रूसी नौसेना और हेलीकाप्टरों का निर्माण करनेवाली रूसी कंपनी “वेर्ताल्ओती रॉस्सी” यानी “रूस के हेलीकाप्टर” ने “का-27एम” वर्ग के हेलीकाप्टर के राजकीय उड़ान परीक्षणों का पहला चरण पूरा कर लिया है। पनडुब्बी-नाशक यह हेलीकाप्टर “का-27”, जिसे नाटो में “हेलिक्स” कहा जाता है, का ही सुधरा हुआ रूप है। इस नए हेलीकाप्टर को ख़रीदने में चीन काफ़ी दिलचस्पी दिखा रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि एशिया प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में अन्य देशों की गतिविधियाँ बढ़ती जा रही हैं। परंपरागत रूप से चीनी नौसेना कमज़ोर मानी जाती है। इस संबंध में रणनीति और टेक्नोलौजी विश्लेषण केंद्र के विशेषज्ञ वसीली काशिन ने कहा-
नए हेलीकाप्टर की मुख्य विशेषता यह है कि इसे एक नए राडार से लैस किया गया है जिसका एंटीना चरणबद्ध ढंग से संकेत ग्रहण करता है। इस रडार स्टेशन की प्रौद्योगिकी ही हेलीकाप्टर के विकास में एक बिलकुल नई बात है। यह रडार स्टेशन बड़ी संख्या में छोटे आकार के मॉड्यूलों से बना हुआ है और यह अति सटीक रेडियो संकेत भेजता है और अन्य ठिकानों से मिलनेवाले संकेतों को इतनी ही सटीकता से ग्रहण भी करता है। हेलीकाप्टर के लिए ऐसे स्टेशनों के निर्माण और संचालन के लिए अधिक बिजली की खपत करनी पड़ती थी लेकिन अब इस जटिल समस्या को सुलझा लिया गया है।
“का-27एम” हेलीकाप्टर के लिए ऐसे नए राडार स्टेशन की बदौलत शत्रु की पनडुब्बियों की पेरिस्कोपों (पेरिस्कोप- एक ऐसा यंत्र है जिसकी सहायता से पानी में थोड़ी डूबी हुई पनडुब्बी में से पानी के ऊपर की वस्तुएँ देखी जा सकती हैं) और मस्तूलों जैसी छोटे आकार की वस्तुओं को भी दूर से ही देखा जा सकता है। इसकी बदौलत दुश्मन के ठिकानों पर लगातार पैनी नज़र रखी जा सकती है। इसके अलावा, यह हेलीकाप्टर खुफिया इलेक्ट्रॉनिक टोही स्टेशन, ध्वनिक स्टेशन, चुम्बकी मापन-यंत्र और अन्य प्रणालियों से भी लैस है जिनकी बदौलत दुश्मन की पनडुब्बियों का बड़ी आसानी से पता लगाया जा सकता है।
यह हेलीकाप्टर तारपीडो और बमों जैसे अपने स्वयं के हथियारों से दुश्मन की पनडुब्बियों पर हमले कर सकता है या फिर इन पनडुब्बियों की स्थिति के बारे में जानकारी अपने युद्धपोतों तक पहुँचा सकता है। हेलीकाप्टर पर लगे टोही उपकरणों की सहयता से पानी के नीचे 500 मीटर तक की गहराई में चल रही पनडुब्बियों का भी पता लगाया जा सकता है।
“का-27एम” हेलीकाप्टर के कार्यक्रम के कार्यान्वयन की वजह से “का-28” वर्ग के दर्जनों हेलीकाप्टरों के आधुनिकीकरण का अवसर भी मिल गया है। “का-28” वर्ग का हेलीकाप्टर “का-27″ वर्ग के हेलीकाप्टर का ही निर्यात संस्करण है। ऐसे हेलीकाप्टरों का प्रमुख ख़रीदार चीन है जिसने 2000 के दशक में इस वर्ग के कई हेलीकाप्टर रूस से ख़रीदे थे।
पिछले कुछ समय से एशिया प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में अन्य देशों के पनडुब्बी-बेड़ों की बढ़ रही गतिविधियों पर चीन की चिंता भी बढ़ रही है। इन देशों में जापान, दक्षिणी कोरिया, वियतनाम, इंडोनेशिया, सिंगापुर और अन्य देश शामिल हैं। चीन विशेष रूप से दक्षिणी चीन सागर में अपनी स्थिति मज़बूत बनानी चाहता है और उसने इस क्षेत्र में अपनी परमाणु पनडुब्बियों के लिए एक रणनीतिक अड्डे का निर्माण भी किया है।
चीन को इस बात का डर है दक्षिणी चीन सागर में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों की बढ़ रही नौसैन्य गतिविधियों से उसके रणनीतिक समुद्री मार्गों पर कामकाज में विघ्न पड़ सकता है। चीन ऊर्जा और अन्य कच्चे माल के अधिकांश हिस्से का निर्यात इन्हीं मार्गों के ज़रिए करता है। अगर चीन के पास शक्तिशाली आधुनिक उपकरणों से लैस हेलीकाप्टर होंगे तो उसकी पनडुब्बी रोधी क्षमता में काफ़ी सुधार हो जाएगा और दक्षिण चीन सागर में चीन के बड़े युद्धपोतों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।”का-27” हेलीकाप्टर के अन्य प्रमुख ख़रीदारों में भारत और वियतनाम भी शामिल हैं जिनकी अपने इन हेलीकाप्टरों का आधुनिकीकरण करने के काम में दिलचस्पी हो सकती है।