श्रीनगर, 9 जून (आईएएनएस)। खीर भवानी मंदिर में सोमवार को होने वाले वार्षिक उत्सव से पहले रविवार को दर्जनों प्रवासी कश्मीरी पंडित यहां पहुंचने लगे हैं।
उत्तरी कश्मीर के गांदरबल जिले के तुलामुल्ला गांव में स्थित माता रागनी का खीर भवानी मंदिर कश्मीरी पंडितों के लिए सबसे पवित्र धार्मिक स्थल है।
पुलिस ने कहा कि दर्जनों धार्मिक कश्मीरी पंडित मंदिर में यहां पहले ही पहुंच चुके हैं।
पुलिस ने कहा, “हमें रविवार शाम तक देश के अलग-अलग हिस्सों से छह हजार से 10 हजार तीर्थ यात्रियों के यहां पहुंचने की उम्मीद है। अधिकांश तीर्थयात्री बसों में आ रहे हैं, जिन्हें सुरक्षा प्रदान की गई है।”
इस साल 10 जून को पड़ने वाली ज्येष्ठ अष्टमी पर सोमवार को होने वाली वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए मंदिर में हजारों भक्तों के पहुंचने की संभावना है।
सदियों पुरानी भाईचारे की परंपरा के अनुसार, मंदिर के आसपास रहने वाले मुस्लिम यहां प्रति वर्ष खीर भवानी मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को छोटे मिट्टी के पात्रों में दूध की पेशकश करते हैं।
दिलचस्प बात यह भी कि त्योहार के दिन मंदिर के आसपास रहने वाले मुसलमान मटन खाते-पकाते नहीं हैं। मुसलमान इसलिए ऐसा करते हैं, क्योंकि कश्मीरी पंडित भी यदि मंदिर आने से पहले मांसाहारी भोजन करते हैं तो वे मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं करते हैं।
कश्मीरी पंडितों का मानना है कि मंदिर में पवित्र सोते के पानी का रंग अगले 12 महीनों की घटनाओं को दर्शाता है।
हर साल यहां तीर्थयात्रा पर आने वाले अशोक कुमार कौल (60) ने कहा, “त्योहार के दिन सोते के पानी का रंग उन घटनाओं का अनुमान जाहिर करता है, जो अगले 12 महीनों में अगले त्यौहार तक सामने आएंगी।”
उन्होंने कहा, “सोते के पानी का काला रंग हिंसा और पीड़ा को दर्शाता है, जबकि दूधिया या हल्का हरा रंग शांति और समृद्धि का सूचक है।”
कश्मीरी पंडित के 1990 में घाटी से चले जाने के बाद से कौल जम्मू में रहते हैं।
जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने खीर भवानी मेले की पूर्व संध्या पर लोगों को शुभकामनाएं दी हैं।
अपने संदेश में राज्यपाल ने कहा कि त्योहार को सांप्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारे के एक चमकदार उदाहरण के रूप में मनाएं, जो सदियों से जम्मू एवं कश्मीर के शानदार बहुलतावादी लोकाचार की पहचान रहे हैं।
उन्होंने राज्य में शांति, सद्भाव, प्रगति और समृद्धि के लिए भी प्रार्थना की।