नई दिल्लीः कर्नाटक में पिछले साल जिस तीन साल के दलित बच्चे के साथ हुए भेदभाव के बाद राज्य सरकार ने जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए योजना का ऐलान किया था, उस दलित बच्चे के परिवार का गांव वालों ने सामाजिक बहिष्कार कर दिया, जिसकी वजह से परिवार को गांव छोड़कर जाने को विवश होना पड़ा.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार ने राज्य के ग्राम पंचायतों में जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता के खिलाफ जागरूकता पैदा करने के लिए ‘विनय समरस्य योजना’ का ऐलान किया था.
इस योजना को औपचारिक रूप से 14 अप्रैल को डॉ. बीआर आंबेडकर की जयंती पर शुरू किया जाएगा.
इस योजना को दलित समुदाय से आने वाले तीन साल के विनय के नाम पर शुरू किया गया था, जो सितंबर 2021 में कर्नाटक के कोप्पल जिले के मियापुर गांव में बारिश से बचने के लिए एक मंदिर में चला गया था.
ग्रामीणों ने शुरुआत में दलित परिवार पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था और तब से परिवार को कहीं अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, इस गांव की आबादी 1500 है, जिनमें अधिकतर गनीगा समुदाय के लोग रहते हैं और इन्होंने इस बीच दलित परिवार के साथ दुर्व्यवहार किया, जिस वजह से विनय के परिवार को अपने खेत और अन्य संपत्ति छोड़कर गांव से जाना पड़ा.
विनय के परिवार का कहना है कि इस घटना के बाद गिरफ्तार किए गए सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया है और वे गांव में अपना फरमान चला रहे हैं.
विनय के पिता चंद्रशेखर शिवप्पादासरा ने बताया कि अगर भेदभाव की प्रथा को समाप्त नहीं किया जा सकता तो उनके बेटे के नाम पर सरकारी योजना का नाम रखना बेकार है.
उन्होंने कहा कि गांव के वार्षिक मंदिर महोत्सव को इसमें दलितों के भाग लेने के डर की वजह से रद्द कर दिया गया था.
वहीं, सामाजिक कल्याण विभाग के अधिकारियों का का कहना है कि उन्हें महोत्सव रद्द होने की जानकारी नहीं थी.
चंद्रशेखर ने कहा, ‘गांव में हुई हर बुरी चीज के लिए हमारे परिवार को जिम्मेदार ठहराया जाता था और हमें अलग-थलग कर दिया गया. अगर हमें किसी तरह की आपातकालीन मदद की जरूरत भी होती तो हमें मदद नहीं मिलती.’
उनका कहना है कि अब उनका परिवार विनय की मां के गृहनगर येलबुर्गा में रह रहा है. चंद्रशेखर के पिता को राज्य सरकार की ओर से एक लाख रुपये की आर्थिक मदद मिली थी और इस राशि से उनकी योजना कार धोने की दुकान खोलने की है.
उन्होंने कहा कि मियापुर गांव में उनकी जमीन को सुरक्षित रखने और उसके बदले येलबुर्गा में वैकल्पिक जमीन मिलने के लिए सरकार से मदद के प्रयास भी असफल रहे.
उन्होंने कहा, ‘मैं सरकारी अधिकारियों के सामने दोबारा गुहार नहीं लगाऊंगा क्योंकि मैं इससे थक गया हूं.’
एक सामाजिक कल्याण विभाग के अधिकारी ने दावा किया कि उन्हें येलबुर्गा में जमीन दिलाने और घर का निर्माण कराने में मदद के प्रयास किए जा रहे हैं.