प्रीतीशः मैंने सुना है कि आप बम्बई छोड़ कर खण्डवा जा रहे हैं……
किशोरः इस अहमक, मित्रविहीन शहर में कौन रह सकता है, जहां हर आदमी हर वक्त आपका शोषण करना चाहता है ? क्या तुम यहाँ किसी का भरोसा कर सकते हो ? क्या कोई भरोसेमंद है यहाँ ? क्या ऐसा कोई दोस्त है यहाँ जिस पर तुम भरोसा कर सकते हो ? मैं तय कर लिया है कि मैं इस तुच्छ चूहादौड़ से बाहर निकलूँगा और वैसे ही जिऊँगा जैसे मैं जीना चाहता था। अपने पैतृक निवास खण्डवा में। अपने पुरखों की जमीन पर। इस बदसूरत शहर में कौन मरना चाहता है !!
प्रीतीशः आप यहाँ आए ही क्यों ?
किशोरः मैं अपने भाई अशोक कुमार से मिलने आया था। उन दिनों वो बहुत बड़े स्टार थे। मुझे लगा कि वो मुझे के एल सहगल से मिलवा सकते हैं, जो मेरे सबसे बड़े आदर्श थे। लोग कहते हैं कि वो नाक से गाते थे….लेकिन क्या हुआ ? वो एक महान गायक थे। सबसे महान।
प्रीतीशः मुझे लगता है कि आप सहगल के प्रसिद्व गानों का एक एलबम तैयार करने की योजना बना रहे हैं।
किशोरः मझसे कहा गया था। मैंने मना कर दिया। उन्हें अप्रचलित करने की कोशिश मुझे क्यों करनी चाहिए ? उन्हें हमारी स्मृति में बसे रहने दीजिए। उनके गीतों को उनके गीत ही रहने दीजिए। एक भी व्यक्ति को यह कहने का मौका मत दीजिए कि किशोर कुमार उनसे अच्छा गाता है।
प्रीतीशः यदि आपको बाम्बे पसंद नहीं था तो आप यहाँ रुके क्यों ? प्रसिद्धि के लिए ? पैसे के लिए ?
किशोरः मैं यहाँ फँस गया था। मैं सिर्फ गाना चाहता था। कभी भी अभिनय करना नहीं चाहता था। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों की कृपा से मुझे अभिनय करने को कहा गया। मुझे हर क्षण इससे नफरत थी और मैंने इससे बचने की हर संभव तरीका आजमाया।
मैं सिरफिरा दिखने के लिए अपनी लाइनें गड़बड़ कर देता था, अपना सिर मुंड़वा दिया, मुसीबत पैदा की, दुखद दृश्यों के बीच मैं बलबलाने लगता था, जो मुझे किसी फिल्म में बीना राय को कहना था वो मैंने एक दूसरी फिल्म में मीना कुमारी को कह दिया – लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे जाने नहीं दिया। मैं चीखा, चिल्लाया, बौड़म बन गया। लेकिन किसे परवाह थी ? उन्होंने तो बस तय कर लिया था कि मुझे स्टार बनाना है।
प्रीतीशः क्यों ?
किशोरः क्योंकि मैं दादामुनि का भाई था। और वह महान हीरो थे।
प्रीतीशः लेकिन आप सफल हुए….
किशोरः बेशक मैं हुआ। दिलीप कुमार के बाद मैं सबसे ज्यादा कमाई कराने वाला हीरो था। उन दिनों में इतनी फिल्में कर रहा था कि मुझे एक सेट से दूसरे सेट पर जाने के बीच ही कपड़ने बदलने होते थे। जरा कल्पना कीजिए। एक सेट से दूसरे सेट तक जाते हुए मेरी शर्ट उड़ रही है, मेरे पैंट गिर रही है, मेरी विग बाहर निकल रही है। बहुत बार मैं अपनी लाइनें मिला देता था और रूमानियत वाले दृश्य में गुस्सा दिखता था या तेज लड़ाई के बीच रूमानी। यह बहुत बुरा था और मुझे इससे नफरत थी। इसने स्कूल के दिनों के दुस्वप्न जगा दिए। निर्देशक स्कूल टीचर जैसे ही थे। यह करो। वह करो। यह मत करो। वह मत करो। मुझे इससे डर लगता था। इसीलिए मैं अक्सर भाग जाता था।
प्रीतीशः खैर, आप अपने निर्देशकों और निर्माताओं को परेशान करने के लिए बदनाम थे। ऐसा क्यों ?
