सत्य का कोई एक रस नहीं होता। सत्य के अपने रुप हैं, अपने रंग हैं। हमारे जीवन में सत्य हर बार अलग परिस्थिति में किसी भिन्न रुप में उतरता है। सत्य के नौ रस हैं। सत्य हमेशा विजयी होता है लेकिन इसको सिर्फ जीत और हार के मापदंड पर नहीं रखा जा सकता।
सत्य के मार्ग पर विजेता वही बन सकता है जो हारने की क्षमता रखता है। विजेता बनने की लालसा सत्य में बाधक बन सकती है।
शांति, सत्य का एक रस है और सत्य शांति में रुचि रखता है, अशांति में नहीं। अगर किसी धार्मिक ग्रंथ का स्वाध्याय करते हुए आपकी आंखों में आंसू आ जाएं तो स्वाध्याय करना छोड दें क्योंकि आपको उस स्वाध्याय का प्रतिफल मिल गया है।
हम अपना सत्य दूसरों पर थोपने का प्रयास करेंगे तो इससे भयानकता उत्पन्न होती है। यह भी सत्य का एक रस है, रुप है। भयानक रस।
अद्भुत रस भी सत्य का एक रूप है। जो व्यक्ति सत्य मार्ग पर चलता है उसे यह कहकर संबोधित करते हैं कि हमारे बीच विचरण करने वाला यह व्यक्ति, साधन तो हमारे जैसे ही उपयोग करता है जैसे हवा, पानी लेकिन वास्तव में इस लोक का है ही नहीं।
किसी को सबके सामने यह कहना कि तुम बहुत खराब हो, तुम में बुराइयां हैं तो इस सत्य के परिणाम वीभत्स हो सकते हैं। यही वीभत्स रस है।
रौद्र रस भी सत्य का रूप है, लेकिन इसे ज्यादा समय तक सहन नहीं किया जा सकता। महान लोग हंसी-मजाक में भी सत्य का बखान कर देते हैं।
शब्दों के आभूषणों से अलंकृत कर सत्य को उजागर करना श्रंगार रस है। राम सत्य है, रामायण सत्य है लेकिन तुलसी दास ने जिस तरह से शब्दों के श्रंगार से उसे प्रस्तुत किया, वह श्रृंगार रस का उदाहरण है।
वीर ही सत्य मार्ग पर चल सकता है, इसमें किसी युद्ध की बात नहीं है। सत्य के मार्ग पर चलने का साहस ही वीरता है, वही वीर रस है।
जिस सत्य के उपासक के सत्य को लोग नहीं पहचानते हैं वह उसे प्रतिपादित करने की बजाय चुपचाप आंसू बहाता है, यह करुण रस है।