंट के फाइनल दौर में प्रवेश के लिए इस बार दुनिया की 203 टीमों ने जोर लगाया था. विश्व के कोने-कोने में 15 जून, 2011 से 20 नवम्बर, 2013 तक क्वालिफाइंग मैच खेले गए और अंत में 32 टीमों को ब्राजील का टिकट कटाने का सौभाग्य मिला. बीसवें फीफा कप के फाइनल में यूरोप से तेरह, दक्षिण अमेरिका की छह, अफ्रीका की पांच, उत्तर अमेरिका व कैरेबियन जोन से चार तथा एशिया-ओसेनिया की चार टीमों ने क्वालीफाई किया है. इनमें से एक 13 जुलाई को चैंपियन बनेगी और चार साल तक फुटबाल की दुनिया में उसके यश का डंका बजेगा.
खेल की दुनिया में विश्व कप फुटबाल का ताज सबसे बड़ा सम्मान है. इसमें जीत-हार का अंदाजा लगाने के लिए सैकड़ों संस्थाएं और संगठन जुटे रहते हैं. यह काम इस बार तो और भी जोर-शोर से किया जा रहा है. और तो और विश्व की प्रतिष्ठित वित्तीय संस्था गोल्डमैन शैक्स और 21वीं सदी के सर्वश्रेष्ठ भौतिकशास्त्री प्रोफेसर स्टीफन हाकिंग भी कयास लगाने में लगे हैं. कोई ब्राजील के चैंपियन बनने की भविष्यवाणी कर रहा है तो कोई अज्रेटीना पर दाव लगा रहा है. कुछ फुटबाल पंडितों के अनुसार जर्मनी और उरुग्वे में से किसी एक को ताज मिल सकता है, जबकि कुछ अन्य बेल्जियम को छुपा रु स्तम मान रहे हैं. मतलब, जितने मुंह हैं उतनी बातें हैं. हर बात कहने वाले की अपनी वजह हैं. पैडी पावर नामक संस्था ने प्रोफेसर हाकिंग को इंग्लैंड की टीम का भविष्य जानने का जिम्मा सौंपा और उन्होंने जो निष्कर्ष निकाले वे टोटकों से कम नहीं लगते. हाकिंग ने 1966 के बाद इंग्लैंड द्वारा विश्व कप में खेले गए सभी मैचों का गहन अध्ययन किया और जो बात बताई वह निहायत दिलचस्प है.
मसलन इंग्लैंड की टीम यदि लाल रंग की जर्सी पहनकर मैदान में उतरती है तो उसके जीतने की संभावना 20 प्रतिशत बढ़ जाती है, जब मैच में यूरोपीय रेफरी होते हैं तब सौ में से 63 बार इंग्लिश टीम जीतती है, यदि मैच शाम तीन बजे शुरू हो तो विजय की संभावना प्रबल हो जाती है और यदि तापमान पांच डिग्री बढ़ जाए तब जीत की उम्मीद 59 प्रतिशत घट जाती है. आंकड़ों और टीम के मिजाज का अध्ययन कर हाकिंग ने और भी कई बातें बताई लेकिन अंत में कहा- ‘मेरा दिल तो इंग्लैंड के साथ है, लेकिन अपना पैसा मैं ब्राजील की जीत पर लगाऊंगा.’
पिछले पांच विश्व कप शुरू होने से पहले गोल्डमैन शैक्स भी वर्ल्ड कप के परिणाम का पूर्वानुमान लगाता रहा है. संस्था ने ‘फुटबाल एंड इकोनॉमिक्स’ नाम के अपने ताजा शोधपत्र में अंदाजा लगाया है कि इस बार का फाइनल मैच मेजबान ब्राजील और दो बार की विजेता अज्रेटीना के बीच होगा जिसमें ब्राजील को 3-1 से विजय प्राप्त होगी. रिपोर्ट में जर्मनी और गत विजेता स्पेन को क्रमश: तीसरा व चौथा स्थान दिया गया है. पिछले आंकड़ों, प्रत्येक टीम की मौजूदा ताकत और अर्थशास्त्र के आधार पर किए गए इस अध्ययन की साख बहुत ऊंची है.
चार बरस पहले दक्षिण अफ्रीका में हुए विश्व कप के बारे में गोल्डमैन की भविष्यवाणी काफी सटीक साबित हुई थी. तब उसने ब्राजील को विजेता तथा स्पेन, हालैंड व जर्मनी को प्रबल दावेदार बताया था. दुर्भाग्य से ब्राजील की टीम सेमीफाइनल से पहले ही बाहर हो गई थी. खिताबी टक्कर स्पेन और हालैंड में हुई तथा स्पेन ने पहली बार ताज जीतने का सौभाग्य पाया.
गोल्डमैन के मॉडल में ब्राजील के विजेता होने की संभावना 48.5 प्रतिशत, अज्रेटीना की 14.1 प्रतिशत, जर्मनी की 11.4 तथा स्पेन की 9.8 प्रतिशत है. सट्टेबाजी की जानी-मानी संस्था लेडब्रोक का अंदाजा भी गोल्डमैन से काफी मेल खाता है. लेकिन बेल्जियम के बारे में दोनों की राय अलग-अलग है. लेडब्रोक ने बेल्जियम को वरीयता क्रम में पांचवें पायदान पर रखा है जबकि गोल्डमैन के अनुसार अंतिम सोलह में प्रवेश के बाद बेल्जियम की विदाई हो जाएगी. गोल्डमैन के अनुसार बेल्जियम के ताज जीतने की संभावना सिर्फ 0.6 फीसद है.
किंतु खेल आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली संस्था आप्टा की राय एकदम जुदा है. इंग्लैंड, स्पेन, फ्रांस, इटली और जर्मनी फुटबाल लीग में दुनिया के सारे नामी खिलाड़ी खेलते हैं. इस लीग के दो हजार डाटा पाइंट के आधार पर आप्टा ने खिलाड़ियों और टीमों का आकलन कर अपना फैसला सुनाया है. उसने यूरोप की पांचों प्रमुख फुटबाल लीग के ताजा परिणाम और आंकड़ों का विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाला है. उसके अनुसार इस बार जर्मनी और उरु ग्वे फीफा कप के सबसे प्रबल दावेदार हैं.
अनुभव बताता है कि खेलों में अक्सर अंदाजे फेल हो जाते हैं. नब्बे मिनट के फुटबाल मैच में तो मुकाबले का रुख हर पल बदलता है. एक चूक से पासा पलट जाता है और एक मूव से खोई बाजी जीत ली जाती है. फिर भी जीत-हार का अंदाजा लगाना खेल प्रेमियों का प्रिय शगल है और सट्टेबाजों का धंधा. वैज्ञानिक विश्लेषण और आर्थिक हित जुड़ जाने से यह काम अब नई ऊंचाइयों पर पहुंच चुका है.
यह देखकर टीस उठती है कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल के नक्शे से हिंदुस्तान का नाम नदारद है. अपनी टीम न होने के कारण भारतीय खेलप्रेमियों को दूसरी टीमों का समर्थन कर संतोष करना पड़ेगा. कोई ब्राजील के नाम पर रात काली करेगा, तो कोई जर्मनी के नाम पर दांव लगाएगा. फुटबाल के मैदान में दशकों से हमारे देश की स्थिति दयनीय बनी हुई है. विश्व कप तो क्या हम एशिया कप में भी अपनी छाप छोड़ने में नाकाम हैं.