किशोर ः बकवास। वे मुझे परेशान करते थे। आप सोचते हैं कि वो मेरी परवाह करते थे ? वो मेरी परवाह इसलिए करते थे कि मैं बिकता था। मेरे बुरे दिनों में किसने मेरी परवाह की ? इस धंधे में कौन किसी की परवाह करता है ?
प्रीतीशः इसीलिए आप एकांतजीवी हो गए ?
किशोरः देखिए, मैं सिगरेट नहीं पीता, शराब नहीं पीता, घूमता-फिरता नहीं। पार्टियों में नहीं जाता। अगर ये सब मुझे एकांतजीवी बनाता है तो ठीक है। मैं इसी तरह खुश हूं। मैं काम पर जाता हूं और सीधे घर आता हूं। अपनी भुतही फिल्में देखने, अपने भूतों के संग खेलने, अपने पेड़ों से बातें करने, गाना गाने। इस लालची संसार में कोई भी रचनात्मक व्यक्ति एकांतजीवी होने के लिए बाध्य है। आप मुझसे यह हक कैसे छीन सकते हैं।
प्रीतीशः आपके ज्यादा दोस्त नहीं हैं ?
किशोरः एक भी नहीं।
प्रीतीशः यह तो काफी चालु बात हो गई।
किशोरः लोगों से मुझे ऊब होती है। फिल्म के लोग मुझे खासतौर पर बोर करते हैं। मैं पेड़ों से बातें करना पसंद करता हूँ।
प्रीतीशः इसका मतलब आपको प्रकृति पसंद है ?
किशोरः इसीलिए तो मैं खण्डवा जाना चाहता हूं। यहां मेरा प्रकृति से सभी सम्बन्ध खत्म हो गया है। मैंने अपने बंगले के चारो तरफ नहर खोदने की कोशिश की थी जिससे मैं उसमें गण्डोला चला सकूं। जब मेरे आदमी खुदाई कर रहे थे तो नगर महापालिका वाले बन्दे बैठे रहते थे, देखते थे और ना-ना में अपनी गर्दन हिलाते रहते थे। लेकिन यह काम नहीं आया। एक दिन किसी को एक हाथ का कंकाल मिला – एड़ियां मिलीं। उसके बाद कोई खुदाई करने को तैयार नहीं था। मेरा दूसरा भाई अनूप गंगाजल छिड़कने लगा, मंत्र पढ़ने लगा। उसने सोचा कि यह घर कब्रिस्तान पर बना है। हो सकता हो यह बना हो लेकिन मैंने अपने घर को वेनिस जैसा बनाने का मौका खो दिया।
प्रीतीशः लोगों ने सोचा होगा कि आप पागल हैं ! दरअसल, लोग ऐसा ही सोचते हैं।
किशोरः कौन कहता है मैं पागल हूं। दुनिया पागल है, मैं नहीं।
प्रीतीशः आपकी छवि अजीबोगरीब काम करने वाले व्यक्ति की क्यों है ?
किशोरः यह सब तब शुरू हुआ जब वह लड़की मेरा इंटरव्यु लेने आई। उन दिनों मैं अकेला रहता था। तो उसने कहा: आप जरूर बहुत अकेले होंगे। मैंने कहा नहीं, आओ मैं तुम्हें अपने कुछ दोस्तों से मिलवाता हूं। इसलिए मैं उसे अपने बगीचे में ले गया और अपने कुछ मित्र पेड़ों जनार्दन, रघुनंदन, गंगाधर, जगन्नाथ, बुधुराम, झटपटझटपट से मिलवाया। मैंने कहा, इस निर्दयी संसार में यही मेरे सबसे करीबी दोस्त हैं। उसने जाकर वह घटिया कहानी लिख दी कि मैं पेड़ों को अपनी बांहो में घेरकर शाम गुजरता हूं। आप ही बताइए इसमें गलत क्या है ? पेड़ों से दोस्ती करने में गलत क्या है ?
