मादा पैंगोलिन सांप की तरह अंडे देती है, लेकिन अपने बच्चों को दूध भी पिलाती है। यह दुर्लभ प्रजाति का वन्य प्राणी है। इसकी खाल काफी मोटी और चकतेदार होती है।
कानन पेंडारी के वेटनरी डॉक्टर पी.के. चंदन ने बताया कि जांजगीर चांपा में मिले पैंगोलिन को उनके यहां लाया गया है। उसकी समुचित देखभाल की जा रही है।
चंदन ने बताया कि यह पैंगोलिन जांजगीर चांपा जिले स्थित सक्ती के जंगल में मिला। उन्होंने बताया कि इसका मुख्य आहार दीमक और चींटी है। इस वजह से इसके लिए भोजन की व्यवस्था करना काफी मुश्किल होती है। पैंगोलिन को सल्लू सांप भी कहा जाता है, मगर इससे डरने की जरूरत नहीं है। यह किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता।
पैंगोलिन आमतौर पर छत्तीसगढ़ में कम ही देखे गए हैं। ये ज्यादातर नदियों के किनारे, नमी वाली जगहों और जंगली इलाकों में रहते हैं। ये सूखी घास वाले मैदानों में भी बिल बनाकर रहते हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ इसे सरीसृप और स्तनधारी के बीच का जंतु मानते हैं।
पैंगोलिन आमतौर पर किसी प्राणि संग्रहालय (जू) में नहीं रखे जाते हैं। सिर्फ भुवनेश्वर (ओड़िशा) के जू में ही पैंगोलिन रखे गए हैं। इसके बाद कानन पेंडारी में ही इसको पनाह दी गई है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि पैंगोलिन की पीठ की खाल काफी मोटी होती है। किसी खतरे को भांपते ही ये अपने आप को सिकोड़ लेते हैं।