दिल्ली-भाजपा कुछ भी सफाई दे लेकिन जिस वीडियो को आधार बनाकर जेएनयू अध्यक्ष कन्हैया को निशाना बनाया गया है वह देशद्रोह का आरोप सिद्ध करने के लिए नाकाफी मालूम होता है । जेएनयू प्रकरण में भाजपा ने खुद ही अपनी किरकिरी करा ली । यह मामला इतना पेचीदा नही था जितना इसे पेचीदा बनाकर पेश किया गया ।
कन्हैया द्वारा लगाए गए नारो में एक नारा संघवाद से आज़ादी भी था जो न तो विधार्थी परिषद के गले से उतर सकता है और न ही भाजपा के गले उतरा होगा । रही सही कसर भाजपा और सरकार के चापलूस कुछ मीडिया चैनलों ने पूरी कर दी । एक चैनल से वीडियो के पूरे अंश भी नहीं दिखाए और फैसला भी दे दिया कि ये सीधा सीधा देशद्रोह का मामला है ।
इस चैनल का एंकर चटकारे ले लेकर जेएनयू की खबर को मनगढ़ंत तरीके से गलत दिशा में धकेल दिया । इतना ही नही चैनल ने ऐसे फैसला सुना दिया जैसे देश की सबसे बड़ी कोर्ट इसी चैनल पर लगती हो और ये एंकर उस कोर्ट के सबसे बड़े जज हैं । ऐसे चैनलों ने इस मामले में न सिर्फ जेएनयू की साख को बट्टा लगाया बल्कि देश में अराजकता का माहौल पैदा करने की कोशिश भी की ।
मुझे लगता है जेएनयू छात्रों से ज़्यादा दोषी ये भगवा मीडिया है जो हर मामले को हिन्दू मुस्लिम या भारत पाकिस्तान का रूप देने की कोशिश करता है । सबसे ज़्यादा गम्भीर बात यह है कि जो मीडियाकर्मी एक उधोगपति से ब्लेकमेलिंग कर पैसे बसूलने के मामले में जेल गया था वह खुद को पाक साफ़ मान रहा है जबकि वह रंगे हाथो कैमरे में कैद हुआ था और पूरे देश ने देखा था । देश में अमन के लिए ज़रूरी है कि ऐसे चैनलों पर हमेशा के लिए पाबन्दी लगा दी जानी चाहिए । जिनके खुद के दामन साफ़ नही वे पत्रकारिता को एक मज़ाक से ज़्यादा क्या समझेंगे ।
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शोध छात्र रोहित द्वारा की गयी आत्म हत्या मामले से ख़राब हुई छवि से अभी भाजपा निकल भी नही पाई थी कि जेएनयू का ताज़ा मामला हो गया । भाजपा शायद भूल रही है कि पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के शासनकाल में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद देशभर में भड़के आरक्षण विरोधी आंदोलन को काबू करना मुश्किल हो गया था । उस समय छात्रों की एकजुटता ने विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार को हिलाकर रख दिया था । जेएनयू मामला भले ही आरक्षण से जुड़ा नही है लेकिन छात्रों से ज़रूर जुड़ा है । इस पर सरकार को सोच विचार कर ही फैसले लेने होंगे ।
लोकभारत से