प्रीतीशः कुछ नहीं।
किशोरः फिर यह इंटीरियर डेकोरेटर आया था। सूटेड-बूटेड, तपती गर्मी में सैविले रो का ऊनी थ्री-पीस सूट पहने हुए मुझे सौंदर्य, डिजाइन, दृश्य क्षमता इत्यादि के बारे में लेक्चर दे रहा था। करीब आधे घण्टे तक उसके अजीब अमेरिकन लहजे वाली अंग्रेजी में उसे सुनने के बाद मैंने उससे कहा कि मुझे अपने सोने वाले कमरे के लिए बहुत साधारण सी चीज चाहिए। कुछ फीट गहरा पानी जिसमें बड़े सोफे की जगह चारों तरफ छोटी-छोटी नाव तैरें। मैंने कहा, सेंटर टेबल को बीच में अंकुश से बांध देंगे जिससे उस पर चाय रखी जा सके और हम सब उसके चारों तरफ अपनी-अपनी नाव में बैठकर अपनी चाय पी सकें।
मैंने कहा, लेकिन नाव का संतुलन सही होना चाहिए, नहीं तो हम लोग एक-दूसरे फुसफुसाते रह जाएंगे और बातचीत करना मुश्किल होगा। वह थोड़ा सावधान दिखने लगा लेकिन जब मैंने दीवारों की सजावट के बारे में बताना शुरू किया तो उसकी सावधानी गहरे भय में बदल गई।
मैंने उससे कहा कि मैं कलाकृतियों की जगह जीवित कौओं को दीवार पर टांगना चाहता हूं क्योंकि मुझे प्रकृति बहुत पसंद है। और पंखों की जगह हम ऊपर की दीवार पर पादते हुए बंदर लगा सकते हैं। उसी समय वह अपनी आंखों में विचित्र सा भाव लिए धीरे से खिसक लिया। आखिरी बार मैंने उसे तब देखा था जब वह बाहर के दरवाजे से ऐसी गति से भाग रहा था कि इलेक्ट्रिक ट्रेन शरमा जाए। तुम ही बताओ, ऐसा लीविंग रूम बनाना क्या पागलपन है ? अगर वह प्रचण्ड गर्मी में ऊनी थ्री पीस सूट पहन सकता है तो मैं अपनी दीवार पर कौअे क्यों नहीं टांग सकता ?
प्रीतीशः आपके विचार काफी मौलिक हैं, लेकिन आपकी फिल्में पिट क्यों रही हैं ?
किशोरः क्योंकि मैंने अपने वितरकों को उनकी अनदेखी करने को कहा है। मैंने उनसे शुरू ही में कह दिया कि फिल्म अधिक से अधिक एक हफ्ता चलेगी। जाहिर है कि वे भाग गए और कभी वापस नहीं आए। आप को ऐसा निर्माता-निर्देशक कहाँ मिलेगा जो खुद आपको सावधान करे कि उसकी फिल्म को हाथ मत लगाइए क्योंकि वह खुद भी नहीं समझ सकता कि उसने क्या बनाया है ?
प्रीतीशः फिर आप फिल्म बनाते ही क्यों हैं ?
किशोरः क्योंकि यह भावना मुझे प्रेरित करती है। मुझे लगता है कि मेरे पास कहने के लिए कुछ है और कई बार मेरी फिल्में अच्छा प्रदर्शन भी करती हैं। मुझे अपने एक फिल्म- ’दूर गगन की छाँव में’ याद है, अलंकार हाल में यह मात्र 10 दर्शकों के साथ शुरू हुई थी। मुझे पता है क्योंकि मैं खुद हॉल में था। पहला शो देखने सिर्फ दस लोग आए थे ! यह रिलीज भी विचित्र तरीके से हुई थी। मेरे बहनोई के भाई सुबोध मुखर्जी ने अपने फिल्म अप्रैल-फूल जिसके बारे सभी जानते थे कि वो ब्लॉक-बस्टर होने जा रही है, के लिए अलंकार हॉल को आठ हफ्तों के लिए बुक करवा लिया था।
मेरी फिल्म के बारे में सभी को विश्वास था कि वो बुरी तरह फ्लाॅप होने वाली है। तो उन्होंने अपनी बुकिंग में से एक हफ्ता मुझे देने की पेशकश की। उन्होंने बड़े अंदाज से कहा कि, तुम एक हफ्ते ले लो, मैं सात ही काम चला लूंगा। आखिकार, फिल्म एक हफ्ते से ज्यादा चलने वाली है नहीं।
मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि यह दो दिन भी नहीं चलेगी। जब पहले शो में दस लोग भी नहीं आए तो उन्होंने मुझे दिलासा देते हुए कहा कि परेशान मत हो कई बार ऐसा होता है। लेकिन परेशान कौन था ? फिर, बात फैल गई। जंगल की आग की तरह। और कुछ ही दिनों में हॉल भरने लगा। यह अलंकार में पूरे आठ हफ्ते तक हाउस फुल चली !
