अशोकनगर का करीला मेला भारत का अद्भुत एवं अद्वितीय आयोजन है। इस आयोजन में 10 लाख से ज्यादा श्रृद्धालू पहुंचते हैं। देश भर से बेड़िया जाति की नृत्यांगनाएं आतीं हैं और भगवान राम के पुत्र लव व कुश के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। यहां मौजूद मंदिर में भगवान राम के दोनों पुत्र लव और कुश की प्रतिमाएं हैं। माता सीता भी विराजमान हैं परंतु भगवान राम नहीं हैं।
मध्यप्रदेश के जिला मुख्यालय अशोकनगर से 75 किलो मीटर दूर स्थित करीला मेला करीला ग्राम में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। होली से शुरू हो कर रंग पंचमी तक यह मेला बहुत धूम धाम एवं पूर्ण आस्था के साथ मनाया जाता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं। गतवर्ष इस मेले में 10 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया था। यहाँ पर जानकी मैया का प्रसिद्द मंदिर है जिसे लव कुश मंदिर भी कहते है।
इस विशाल आयोजन के कारणों पर गौर करने पर पता चलता है कि प्रभु श्री राम ने लंका विजय के पश्चात सीता मैया को गर्भवती अवस्था में परित्याग कर दिया था तब बे यहाँ रहीं थी एवं उनके पुत्र लव-कुश ने यहीं जन्म लिया था। यह ऋषि वाल्मीकि जी का आश्रम था। भारत वर्ष में लव कुश का एक मात्र मंदिर यहाँ स्थापित है, जो हमें रामायण काल की अनुभूतियाँ का अहसास कराता है।
करीला के इस मंदिर में सीता की पूजा होती है। सम्भवत: यह देश का इकलौता मंदिर है जहां भगवान राम के बिना अकेले माता सीता स्थापित हैं। माता सीता के कथानक से जुड़े ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं हैं लेकिन जनश्रुतियां यही कहती हैं कि वह बाल्मीकि के आश्रम में रही थीं.
बेड़िया जाति में रंग पंचमी का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन देश के इकलौते सीता माता के मंदिर में बेड़नियां राई नृत्य नाचकर देवी सीता को याद करती हैं. लव-कुश के जन्म पर करीला में खुशियां मनाई गईं और अप्सराओं का नृत्य हुआ था। जिस दिन खुशियां मनाई गई वह रंगपंचमी का दिन था।
राई नृत्य का यह सिलसिला तभी से चला आ रहा है .बेड़िया जाति की राई नर्तकियां तभी से उपासना का आधार राई नृत्य मानती हैं . मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा की बेड़िया जाति की हजारों नृत्यांगनाएं यहां पहुंचकर खूब नाचती हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस मेले में आने से विवाहिता स्त्रियों की सूनी गोदें भर जाती हैं, जीवन में सुख समृद्धि आ जाती हैं और जिन लोगों की दुआएं यहाँ पूरी हो जाती हैं वे लोग राई नृत्य करवाते हैं।