सोनीपत से आठ किलोमीटर दूर करेवड़ी मोड़ पर स्थित बाबा कान्हानाथ व गोमाता का एक प्राचीन मंदिर है जहां बाबा कान्हानाथ के साथ-साथ गाय की आराधना भी होती है। बाबा कान्हानाथ सिद्ध महात्मा हुए हैं। उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। उन्होंने बचपन में ही घर त्याग दिया था। 20 साल की उम्र में तो वे धरती में समा गए थे। यही कारण है कि श्रद्धालुओं की उनके प्रति अगाध आस्था हुई।
कान्हानाथ मंदिर में वर्तमान महंत नरेंद्रनाथ का कहना है कि अपने समय में बाबा मस्तनाथ मंडली के साथ अस्थल बोहर (रोहतक) से पेहवा के लिए निकले थे। मंडली में बाबा तोतानाथ और कान्हानाथ भी थे। शाम होने तक बाबा मस्तनाथ मंडली सहित करेवड़ी मोड़ तक पहुंचे। अत: उन्होंने उस रात करेवड़ी मोड़ पर ठहराव किया और धूणा लगाकर शंखनाद किया। जैसे ही शंखनाद की ध्वनि इस क्षेत्र के निवासियों ने सुनी तो वे यहां इकट्ठे होने लगे। बाबा मस्तनाथ ने लोगों के आग्रह पर यहां एक मठ की नींव रखी और मठ की देखरेख के लिए यहां बाबा कान्हानाथ को नियुक्त कर दिया। उस समय यहां चारों ओर आम के पेड़ थे जहां बाबा कान्हानाथ अपनी गाय को साथ रखते थे। एक बार बाबा कान्हानाथ मठ में धूणे पर बैठे ध्यान लगाए हुए थे। उसी समय गांव माछरीवासी एक किसान के खेत में बाबा कान्हानाथ की गाय घुस गई। उस किसान ने बाबा की गाय को डंडे से पीटते हुए खेत से बाहर निकाल दिया और मठ तक ले आया। जब बाबा कान्हानाथ ने उसे गाय को मारने से रोका तो उसने बाबा के साथ भी बुरा व्यवहार किया। बाबा कान्हानाथ ने क्रोध में आकर उस किसान को कहा, जा तेरी टूटी भी नहीं रहेगी अर्थात् तेरा सर्वनाश हो जाएगा। ऐसा कहने के कुछ दिन बाद उस किसान का सर्वनाश हो गया।
गाय को भी बाबा ने कहा, हे गोमाता, अब आपका भी समय नहीं रहा। ऐसा कहते ही जमीन फटी और वह गाय उसमें समा गई। उसके समा जाने के बाद बाबा कान्हानाथ भी वहीं बैठे-बैठे जमीन में समा गए। उसी जगह पर अब बाबा कान्हानाथ व गाय की समाधि व प्रतिमा बनाई गई है। यहां गोमाता की 18 साल से अखंड जोत जग रही है। बाबा कान्हानाथ ने अपने समय में ऐसे अनेक चमत्कारी कार्य किए जिन्हें लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आ रहे हैं।
बाबा कान्हानाथ के बाद उनके चेले रामनाथ भी यहां समाए थे। इसके बाद बाबा रामनाथ के चेले रणजीतनाथ व इनके बाद बाबा मांगेनाथ यहां आए। मांगेनाथ के शरीर त्यागने पर उनके चेले बाबा साहिबनाथ और साहिबनाथ के बाद अब बाबा नरेंद्रनाथ मठ को सुचारू रूप से चला रहे हैं और हमेशा प्रभु भक्ति में लीन रहते हैं। बाबा जसबीरनाथ, रोहितनाथ, कुलदीपनाथ तथा सोनूनाथ उनके साथ यहां सेवा करते हैं