सुबोध मुखर्जी मुझ पर चिल्लाते रहे लेकिन मैं हॉल को हाथ से कैसे जाने देता ? आठ हफ्ते बाद जब बुकिंग खत्म हो गई तो फिल्म सुपर हॉल में लगी और वहाँ फिर 21 हफ्तों तक चली ! ये मेरी हिट फिल्म का हाल है। कोई इसकी व्याख्या कैसे करेगा ? क्या आप इसकी व्याख्या कर सकते हैं ? क्या सुबोध मुखर्जी कर सकते हैं जिनकी अप्रैल-फूल बुरी तरह फ्लॉप हो गई ?
प्रीतीशः लेकिन आपको, एक निर्देशक के तौर पर पता होना चाहिए था ?
किशोरः निर्देशक कुछ नहीं जानते। मुझे अच्छे निर्देशकों के साथ काम करने का अवसर नहीं मिला। सत्येन बोस और बिमल रॉय के अलावा किसी को फिल्म निर्माण का कखगघ भी नहीं पता था। ऐसे निर्देशकों के साथ आप मुझसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ?
एस डी नारंग जैसे निर्देशकों को यह भी नहीं पता था कि कैमरा कहाँ रखें। वे सिगरेट का लम्बा अवसादभरा कश लेते, हर किसी से शांत, शांत, शांत रहने को कहते, बेख्याल से कुछ फर्लांग चलते, कुछ बड़बड़ाते और कैमरामैन से जहाँ वह चाहे वहाँ कैमरा रखने को कहते थे।
मेरे लिए उनकी खास लाइन थी: कुछ करो। क्या कुछ ? अरे, कुछ भी ! अतः मैं अपनी उछलकूछ करने लगता था। क्या अभिनय का यही तरीका है ? क्या एक फिल्म निर्देशित करने का यही तरीका है ? और फिर भी नारंग साहब ने कई हिट फिल्में बनाईं !
प्रीतीशः आपने अच्छे निर्देशकों के साथ काम करने का प्रस्ताव क्यों नहीं रखा ?
किशोरः प्रस्ताव ! मैं बेहद डरा हुआ था। सत्यजित रॉय मेरे पास आए था और वह चाहते थे कि मैं उनकी प्रसिद्ध कामेडी पारस पत्थर में काम करूँ और मैं डरकर भाग गया था। बाद में तुलसी चक्रवर्ती ने वो रोल किया। ये बहुत अच्छा रोल था और इन महान निर्देशकों से इतना डरा हुआ था कि मैं भाग गया।
प्रीतीशः लेकिन आप सत्यजीत रॉय को जानते थे।
किशोरः निस्संदेह, मैं जानता था। पाथेर पांचाली के वक्त जब वह घोर आर्थिक संकट में थे तब मैंने उन्हें पाँच हजार रुपए दिए थे। हालाँकि उन्होंने पूरा पैसा चुका दिया फिर भी मैंने कभी यह नहीं भूलने दिया कि मैंने उनकी क्लासिक फिल्म बनाने में मदद की थी। मैं अभी भी उन्हें इसे लेकर छेड़ता हूं। मैं उधार दिए हुए पैसे कभी नहीं भूलता !
प्रीतीशः अच्छा, कुछ लोग सोचते हैं कि आप पैसे को लेकर पागल हैं। अन्य लोग आप को ऐसा जोकर कहते हैं, जो अजीबोगरीब होने का दिखावा करता है, लेकिन असल में बहुत ही चालाक है। कुछ और लोग आपको धूर्त और चालबाज आदमी मानते हैं। इनमें से आपकी का असली रूप कौन सा है ?
