मथुरा। गोपियां नहीं, ग्वाल नहीं लेकिन भाव भी वही और हाल भी वही। बुधवार को कलियुग में भी द्वापरकाल सा दृश्य नजर आया। रथ पर सवार योगेश्वर श्रीकृष्ण गुरुवायूर धाम के लिए मथुरा नगरी छोड़ने की तैयारी कर रहे थे, तो ब्रजवासी भाव विं ल हो गए। जन्मभूमि के लीला मंच पर आरती उतारते समय तो सभी नर-नारी हर्षित थे। लेकिन, जैसे ही कृष्ण रथ में सवार हुये, जन्मभूमि के मुख्य द्वार पर एकत्रित सैकड़ों लोग कान्हा की झलक पाने के लिये व्याकुल हो उठे। रथ चला तो आंखों से आंसुओं की धारा बह उठी।
गुरुवायूर मंदिर के आचार्य-पुजारी समेत एक दर्जन लोग मंगलवार देर रात्रि कान्हा की रजत प्रतिमा (सुरक्षा कारणों से स्वर्ण प्रतिमा नहीं आई) लेकर श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर आये। बुधवार प्रात: यहां कान्हा का श्रृंगार किया गया। आखिर उन्हें लीला मंच पर लाया गया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के सचिव माधवन नंबूदरी और कथा व्यास पुंडरीक गोस्वामी महाराज ने कान्हा की आरती उतारी। प्रतिमा हरिनाम संकीर्तन और झांझ, मजीरे, ढोलक आदि वाद्य यंत्रों की मंगल ध्वनि के बीच जन्मस्थान के मुख्य द्वार तक गोद में लायी गई। यहां केरल से आये रथ में प्रभु को विराजमान कराया गया। कान्हा को लेने आये गुरुवायूर श्रीकृष्ण मंदिर के आचार्य-पुजारी रथ को शीघ्र हांकना चाह रहे थे, लेकिन भक्तों की भीड़ रथ के सामने से हटने का नाम नहीं ले रही थी। ज्यादातर आंखें नम थीं तो हृदय व्यथित। बहुत से ऐसे थे जो जाते-जाते प्रभु को जी भर कर निहार लेना चाहते थे। वहीं सैकड़ों लोग प्रभु को रोली-चंदन और फूल पहनाने की होड़ में थे। अंतत: भीड़ को हटना पड़ा और कान्हा रथ में सवार होकर गुरुवायूर मंदिर रवाना हो गए। इस मौके पर जन्मभूमि सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा और संयुक्त मुख्य अधिशासी राजीव श्रीवास्तव, गोपेश्र्र्वर नाथ चतुर्वेदी उपस्थित थे।