श्रीनगर, 15 अप्रैल (आईएएनएस)। देश के सर्वाधिक उपद्रव ग्रस्त राज्य जम्मू एवं कश्मीर में सरकार के मुखिया के रूप में महबूबा मुफ्ती की परेशानी भरी पारी की शुरुआत के बारे उनसे और नहीं पूछा जा सकता है।
श्रीनगर, 15 अप्रैल (आईएएनएस)। देश के सर्वाधिक उपद्रव ग्रस्त राज्य जम्मू एवं कश्मीर में सरकार के मुखिया के रूप में महबूबा मुफ्ती की परेशानी भरी पारी की शुरुआत के बारे उनसे और नहीं पूछा जा सकता है।
गत चार अप्रैल को महबूबा ने एक मात्र मुस्लिम बहुल राज्य की कमान संभाली। इसके बाद राज्य में दो घटनाएं हुईं -पहली राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), श्रीनगर में और दूसरी उत्तरी कश्मीर में पुलिस के साथ हुई लोगों की तीखी झड़प। इस झड़प में पुलिस गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई।
इन दोनों घटनाओं से महबूबा समस्याओं के दलदल में फंस गईं हैं।
एनआईटी में राष्ट्रवाद के मुद्दे पर स्थानीय बनाम बाहरी के बीच शुरू हुए उपद्रव ने जम्मू को कश्मीर घाटी के खिलाफ खड़ा कर दिया।
हालांकि राज्य के दोनों तरंगित भागों में सांप्रदायिक दूरी कम करना पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार के एजेंडे का प्रमुख हिस्सा है।
1980 के दशक से अलगाववादी अभियानों से जूझ रहे राज्य में जब गत साल वैचारिक रूप से भिन्न पीडीपी और भाजपा मिलकर शासन करने पर राजी हुईं, तब महबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने यह एजेंडा बनाया था।
इस साल सात जनवरी को मुफ्ती की मौत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए महबूबा पीडीपी की स्वाभाविक पसंद बन गईं। शुरू में वह भाजपा से हाथ नहीं मिलाना चाहती थीं, लेकिन बाद में राज्य की कमान संभालने पर राजी हो गईं, जबकि केंद्र सरकार ने उन्हें कोई नई रियायत देने का वादा नहीं किया।
चार अप्रैल को महबूबा (56) की शपथ के बाद टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल मैच में वेस्टइंडीज से भारत की हार के बाद एनआईटी में मनाए जा रहे जश्न पर बाहरी और स्थानीय छात्रों के बीच हिंसक झड़प हुई। बाहरी छात्रों ने राष्ट्रीय झंडों के साथ रैली निकाली और भारत समर्थक नारे लगाए।
पुलिस ने प्रदर्शन को दबाने के लिए बल प्रयोग किया। इसके बाद छात्रों ने सुरक्षा कारणों से एनआईटी को घाटी से बाहर स्थानान्तरित करने की मांग की।
सप्ताह भर से राज्य में उपद्रव हो रहा था, लेकिन विगत मंगलवार को भाजपा नेताओं से मिलने महबूबा दिल्ली पहुंचीं, जबकि पहले उन्होंने इन नेताओं से मिलने से मना कर दिया था।
ज्यों ही महबूबा दिल्ली में उतरीं कि उत्तरी कश्मीर के हंदवारा शहर में सेना के जवान द्वारा कथित रूप से एक सकूली छात्रा से छेड़छाड़ की अफवाह को लेकर बवाल मच गया। विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हुई पुलिस गोलीबारी में दो लड़कों और एक महिला की मौत हो गई।
इस घटना के एक दिन बाद कुपवाड़ा जिले के द्रगमुल्ला गांव में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। टिन का कनस्तर लगने से एक 25 वर्षीय युवक की मौत हो गई।
ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों ही घटनाओं में पुलिस ने भीड़ नियंत्रण करने की प्रक्रिया का अनुसरण नहीं किया। नतीजा हुआ कि सत्ता संभालने के 10 दिनों के अंदर ही महबूबा के सामने बड़ी सुरक्षा चुनौती खड़ी हो गई। इसको लेकर सोशल मीडिया में उनकी काफी आलोचना भी हुई।
महबूबा के आलोचक पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा, “सुरक्षा बलों की गोलीबारी में लोग मारे गए और जम्मू एवं कश्मीर की मुख्यमंत्री क्या करती हैं? वह स्वयं को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली दौरे पर हैं।”
उन्होंने कहा, “यह वही महिला हैं, जो एक साल पहले तक हल्के-फुल्के उकसावे की कार्रवाई पर घाटी में कहीं भी आंसू बहाने के लिए दौड़ पड़ती थीं।”
हालांकि गुरुवार को श्रीनगर लौटने पर उन्होंने पुलिस को भीड़ से निपटने के दौरान संयम बरतने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि नाराज भीड़ को नियंत्रित करने में किसी भी नागरिक को क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए। लेकिन तब तक तो काफी क्षति हो चुकी थी।
एनआईटी और हंदवारा में हत्या का मसला अभी शांत नहीं हुआ है। अब वह राजनीतिक और प्रशासनिक ढंग से इस संकट से कैसे निपटती हैं, यह देखना होगा। इससे उनकी नई भूमिका तय होने के साथ-साथ राज्य में नरम अलगाववादी और भगवाधारियों के बीच असहज गठबंधन के लिए भी मार्ग प्रशस्त होगा।