किशोरः अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग समय में मैं अलग-अलग रोल निभाता हूँ। इस पागल दुनिया में केवल सच्चा समझदार आदमी ही पागल प्रतीत होता है। मुझे देखो, क्या मैं पागल लगता हूँ ? क्या तुम्हें लगता है कि मैं चालबाज हूँ ?
प्रीतीशः मैं कैसे जान सकता हूँ ?
किशोरः बिल्कुल जान सकते हो। किसी आदमी को देखकर उसे जाना जा सकता है। तुम इन फिल्मी लोगों को देखो और तुम इन्हें देखते ही जान लोगे कि ये ठग हैं।
प्रीतीशः मैं ऐसा मानता हूँ।
किशोरः मैं ऐसा नहीं मानता। मैं यह जानता हूँ। तुम उन पर धुर भर भरोसा नहीं कर सकते। मैं इस चूहा दौड़ में इतने लम्बे समय से हूँ कि मैं मुसीबत को मीलों पहले सूँघ सकता हूँ। मैंने मुसीबत को उसी दिन सूँघ लिया था जिस दिन मैं एक पाश्र्व गायक बनने की उम्मीद में बाम्बे आया लेकिन एक्टिंग में फंसा दिया गया था। मुझे तो पीठ दिखाकर भाग जाना चाहिए था।
प्रीतीशः आप ने ऐसा क्यों नहीं किया ?
किशोरः हालांकि इसके लिए मैं उसी वक्त से पछता रहा हूँ। बूम बूम। बूम्प्टी बूम बूम चिकाचिकाचिक चिक चिक याडले ईईई याडले उउउउउ (जब तक चाय नहीं आ जाती याडलिंग करते हैं। कोई लिविंग रूम से उलटे हुए सोफे की ओर से आता है, थोड़ा दुखी दिख रहा है, उसके हाथ में चूहों द्वारा कुतरी हुई कुछ फाइलें हैं जो वो किशोर को दिखाने के लिए लिए हुए है। )
प्रीतीशः ये कैसी फाइलें हैं ?
किशोरः मेरा इनकमटैक्स रिकार्ड।
प्रीतीशः चूहों से कुतरी हुई ?
किशोरः हम इनका प्रयोग चूहे मारने वाली दवाइयों के रूप में करते हैं। ये काफी प्रभावी हैं। इन्हें काटने के बाद चूहे आसानी से मर जाते हैं।
प्रीतीशः आप इनकम टैक्स वालों को क्या दिखाते हैं जब वो पेपर मांगते हैं ?
किशोरः मरे हुए चूहे।
प्रीतीशः समझा
किशोरः तुम्हें मरे हुए चूहे पसंद हैं ?
प्रीतीशः कुछ खास नहीं।
किशोरः दुनिया के कुछ हिस्सों में लोग उन्हें खाते हैं।
प्रीतीशः मुझे भी लगता है।
किशोरः Haute cuisine. महँगा भी। बहुत पैसे लगते हैं।
प्रीतीशः हाँ ?
किशोरः चूहे, अच्छा धंधा हैं। किसी के पास व्यावसायिक बुद्धि हो तो वह उनसे बहुत से पैसे कमा सकता है।
प्रीतीशः मुझे लगता है कि आप पैसे को लेकर बहुत ज्यादा हुज्जती हैं। मुझे किसी ने बताया कि एक निर्माता ने आपके आधे पैसे दिए था तो आप सेट पर आधा सिर और आधी मूँछ छिलवाकर पहुँचे थे। और आपने उससे कहा था कि जब वह बाकी पैसे दे देगा तभी आप पहले की तरह शूटिंग करेंगे।
किशोरः वो मुझे हल्के में क्यों लेंगे ? ये लोग कभी पैसा नहीं चुकाते जब तक कि आप उन्हें सबक न सिखाएं। मुझे लगता है कि वह फिल्म मिस मैरी थी और ये बंदे होटल में पाँच दिन तक बिना शूंटिग किए मेरा इंतजार करते रहे। अतः मैं ऊब गया और अपने बाल काटने लगा।
पहले मैंने सिर के दाहिने तरफ के कुछ बाल काटे, फिर उसे बराबर करने के लिए बायें तरफ के कुछ बाल काटे। गलती से मैंने थोड़ा ज्यादा काट दिया। इसलिए फिर से दाहिने तरफ का कुछ बाल काटना पड़ा। फिर से मैंने ज्यादा काट दिया। तो मुझे बायें तरफ का फिर से काटना पड़ा। ये तब तक चलता रहा जब तक कि मेरे सिर पर कोई बाल नहीं बचा और उसी वक्त उन्होंने मुझे सेट पर बुलाया। मैं जब इस हालत में सेट पर पहुंचा तो सभी चक्कर खा गए।
इस तरह बाम्बे तक अफवाह पहुँची। उन्होंने कहा था कि मैं बौरा गया हूँ। मुझे ये सब नहीं पता था। जब मैं वापस आया तो देखा कि हर कोई मुझे दूर से बधाई दे रहा है और 10 फिट की दूरी से बात कर रहा है।
यहाँ तक कि जो लोग मुझसे गले मिला करते थे वो भी दूर से हाथ हिला रहे थे। फिर किसी ने थोड़ा झिझकते हुए मुझसे पूछा कि अब मैं कैसा महसूस कर रहा था। मैंने कहा, बढ़िया। मैंने शायद थोड़ा अटपटे ढंग से कहा था। अचानक मैंने देखा कि वो लौट कर भाग रहा है। मुझसे दूर, बहुत दूर।
प्रीतीशः लेकिन क्या आप सचमुच पैसे को लेकर इतने हुज्जती हैं ?
किशोरः मुझे टैक्स देना होता है।
प्रीतीशः मुझे पता चला है कि आपको आयकर से जुड़ी समस्याएँ भी हैं।
किशोरः कौन नहीं जानता ? मेरा मूल बकाया बहुत ज्यादा नहीं था लेकिन ब्याज बढ़ता गया। खण्डवा जाने से पहले बहुत सी चीजें बेचने का मेरा प्लान है और इस पूरे मामले को मैं हमेशा के लिए हल कर दूँगा।
प्रीतीशः आपने आपातकाल के दौरान संजय गांधी के लिए गाने को मना कर दिया था और कहा जाता है कि, इसीलिए आयकर वाले आपके पीछे पड़े। क्या यह सच है ?
किशोरः कौन जाने वो क्यों आए । लेकिन कोई भी मुझसे वो नहीं करा सकता जो मैं नहीं करना चाहता। मैं किसी और की इच्छा या हुकुम से नहीं गाता। लेकिन समाजसेवा के लिए मैं हमेशा ही गाता हूँ।
प्रीतीशः आपके घरेलू जीवन के बारे में क्या ? इतनी परेशानियाँ क्यों ?
किशोरः क्योंकि मैं अकेला छोड़े जाना पसंद करता हूँ।
प्रीतीशः आपकी पहली पत्नी, रुमा देवी के संग क्या समस्या हुई ?
किशोरः वो बहुत ही प्रतिभाशाली महिला थीं लेकिन हम साथ नही रह सके क्योंकि हम जिंदगी को अलग-अलग नजरिए से देखते थे। वो एक क्वॉयर और कॅरियर बनाना चाहती थी। मैं चाहता था कि कोई मेरे घर की देखभाग करे। दोनों की पटरी कैसे बैठती ?
देखो, मैं एक साधारण दिमाग गाँव वाले जैसा हूँ। मैं औरतों के करियर बनाने वाली बात समझ नहीं पाता। बीबीयों को पहले घर सँवारना सीखना चाहिए। और आप दोनों काम कैसे कर सकते हैं ? करियर और घर दो भिन्न चीजें हैं। इसीलिए हम दोनों अपने-अपने अलग रास्तों पर चल पड़े।
प्रीतीशः आपकी दूसरी बीबी, मधुबाला ?
किशोरः वह मामला थोड़ा अलग था। उससे शादी करने से पहले ही मैं जानता था कि वो काफी बीमार है। लेकिन कसम तो कसम होती है। अतः मैंने अपनी बात रखी और उसे पत्नी के रूप में अपने घर ले आया, तब भी जब मैं जानता था कि वह हृदय की जन्मजात बीमारी से मर रही है। नौ सालों तक मैंने उसकी सेवा की। मैंने उसे अपनी आँखों के सामने मरते देखा। तुम इसे नहीं समझ सकते जब तक कि तुम इससे खुद न गुजरो। वह बेहद खूबसूरत महिला थी लेकिन उसकी मृत्यु बहुत दर्दनाक थी।
वह फ्रस्ट्रेशन में चिड़चिड़ाती और चिल्लाती थी। इतना चंचल व्यक्ति किस तरह नौ लम्बे सालों तक बिस्तर पर पड़ा रह सकता है। और मुझे हर वक्त उसे हँसाना होता था। मुझसे डाक्टर ने यही कहा था। उसकी आखिरी साँस तक मैं यही करता रहा। मैं उसके साथ हँसता था, उसके साथ रोता था।
प्रीतीशः आपकी तीसरी शादी ? योगिता बाली के साथ ?
किशोरः वह एक मजाक था। मुझे नहीं लगता कि वह शादी के बारे में गंभीर थी। वह बस अपनी माँ को लेकर आब्सेस्ड थी। वो यहाँ कभी नहीं रहना चाहती थी।
प्रीतीशः लेकिन वो इसलिए कि वह कहती हैं कि आप रात भर जागते और पैसे गिनते थे।
किशोरः क्या तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा कर सकता हूँ ? क्या तुम्हें लगता है कि मैं पागल हूँ ? खैर, ये अच्छा हुआ कि हम जल्दी अलग हो गए।
प्रीतीशः आपकी वर्तमान शादी ?
किशोरः लीना अलग तरह की इंसान है। वह भी उन सभी की तरह अभिने़त्री है लेकिन वह बहुत अलग है। उसने त्रासदी देखी है। उसने दुख का सामना किया है। जब आपके पति को मार दिया जाए आप बदल जाते हैं। आप जिंदगी को समझने लगते हैं। आप चीजों की क्षणभंगुरता को महससू करने लगते हैं। अब मैं खुश हूँ।
प्रीतीशः आपकी नई फिल्म ? क्या आप इसमें भी हीरो की भूमिका निभाने जा रहे हैं ?
किशोरः नहीं, नहीं नहीं। मैं केवल निर्माता-निर्देशक हूँ। मैं कैमरे के पीछे ही रहुंगा। याद है, मैंने तुम्हें बताया था कि मैं एक्टिंग से कितनी नफरत करता हूँ ? अधिक से अधिक मैं यही कर सकता हूँ एकाध सेकेण्ड के लिए स्क्रीन पर किसी बूढ़े आदमी या कुछ और बनकर दिखाई दूँ।
प्रीतीशः हिचकाक की तरह ?
किशोरः हाँ, मेरे पसंदीदा निर्देशक। मैं दिवाना हूँ लेकिन सिर्फ एक चीज का। हाॅरर फिल्मों का। मुझे भूत पसंद हैं। वो डरावने मित्रवत लोग होते हैं। अगर तुम्हें उन्हें जानने का मौका मिले तो वास्तव में बहुत ही अच्छे लोग। फिल्मी दुनिया वालों की तरह नहीं। क्या तुम किसी भूत को जानते हो ?
प्रीतीशः बहुत दोस्ताना वाले नहीं।
किशोरः लेकिन अच्छे, डरावने वाले ?
प्रीतीशः दरअसल नहीं।
किशोरः लेकिन हमलोग एक दिन ऐसे ही होने वाले हैं। इसकी तरह ((, (एक कंकाल की तरफ इशारा करते हैं जिसे वो सजावट की तरह प्रयोग करते हैं। कंकाल की आँखो से लाल प्रकाश निकलता है) – तुम यह भी नहीं जानते कि यह आदमी है या औरत। लेकिन यह अच्छा है। दोस्ताना भी। देखो, अपनी गायब नाक पर मेरा चश्मा लगा कर ये ज्यादा अच्छा नहीं लगता ?
प्रीतीशः सचमुच, बहुत अच्छा।
किशोरः तुम एक अच्छे आदमी हो। तुम जिंदगी की असलियत को समझते हो। तुम एक दिन ऐसे ही दिखोगे।
प्रीतीश नन्दी द्वारा लिया गया किशोर कुमार का यह साक्षात्कार Illustrated Weekly of India (April, 1985) में प्रकाशित हुआ था।
अनुवाद – रंगनाथ सिंह
यह साक्षात्कार अहा ज़िन्दगी के जून, 2013 अंक में प्रकाशित हो चुका है.(
साभार